देवघर ज्योतिर्लिंग: रावण की तपस्या से लेकर कामना पूर्ति तक, एक दिव्य यात्रा
विनोद कुमार झा
बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और पौराणिक गाथाओं का एक जीवंत संगम है। कल्पना कीजिए, लंका का महापंडित रावण, जिसने अपने आराध्य शिव को लंका ले जाने की ठानी थी, वह कैसे देवघर की पवित्र भूमि पर स्वयं को विवश पाता है। एक साधारण ग्वाले के रूप में आए भगवान विष्णु की लीला और रावण का अधूरा स्वप्न यह कहानी सिर्फ पत्थरों में नहीं, बल्कि हर शिव भक्त के हृदय में बसी है। सावन के महीने में जब मीलों पैदल चलकर, "बोल-बम" के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान होता है, तब आप महसूस कर पाते हैं उस अदम्य श्रद्धा को जो हर कष्ट को गौण कर देती है। यहाँ हर कंकर में शंकर और हर आंसू में आस्था का प्रतिबिम्ब दिखता है, जहाँ शिव और शक्ति का मिलन होता है और भक्तों की हर कामना पूरी होती है। यह केवल एक pilgrimage नहीं, बल्कि हृदय को छू लेने वाली एक अविस्मरणीय यात्रा है। आइए जानते हैं विस्तार से :-
बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के झारखंड राज्य के देवघर में स्थित एक अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे नौवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह स्थान कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यहाँ दर्शन और पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अतिरिक्त, यह 51 शक्तिपीठों में से भी एक है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ माता सती का हृदय गिरा था, जिस कारण इसे हार्दपीठ या हृदय पीठ भी कहा जाता है।
पुराणों में वर्णित कथा: रावण और कामना लिंग
बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी एक अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा लंकापति रावण से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उन्हें प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था। उसकी इच्छा थी कि वह भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाए और वहाँ स्थापित करे, ताकि उसकी लंका हमेशा सुरक्षित रहे और कोई उसे जीत न सके। अपनी तपस्या में उसने अपने नौ सिर काटकर शिव को अर्पित कर दिए। जब वह दसवां सिर काटने वाला था, तब भगवान शिव उसकी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।
रावण ने वरदान में भगवान शिव के आत्मलिंग (ज्योतिर्लिंग) को अपने साथ लंका ले जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने रावण की बात मान ली, लेकिन एक शर्त रखी कि वह शिवलिंग को कहीं भी भूमि पर नहीं रखेगा, अन्यथा वह वहीं स्थापित हो जाएगा और रावण उसे फिर उठा नहीं पाएगा। रावण ने यह शर्त स्वीकार कर ली और शिवलिंग को कंधे पर रखकर लंका की ओर चला।
देवताओं को चिंता हुई कि यदि रावण शिवलिंग को लंका ले जाने में सफल हो गया, तो वह अजेय हो जाएगा। तब भगवान विष्णु ने नारद मुनि से आग्रह किया कि वे रावण को भ्रमित करें। देवताओं ने चाल चली और रावण को देवघर के पास लघुशंका की तीव्र इच्छा हुई। रावण ने पास खड़े एक ग्वाले को शिवलिंग पकड़ने को कहा और उसे चेतावनी दी कि वह इसे भूमि पर न रखे। यह ग्वाला कोई और नहीं, स्वयं भगवान विष्णु थे, जो बालक के वेश में आए थे।
रावण के लघुशंका करने जाने के बाद, ग्वाले रूपी भगवान विष्णु ने शिवलिंग के भारीपन का बहाना बनाकर उसे भूमि पर रख दिया। रावण जब वापस आया तो उसने देखा कि शिवलिंग भूमि पर स्थापित हो चुका है। उसने पूरी शक्ति लगाकर शिवलिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका। क्रोधित होकर रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया, जिससे शिवलिंग पर रावण के अंगूठे का निशान आज भी मौजूद है। रावण निराश होकर लंका लौट गया।
कहा जाता है कि जब रावण ने अपने सिर काटे थे, तो उसे असहनीय पीड़ा हुई थी। उस समय भगवान शिव स्वयं वैद्य (चिकित्सक) के रूप में प्रकट हुए और रावण की पीड़ा को शांत किया। इसी कारण इस स्थान का नाम बैद्यनाथ पड़ा।
सावन महीने में भक्तों की भीड़
देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन का महीना यहाँ विशेष महत्व रखता है। सावन के महीने में यहाँ आस्था का अद्भुत सैलाब उमड़ता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु, जिन्हें कांवरिया कहा जाता है, सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से पवित्र जल भरकर लगभग 108 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाने आते हैं। इस यात्रा को श्रावणी मेला कहा जाता है, जो विश्व प्रसिद्ध है।सावन में विशेषकर सोमवार के दिन, मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। प्रशासन द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने और भक्तों की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं, जिनमें सुरक्षा, स्वच्छता, विश्राम स्थल, पेयजल, बिजली, शौचालय, और यातायात प्रबंधन शामिल हैं। इस दौरान कई बार स्पर्श दर्शन प्रतिबंधित करके केवल दूर से दर्शन की व्यवस्था की जाती है ताकि सभी श्रद्धालु आसानी से बाबा के दर्शन कर सकें. "बोल-बम!" "बोल-बम!" के जयघोष से पूरा वातावरण गूंज उठता है, जो भक्ति और उत्साह से भर देता है।
सनातन धर्म से जुड़ी कथाएं और महत्व
बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का सनातन धर्म में गहरा महत्व है। इसे न केवल भगवान शिव का एक पवित्र निवास स्थान माना जाता है, बल्कि यह शिव और शक्ति का मिलन स्थल भी है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान शिव (ज्योतिर्लिंग) और माता पार्वती (शक्तिपीठ) एक साथ विराजमान हैं।
कामना लिंग: भक्तों की मान्यता है कि यहाँ सच्चे मन से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, इसलिए इसे कामना लिंग कहते हैं।
चिताभूमि: इस स्थान को "चिताभूमि" भी कहा जाता है।
रावणेश्वर धाम: रावण से जुड़ी कथा के कारण इसे "रावणेश्वर धाम" के नाम से भी जाना जाता है।
रोग मुक्ति: यह भी माना जाता है कि बाबा वैद्यनाथ के दर्शन और अभिषेक से शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश होता है।
पुनर्निर्माण: ऐतिहासिक रूप से, इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार हुआ है। मान्यताओं के अनुसार, इसे सर्वप्रथम भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था और बाद में गिद्धौर के महाराजा पूर्णमल ने इसका दोबारा निर्माण करवाया था।
पंचशूल: बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की एक अनूठी विशेषता यह भी है कि इसके ऊपर पंचशूल स्थापित है, जबकि अन्य ज्योतिर्लिंगों पर त्रिशूल होता है।
यह पावन धाम श्रद्धा, आस्था और प्राचीन पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम है, जो भक्तों को आध्यात्मिकता और शांति का अनुभव प्रदान करता है।