विनोद कुमार झा
इसी मौसम में एक प्रेमिका की आत्मा और अधिक संवेदनशील हो उठती है। जब बादलों की गड़गड़ाहट और बारिश की रिमझिम उसके आँगन में उतरती है तो उसका# हृदय अपने प्रियतम की यादों से भर जाता है। वह आकाश की ओर निहारती है, जैसे प्रिय की आँखें बादलों में छिपी हों,# और अपनी तड़प, अपने एहसासों को शब्दों में पिरोकर प्रेम-पत्र के रूप में लिख देती है।
दोपहर तक आते-आते काले बादल उमड़कर आकाश में छा जाते हैं। पहले हल्की-हल्की बूंदें गिरती हैं, फिर देखते-देखते मूसलधार बारिश धरती पर टूट पड़ती है। #गलियों में पानी भर जाता है, छोटे बच्चे उस पानी में कागज़ की नाव तैराने लगते हैं, महिलाएँ खिड़कियों से बाहर #झाँककर मौसम की ठंडी बयार का आनंद लेती हैं।
लेकिन यही बारिश कभी-कभी त्रासदी भी बन जाती है। नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं, खेतों में खड़ी फसलें डूब जाती हैं, गाँव के रास्ते कीचड़ से भर जाते हैं। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। प्रकृति की यह दोहरी छवि भादो मास को और भी गहन और रहस्यमय बना देती है।
बारिश का एक रूप विनाशकारी होता है तो दूसरा रूप जीवनदायी। पेड़ों की डालियों पर लटके ताजे पत्ते, बाग-बगीचों में खिले फूल, खेतों में #हरियाली की चादर, ये सब मनुष्य के मन को तृप्त कर देते हैं।
जब काले बादल आसमान को ढक लेते हैं और उनकी ओट से बिजली कौंधती है, तो ऐसा लगता है मानो #प्रकृति स्वयं किसी प्रेम कथा का मंचन कर रही हो।
हरियाली का यह विस्तार केवल आँखों को नहीं भाता बल्कि प्रेमिका के मन में भी नई उमंग और #तड़प भर देता है। जैसे पेड़ अपने पत्तों से सज जाते हैं, वैसे ही उसका हृदय अपने प्रिय की यादों से भरकर हरा-भरा हो जाता है।
बारिश की बूंदें जब उसकी खिड़की पर टकराती हैं, तो प्रेमिका का हृदय धड़क उठता है। उसे लगता है जैसे उसकी# मन की व्याकुलता की आवाज़ #प्रकृति तक पहुँच गई है। वह भीगती धरती को देखती है और कल्पना करती है कि काश उसका प्रिय भी इस मौसम में उसके साथ होता।
वह आसमान की ओर देखती है उमड़ते-घुमड़ते बादलों में उसे प्रियतम का चेहरा नजर आता है। कभी बिजली की चमक में उसका मुस्कुराता चेहरा दिखता है, तो कभी गड़गड़ाहट में उसकी आवाज़ सुनाई देती है। यह मौसम प्रेमिका के हृदय की तड़प को और गहरा कर देता है।
बारिश की रातों में जब खिड़की से टपकते पानी की बूँदें दीपक की लौ से टकराकर संगीत रचती हैं, तो प्रेमिका अपने प्रेमी को पत्र लिखने बैठ जाती है।
#उसके पत्र में केवल शब्द नहीं होते, उसमें भीगी हुई भावनाएँ, यादों का समंदर और मिलने की लालसा #बहती रहती है।
वह लिखती है,
"प्रियतम!
भादो की यह रात मुझे बेचैन कर रही है। #बारिश की हर बूँद मुझे तुम्हारी याद दिला रही है। गलियों में भरे पानी की तरह मेरे मन में भी तुम्हारी स्मृतियाँ भर गई हैं। आकाश में उमड़ते बादलों में मैं तुम्हारी छवि ढूँढ़ती हूँ, #लेकिन हर बार खाली हाथ रह जाती हूँ। काश तुम इस मौसम में मेरे पास होते और हम दोनों साथ भीगते हुए इस ऋतु को जीते।" उसका पत्र एक गहन कविता बन जाता है।
भादो मास केवल मौसम का नाम नहीं, यह मनुष्यों की भावनाओं का भी महीना है। जब धरती प्रकृति की गोद में हरियाली से लद जाती है, तब मन भी अपने प्रिय की यादों से हरा-भरा हो उठता है।
प्रेमिका का पत्र केवल प्रेमी तक नहीं, बल्कि आकाश, बादलों और धरती तक पहुँच जाता है। उसका इजहार प्रेम का एक शाश्वत गीत बन जाता है।
भादो की उमस, बरसात, बाढ़ और हरियाली सब मिलकर जीवन की तरह ही विविध रंग दिखाते हैं। कभी सुख, कभी दुख, कभी विनाश, कभी सृजन—यह सब इसी मास की पहचान है। इसी तरह प्रेम भी कभी तड़प देता है, कभी आनंद, कभी पीड़ा और कभी परमानंद। प्रकृति और प्रेम का यह अद्भुत संगम हमें सिखाता है कि जीवन की हर ऋतु में प्रेम ही वह धारा है जो मन को जीवित रखती है।
लेखक: विनोद कुमार झा