विनोद कुमार झा
मुक्ताभरण व्रत हिंदू धर्म में विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला पवित्र व्रत है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी या अष्टमी तिथि को करने का विधान है। इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन सुखमय होता है, पति की आयु लंबी होती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विशेषकर नवविवाहिता स्त्रियाँ यह व्रत करती हैं ताकि उनका दांपत्य जीवन मोतियों की माला की तरह सुंदर, सुखमय और स्थायी हो।
"मुक्ताभरण" शब्द का अर्थ है मोती का आभूषण। इस व्रत में मोतियों के आभूषण का प्रतीकात्मक महत्व है, जो जीवन में शांति, समृद्धि और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
व्रत की विधि: यह व्रत श्रावण या भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
व्रत का संकल्प इस प्रकार लें: “मैं मुक्ताभरण व्रत का संकल्प लेती हूँ। हे जगत जननी पार्वती माता, मेरे दांपत्य जीवन को सुखमय करें, मेरे पति की आयु लंबी करें और मुझे अखंड सौभाग्य प्रदान करें।”
पूजा स्थान की तैयारी : घर के पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। एक चौकी पर स्वच्छ लाल या पीला कपड़ा बिछाएँ।उस पर पार्वती माता और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पीतल या मिट्टी के कलश में जल भरें, उसमें आम्रपल्लव, सुपारी, अक्षत, और एक सिक्का डालें। कलश के ऊपर नारियल रखें और कलावा से बाँध दें।
पूजन सामग्री : कलश, गंगाजल, रोली, हल्दी, चावल। फूल, विशेषकर लाल और सफेद। बेलपत्र, दूर्वा,मौसमी फल, मिठाई, नैवेद्य,दीपक, घी या तिल का तेल, एक छोटा मोती या मोतियों का आभूषण (व्रत का प्रतीक)।
पूजन विधि : भगवान शिव और माता पार्वती का गंध, अक्षत, पुष्प, जल, दूध और बेलपत्र से पूजन करें। दीपक जलाएँ और धूप अर्पित करें। व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। पूजा के अंत में आरती करें।
व्रत नियम : इस दिन एक समय फलाहार करना चाहिए। रात्रि में भगवान शिव पार्वती का स्मरण करें। व्रत का पारण अगले दिन विधिपूर्वक करें।
मुक्ताभरण व्रत कथा : प्राचीन समय में काशी नगरी में एक ब्राह्मण दंपति रहते थे। वे अत्यंत धर्मपरायण और ईश्वर भक्त थे, लेकिन उनके संतान नहीं थी। दंपति हमेशा दुखी रहते और भगवान शिव-पार्वती की आराधना करते थे।
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने अपनी सहेलियों को एक विशेष व्रत करते देखा। उसने उनसे पूछा ,“बहनों, आप कौन सा व्रत कर रही हैं?”
तब एक महिला ने कहा, “हम मुक्ताभरण व्रत कर रही हैं। इस व्रत से अखंड सौभाग्य, पति की लंबी आयु और सुखमय दांपत्य जीवन मिलता है। जो स्त्री श्रद्धा और भक्ति से यह व्रत करती है, उसे कभी विधवा का दुःख नहीं सहना पड़ता।”
ब्राह्मणी ने यह सुनकर यह व्रत करने का निश्चय किया। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उसने स्नान कर भगवान शिव-पार्वती की विधिवत पूजा की। पूजा के समय उसने मोती का एक आभूषण चढ़ाया और माता पार्वती से प्रार्थना की,“हे जगत जननी, मुझे भी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें।” उसके बाद उसने नियमपूर्वक कथा सुनी, आरती की और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दी। इस व्रत के प्रभाव से उसका दांपत्य जीवन सुखमय हुआ और वह अपने पति के साथ दीर्घायु और सुखमय जीवन बिताने लगी।
कहा जाता है कि जो भी स्त्री मुक्ताभरण व्रत श्रद्धापूर्वक करती है, उसके जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता। उसके पति की आयु लंबी होती है और घर में समृद्धि बनी रहती है।
व्रत का पारण: व्रत का पारण अगले दिन करें। ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएँ और वस्त्र दक्षिणा दें। स्वयं भोजन कर व्रत पूर्ण करे।
यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है।जो स्त्रियाँ यह व्रत करती हैं, उनका दांपत्य जीवन मोतियों की माला की तरह सुंदर और सुखमय होता है। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि, शांति और प्रेम बना रहता है।