बिंदिया की लाली...

 (एक सांस्कृतिक, भावनात्मक और सौंदर्यशास्त्र से भरपूर लेख)

विनोद कुमार झा

भारतीय संस्कृति की परंपराओं में यदि किसी एक प्रतीक को नारी सौंदर्य, प्रेम और आत्माभिव्यक्ति का जीवंत प्रतीक माना गया है, तो वह है  बिंदिया। यह माथे की छोटी सी लाल बिंदी, मात्र श्रृंगार की वस्तु नहीं, बल्कि एक संवेदना, आस्था और आत्मबल का रूप है। "बिंदिया की लाली" सिर्फ रंग नहीं, एक भाव है  नारी के भीतर सजीवता, आत्मगौरव और प्रेम की भावना का प्रतिबिंब।

बिंदिया: सौंदर्य नहीं, संस्कृति भी है : बिंदिया का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी हमारी सभ्यता। वैदिक युग से लेकर आधुनिक भारत तक, माथे के मध्य में सजी बिंदिया को स्त्री की तीसरी आँख माना गया है  ज्ञान, विवेक और आत्मशक्ति का प्रतीक। यह लाली, कभी चंद्राकार होती है तो कभी गोल, कभी कुमकुम से बनी होती है तो कभी चमकीले स्टोन से। लेकिन हर रूप में यह एक ही बात कहती है  "मैं संपूर्ण हूँ।"

 प्रेम की भाषा बन गई बिंदिया : जहाँ सिन्दूर विवाहित स्त्री का प्रतीक माना जाता है, वहीं बिंदिया भावनाओं की नर्म-गर्म अभिव्यक्ति है। जब कोई नवविवाहिता पहली बार लाल चुनरी ओढ़े, माथे पर लाल बिंदिया लगाए आती है, तो वह दृश्य न केवल श्रृंगार का होता है, बल्कि स्नेह और समर्पण का वचन भी होता है।

बिंदिया की लाली कई बार शर्म की रंगत बन जाती है, कई बार विदाई की उदासी में डबडबाती आँखों के बीच चमकती रह जाती है। वह जीवन के हर रंग में साथ निभाती है।

बिंदिया की लाली और आत्मबल : बिंदिया केवल सौंदर्य नहीं बढ़ाती, वह आत्मबल भी देती है। एक स्त्री जब अपने माथे पर बिंदिया लगाती है, तो वह अपने अस्तित्व को स्वीकारती है  बिना कहे। चाहे वह एक गृहिणी हो, कार्यालय की कार्यकर्ता, या किसी आंदोलन की नेतृत्वकर्ता  उसकी बिंदिया उसकी पहचान बन जाती है।

आज की नारी ने इस बिंदिया को केवल पारंपरिक नहीं रखा, बल्कि इसे अपने आधुनिक रूप में भी आत्मसात किया है। ऑफिस की पोशाक के साथ सजी छोटी सी काली बिंदिया, या ट्रेडिशनल साड़ी के साथ लगी बड़ी गोल लाल बिंदी  हर एक का एक अपना अर्थ है।

बिंदिया: रिश्तों की नमी और नयापन : बिंदिया की लाली न केवल स्त्री की पहचान है, बल्कि उसके रिश्तों की भी सजीवता का प्रतीक है। माँ के आंचल से चुराकर लगाई गई पहली बिंदी हो या प्रेमी की नजरों में खुद को सजाने की चाहत  यह सिर्फ श्रृंगार नहीं, स्मृतियों का संग्रहालय है।

माथे पर सजने वाली यह छोटी सी चीज़, कभी पिता की गोद में मुस्कुराती बेटी का मासूम रूप बनती है, तो कभी विवाह की चटख रंगों के बीच दुल्हन की झुकी निगाहों के साथ झलकती है। 

आधुनिकता में भी बिंदिया की जगह : आज जबकि ग्लोबल फैशन और मेकअप के ढेरों विकल्प हैं, फिर भी बिंदिया की लाली ने अपनी अलग जगह बनाई है। बॉलीवुड फिल्मों में जब नायिका ‘बिंदिया चमकेगी’ जैसे गीत पर झूमती है, या रैंप वॉक पर मॉडल ट्रेडिशनल परिधान के साथ लाल बिंदी लगाती है  तब यह सिद्ध होता है कि बिंदिया केवल परंपरा नहीं, ट्रेंड भी है।

"बिंदिया की लाली" कोई साधारण श्रृंगार नहीं, यह भारतीय नारी की आत्मा का रंग है। यह प्रेम का संकेत है, शक्ति का प्रतीक है, और आत्मस्वीकृति का प्रतीकचिह्न भी। एक नारी के जीवन में बिंदिया केवल माथे पर नहीं सजी होती  वह उसके हृदय की कोर में भी बसी होती है।

इसलिए अगली बार जब कोई स्त्री अपनी बिंदिया को अपने माथे पर सजाए, तो जान लीजिए  वह केवल खुद को नहीं, अपनी परंपरा, अपने प्रेम, और अपने आत्मबल को भी सजा रही है।

लेखक की कलम से: "बिंदिया की लाली, नारी के श्रृंगार से आगे की बात है यह उसकी आत्मा का उजास है।"


Post a Comment

Previous Post Next Post