#कुलो झा की कहानी: भादो के कादौ (कीचड़)

 विनोद कुमार झा

भादो मास की बारिश और कीचड़ अपने आप में अलग ही किस्सा होते हैं। आज से करीब 80 साल पहले गांव की गलियां और शहर की सड़कें कंक्रीट और डामर से नहीं बनी होती थीं। मिट्टी की पगडंडियां ही रास्ता मानी जाती थीं, और बरसात आते ही वही रास्ते दलदल में बदल जाते। साइकिल, बैलगाड़ी, यहां तक कि पैदल चलना भी किसी जंग जीतने जैसा होता।

हमारे गांव में एक बेहद लोकप्रिय और हास्य-व्यंग्य सुनाने वाले किस्सागो हुआ करते थे स्वर्गीय श्री कूलो झा। उनका अंदाज ही ऐसा था कि जब बोलते तो लोग पेट पकड़कर हंसने लगते। किस्सा कहने का ढंग, आंखों की चमक और चेहरे पर मासूमियत भरी शरारत  सब मिलकर उन्हें गांव का सबसे बड़ा मनोरंजन बना देते थे।

भादो की एक बरसाती शाम थी। दिन भर बादल गरजते रहे, और शाम तक पूरे गांव की गलियां कीचड़ से भर चुकी थीं। खेतों से पानी बहकर सड़क तक आ गया था। गांव के चौपाल की तरफ कूलो बाबा जा रहे थे। उन्होंने धोती थोड़ी ऊपर टांगी, छाता हाथ में लिया और अपनी आदत के अनुसार खुद ही गुनगुनाते हुए निकल पड़े।

पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। बीच गली में ऐसा कीचड़ पड़ा था कि पांव अंदर धंस जाए और जूता बाहर रह जाए। कूलो बाबा जैसे ही उस कीचड़ पर बढ़े, उनका एक पांव पूरा धंस गया। निकालने की कोशिश की तो दूसरा पांव भी अंदर चला गया। अब हालत यह हुई कि ऊपर से छाता हिल रहा था और नीचे कूलो बाउ कीचड़ में फंसे थे।

उन्हें देखकर दो बच्चे दौड़े और बोले, “अरे बाबाजी, आप तो पूरे भैंस की तरह कीचड़ में धंस गए!”कूलो बाबा ने भी मौका गंवाया नहीं। वहीं फंसे-फंसे बोले ,“बच्चों, चुप रहो! भैंस नहीं हूं, कीचड़ के राजा की सवारी कर रहा हूं।”

पूरा गांव देखने आ गया। कोई रस्सी लेकर आया, कोई हंसी रोकने की कोशिश करता। जब किसी तरह उन्हें बाहर निकाला गया तो उनकी धोती का आधा हिस्सा कीचड़ से रंगा हुआ था। चेहरे पर नाराजगी का कोई निशान नहीं था, बल्कि हंसी की फुहार थी।

बाद में जब मचान पर बैठे, तो उन्होंने उस पूरे प्रसंग का ऐसा वर्णन किया कि लोग हंस-हंसकर लोटपोट हो गए। वह बोले ,
“भाई लोगों, आज मैंने समझा कि कीचड़ भी इंसान की इज्जत करता है। मुझे पूरा निगलता तो था, पर मजा उसे भी लेना था, इसलिए अटकाकर रखा। और मैं सोच रहा था, कहीं गांव वाले अगर ‘कूलो झा की मूर्ति’ कीचड़ में बना दें तो?!”

उनकी यह बात सुनकर मचान  ठहाकों से गूंज उठा। और यही किस्सा सालों तक गांव में मजाक के रूप में सुनाया जाता रहा।कहानी का मजा यही है कि भादो का कीचड़, जो सबके लिए परेशानी था, कूलो बाबा के लिए हास्य का खजाना बन गया। उनकी बातें आज भी गांव के बुजुर्ग याद कर ठहाका लगाते हैं।

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