#खुद की कमी दूसरे पर थोपे

 (एक राजनीतिक व्यंग्य कथा)

लेखक : विनोद कुमार झा ( Khabar Morning)

यह कहानी है उस दौर की, जब लोकतंत्र का रंग कुछ फीका, कुछ चटकीला, कुछ स्याह और कुछ बेहद चमकीला हो चला था। जहां राजनीति अब विचार नहीं, प्रचार हो गई थी। जहां गलती करना पाप नहीं रहा, लेकिन गलती मानना महापाप हो गया था। और इस पूरे खेल का सबसे बड़ा हथियार था आरोप और प्रत्यारोप का खेल।

शहर था "नवभारतपुर", जहां हर चुनाव एक उत्सव नहीं बल्कि युद्ध बन चुका था। यहां के नेता इतने परिपक्व हो चुके थे कि खुद की नाकामी को किसी और की साजिश बताकर वाहवाही लूट लेते थे।

यहां दो प्रमुख नेता थे : श्री अभिमान लाल (सत्ताधारी दल से) और माननीय शेखर शंखधर (विपक्ष के धुरंधर)। अभिमान लाल पांच साल से मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सत्ता में आने से पहले जनता से वादा किया था “हर खेत को पानी मिलेगा, हर हाथ को काम मिलेगा, और हर पेट को खाना मिलेगा।”पांच साल बाद न खेत में पानी पहुंचा, न हाथ को काम मिला, और न पेट को खाना।

लेकिन उन्होंने जनता से कहा, “काम तो हम करने जा रहे थे, पर शेखर शंखधर ने साजिश कर दी। उन्होंने अफसरों को भड़का दिया। मीडिया को खरीद लिया और काम रुकवा दिया।” जनता पहले थोड़ी भौचक्की हुई, फिर किसी ने टोका, “पर मुख्यमंत्री तो आप थे, अफसर तो आपके अधीन थे…”

अभिमान लाल मुस्कुराए,“यही तो षड्यंत्र था, जो ऊपर से समझ नहीं आता।”वहीं शेखर शंखधर भी पीछे नहीं थे। उन्होंने जब कोरोना के समय लोगों को राशन नहीं बंटवाया, तब भी उन्होंने कह दिया,“ये सारा खेल केंद्र सरकार का है, उन्होंने जान-बूझकर हमें राशन देर से भेजा ताकि हमारी सरकार बदनाम हो जाए।”

ऐसे ही एक दिन नवभारतपुर में एक बड़ा जलसंकट आ गया। जनता बिन पानी त्राहि-त्राहि करने लगी। पत्रकार पहुंचे तो दोनों नेताओं के बयान एक जैसे थे, अभिमान लाल बोले, “हम तो पानी लाना चाहते थे, लेकिन विपक्ष ने अदालत में याचिका डाल दी।”

शेखर शंखधर बोले,“हमने तो जल नीति बनाई थी, लेकिन सरकार ने हमारी फाइल ही गायब कर दी।” फिर आरोपों की बौछार शुरू हुई, “ये चीनी षड्यंत्र है…,”“ये अमुक पार्टी की साजिश है…”, “मीडिया बिक चुकी है…”, “ईडी, सीबीआई सब हमारे पीछे लगाई गई है…”, “जनता की भावनाएं भड़काई जा रही हैं…”।

लाचार जनता का हाल?

वो रोज पानी की बाल्टी लेकर लाइन में खड़ी थी। बिजली कटौती में रातें गुजार रही थी। बेरोजगार युवा इंटरव्यू देने दिल्ली, मुंबई भटक रहे थे। पर नेताओं के बयान आते रहे “हमने विकास किया, लेकिन हमें काम नहीं करने दिया गया।”

यह सब सुनकर एक दिन एक वृद्ध किसान सभा में उठ खड़ा हुआ और बोला, “नेताओं, जब गेहूं की फसल खराब होती है, तो मैं मौसम को दोष देता हूं, लेकिन अगले साल बीज, खाद और मेहनत दोगुनी करता हूं। तुम लोग क्या करते हो? गलती खुद करते हो, और ठीकरा किसी और के सिर फोड़ते हो।”

यह सुनकर सभा में कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर टीवी चैनलों ने इस पर डिबेट चलाई ‘क्या किसान विपक्ष के इशारे पर बोल रहा था?’

राजनीति अब सेवा नहीं, केवल रणनीति बन चुकी थी। और उस रणनीति का पहला नियम था, “अगर आपसे कुछ नहीं हो रहा, तो जनता को ऐसा दिखाओ कि आप बहुत कुछ करना चाहते थे, पर दूसरों ने करने नहीं दिया।” इस तरह "नवभारतपुर" में सच्चाई की जगह शोर ने ले ली, और गलती की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं बचा।

संदेश: जिस दिन नेता खुद की कमियों की जिम्मेदारी लेने लगेंगे, उसी दिन देश सही दिशा में बढ़ने लगेगा। वरना तो ये खेल चलता रहेगा :-“गलती हमारी… दोष तुम्हारा।”



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(लेखक का संदेश)

यदि आप इस कहानी में अपना चेहरा देख रहे हैं, तो दोष मेरा नहीं… मैंने तो बस एक आईना दिखाया है।


— समाप्त।

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