विनोद कुमार झा
महाभारत केवल एक युद्ध नहीं था। यह एक ऐसा महान अध्याय था, जिसमें रणनीति, नीति, कूटनीति, मनोविज्ञान, धर्म, और समय की समझ, सभी मिलकर परिणाम निर्धारित कर रहे थे। पांडव संख्याबल और संसाधनों में कौरवों से बहुत पीछे थे। युद्ध के प्रारंभिक दिनों में कार्य-योजना की कमी और कौरवों की सुदृढ़ व्यवस्था के कारण, युद्ध उनके पक्ष में जाता दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे समय श्रीकृष्ण ने वह दिव्य नीति सुझाई, जिसने धीरे-धीरे युद्ध की दिशा बदल दी।
युद्ध के शुरुआती दस दिन, पांडवों की निरंतर पराजय
युद्ध आरम्भ होते ही कौरवों की सेनाएँ आगे बढ़ने लगीं।
भीष्म पितामह, कौरव सेना के सेनापति, तेज, योजनाशीलता, अनुभव, और युद्धकला में अपराजेय थे।
उनके बाणों की बौछार इतनी तीव्र होती थी कि सामने आने वाले योद्धा दो पल भी खड़े नहीं रह सकते थे।
इन दस दिनों का स्वरूप यह था...
पहला पांडवों की ओर से हर दिन भारी क्षति हो रही थी। सेना के हजारों सैनिक गिरते जा रहे थे। दूसरा, अर्जुन और भीष्म दोनों धर्म-संकट में थे। अर्जुन, भीष्म को पिता समान मानते थे, इसलिए उन पर प्रहार करते हुए संकोच अनुभव करते थे।
उधर भीष्म अर्जुन के प्रति ममतामयी स्नेह रखते थे, परन्तु सेनापति होने के कारण युद्ध से पीछे नहीं हट सकते थे।
तीसरा, कृष्ण के मन में गहरी चिंता थी। उन्होंने समझ लिया था कि यदि कोई निर्णायक उपाय नहीं किया गया, तो भीष्म अकेले ही पांडवों की पूरी सेना का अंत कर सकते हैं।
युधिष्ठिर और अर्जुन की निराशा
दसवें दिन की संध्या को पांडवों के शिविर में गहरा मौन छाया था।
युधिष्ठिर, जो सत्य और धर्म के प्रतीक थे, पराजय के बोझ से दबते जा रहे थे।
उन्होंने कृष्ण से कहा। “कृष्ण। यदि भीष्म ऐसे ही प्रहार करते रहे, तो हमारे पास लड़ने को सैनिक ही नहीं बचेंगे। उन्हें हराना संभव नहीं दिखता।”
अर्जुन ने भी कहा। “माधव। यह मेरे पितामह हैं। मैं उन्हें कैसे मारूँ?” कृष्ण मुस्कुराए, क्योंकि उनके भीतर समाधान पहले से ही तैयार था। यह समाधान किसी शस्त्र के बल पर नहीं, बल्कि धर्म, नीति और मनोविज्ञान की गहरी समझ से निकला था।
कृष्ण का अद्भुत सुझाव , शिखंडी का उपयोग
कृष्ण ने शांत स्वर में कहा। “अर्जुन। भीष्म को पराजित करना असंभव नहीं है। उन्हें निष्क्रिय करना ही रणनीति है। और यह संभव है शिखंडी द्वारा।”
शिखंडी कौन थे?
शिखंडी, द्रुपद के पुत्र थे।
उनका जन्म स्त्री-रूप में हुआ था, ‘शिखंडिनी’ के रूप में।
बाद में एक दिव्य वर के प्रभाव से वे पुरुष बने।
भीष्म यह तथ्य जानते थे। वे किसी स्त्री या स्त्री-स्वरूप पर शस्त्र नहीं उठाते थे। कृष्ण ने इस मनोवैज्ञानिक बिंदु को ही रणनीति का आधार बनाया।
कृष्ण का तर्क , न्याय के भीतर रणनीति
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया। पहला, भीष्म स्वयं कह चुके हैं कि वे स्त्री पर शस्त्र नहीं उठाएँगे।
दूसरा, शिखंडी पुरुष हैं, परन्तु उनका जन्म स्त्री के रूप में हुआ था।
तीसरा, धर्म का पालन करते हुए भीष्म शिखंडी पर प्रहार नहीं करेंगे।
चौथा, यह उपाय नीति-संगत है और अधर्म नहीं है।
पाँचवा, इससे कौरवों की सबसे बड़ी शक्ति निष्क्रिय हो जाएगी।
कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट शब्दों में कहा।
“यदि आज भीष्म को रोका नहीं गया, तो कल पांडव सेना नहीं बचेगी।”
दसवाँ दिन — रणनीति का क्रियान्वयन
अगली सुबह युद्ध का दसवाँ दिन था।
कृष्ण ने अर्जुन के रथ में शिखंडी को आगे खड़ा किया।
अर्जुन पीछे खड़े होकर धनुष चढ़ाए हुए थे।
जब भीष्म ने सामने शिखंडी को देखा, वे समझ गए।
“यह कृष्ण की योजना है।”
भीष्म मुस्कुराए, धनुष नीचे रख दिया, और बोले।
“मैं शिखंडी पर शस्त्र नहीं उठाऊँगा। यदि अर्जुन को विजय चाहिए, तो आज दे दूँगा।”
यही वह क्षण था, जब युद्ध की दिशा बदल गई।
अर्जुन ने पीछे से भीष्म के कवच को भेदते हुए अनेक बाण चलाए।
भीष्म शरशय्या पर गिर पड़े।
उन्होंने इच्छा-मृत्यु के कारण प्राण नहीं त्यागे, और सूर्य के उत्तरायण होने तक शरशय्या पर ही रहे।
भीष्म पितामह के गिरते ही युद्ध का संतुलन बदल गया
भीष्म का गिरना केवल एक योद्धा की पराजय नहीं थी।
यह कौरवों के मनोबल का पतन था।
कौरव सेना दिशाहीन हो गई, क्योंकि भीष्म ही वह धुरी थे जो पूरी सेना को सँभालते थे।
दुर्योधन पहली बार अपने पराजय का भय महसूस करने लगा।
पांडवों में नया उत्साह भर गया, क्योंकि उन्होंने समझ लिया कि अब विजय संभव है।
धर्म के भीतर रहकर बनी यह रणनीति अपना प्रभाव दिखा रही थी।
कृष्ण की रणनीति सर्वोच्च क्यों मानी जाती है?
पहला, कृष्ण ने किसी के धर्म को नहीं तोड़ा। भीष्म स्वयं नियमबद्ध थे।
दूसरा, उन्होंने युद्ध को अनावश्यक रक्तपात से बचाया।
तीसरा, उन्होंने अर्जुन को धर्म-संकट से मुक्त किया।
चौथा, यह उपाय सरल था, परन्तु अत्यंत प्रभावकारी।
महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत का बीज यहीं बोया गया था।
युद्ध इसी दिन से पांडवों की ओर झुक गया था।
महाभारत की जीत अर्जुन के बाणों से जितनी नहीं हुई, उतनी श्रीकृष्ण की बुद्धि, दूरदर्शिता, और नीति से हुई।
भीष्म को निष्क्रिय करने की नीति ही वह दिव्य सुझाव था, जिसने हार को जीत में बदल दिया।
(साभार महाभारत ग्रंथ से )
