#सच का आईना...

 लेखक: विनोद कुमार झा


शहर की पुरानी गलियों में एक संकरी सी लेन थी, जहां दिन में भी धूप मुश्किल से जमीन तक पहुंच पाती थी। उसी लेन के आख़िरी मोड़ पर थी एक पुरानी, मगर बेहद संभली हुई इमारत कपूर एंड संस फोटोग्राफी स्टूडियो। दरवाज़े के ऊपर पीतल की एक नेमप्लेट टंगी थी, जिस पर सुनहरी अक्षरों में लिखा था “यादों को कैद करने की जगह।”

#अंदर कदम रखते ही हल्की सी कपूर और पुराने फोटो पेपर की मिली-जुली खुशबू आती थी। दीवारों पर लगी पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें मानो बीते जमाने की कहानियां कह रही हों। कमरे के कोने में एक बड़ा, लकड़ी से बना हुआ अलंकृत फ्रेम वाला आईना रखा था, जिसकी #सतह बिल्कुल साफ़ थी, मगर उस पर एक अजीब-सी गहराई थी जैसे कोई उसमें झांकता, तो सिर्फ अपना चेहरा नहीं, बल्कि अपनी रूह भी देख ले।

लोग कहते थे कि ये आईना सच का आईना है। जो भी इसके सामने आता, उसकी आंखों में छिपा सच बाहर आ जाता चाहे वो खुशी हो, डर हो, या कोई ऐसा राज़ जिसे उसने सालों से छुपा रखा हो। 

उस दिन आसमान में बादल घिरे थे, और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। शाम के पांच बजे, स्टूडियो का दरवाज़ा धीरे से खुला। अंदर आई एक लड़की करीब अट्ठाईस साल की, चेहरे पर थकान और आंखों में बेचैनी लिए। उसका नाम था रिया। उसके हाथ में एक फोल्डर और बैग था, मगर उंगलियां कांप रही थीं।

“पासपोर्ट फोटो खिंचवानी है,” उसने धीमे स्वर में कहा। स्टूडियो के मालिक, अरविंद कपूर, एक सफ़ेद बालों वाले, मगर सधे हुए हाथों के फोटोग्राफर थे। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “बिल्कुल। पर पहले, उस कोने में रखे आईने में देख लीजिए, कहीं बाल या कपड़े इधर-उधर तो नहीं।”रिया ने कदम बढ़ाया।

जैसे ही उसने आईने में देखा, उसके गले से हल्की-सी चीख निकल गई। वहां उसका प्रतिबिंब था, लेकिन आंखें लाल और सूजी हुई थीं, चेहरे पर थकान की जगह दर्द की लकीरें थीं… और उसके पीछे एक छोटा-सा बच्चा खड़ा था। बच्चा चुपचाप उसे देख रहा था गोल-मटोल चेहरा, मगर आंखें गीली।

रिया ने मुड़कर पीछे देखा वहां कोई नहीं था। “ये… ये बच्चा कौन है?” उसकी आवाज कांप रही थी। अरविंद ने गंभीर स्वर में कहा,“आईना वही दिखाता है, जो हमारे दिल में है… और कभी-कभी वो भी, जिसे हम दुनिया से छुपा लेते हैं।”

रिया ने नजरें फेर लीं, लेकिन उसके हाथ अब और ज्यादा कांप रहे थे। कुछ देर चुप्पी के बाद, वह बुदबुदाई, “तीन साल पहले… मैं मां बनने वाली थी।” उसकी आंखों में आंसू भर आए।

“मेरी शादी… एक बड़े बिज़नेसमैन से हुई थी। सबको लगता था कि मेरी जिंदगी बहुत खुशहाल है। लेकिन… उस घर की दीवारों के पीछे सिर्फ डर था। वो इंसान… बहुत गुस्सैल था, छोटी-सी गलती पर भी मारपीट करता था।”

रिया का स्वर टूट रहा था। “एक रात… उसने मुझे धक्का दिया। मैं… सात महीने की गर्भवती थी। उसी रात मैंने… अपना बच्चा खो दिया।” उसके बाद, रिया ने कभी किसी को कुछ नहीं बताया। उस दर्द को उसने अपने दिल के किसी अंधे कोने में दफना दिया पर आज, आईने ने वो कोना खोल दिया था।

 अरविंद धीरे-धीरे उसके पास आए। “ये आईना गुनाह गिनाने के लिए नहीं है। ये हमें वो दिखाता है, जिससे हम भागते हैं… ताकि हम उसका सामना कर सकें।”

रिया ने रोते हुए कहा, “लेकिन मैं उस रात को भूलना चाहती हूं।” अरविंद ने शांत स्वर में कहा, “सच से भागना, जहर को दिल में पालने जैसा है। जितना दबाओगी, उतना ही वो तुम्हें तोड़ेगा।”

उन्होंने रिया से कहा कि अगर वह चाहे तो अब भी अपने पति के खिलाफ खड़ी हो सकती है—खुद के लिए, और उस बच्चे की याद के लिए।

अगले कुछ हफ्तों में, रिया ने हिम्मत जुटाई। उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, और अदालत में केस लड़ने का निर्णय लिया। एक दिन, वह दोबारा स्टूडियो लौटी। बाहर अब धूप खिली थी, और उसके चेहरे पर एक नई रोशनी थी।

“आज… मैं अपनी फोटो खिंचवाने आई हूं,” उसने मुस्कुराकर कहा। अरविंद ने इशारे से कहा, “पहले आईने में देख लो।” रिया ने देखा इस बार वहां सिर्फ उसका चेहरा था। आंखों में आत्मविश्वास, होंठों पर हल्की मुस्कान… और पीछे एक साफ़, नीला आसमान।

अरविंद ने धीरे से कहा, “देखा? सच का आईना अब तुम्हें सिर्फ तुम दिखा रहा है बिना डर, बिना बोझ।” रिया ने कहा, “शायद जिंदगी का सबसे बड़ा साहस, सच को देखना और उसे स्वीकार करना है।” आईना वहीं खड़ा था, अपनी गहराई में अगली कहानी को संभाले… किसी और के सच का इंतजार करता हुआ।

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