प्रकृति, नारी शक्ति और प्रेम का जीवंत प्रतीक है हरियाली तीज

विनोद कुमार झा

भारतीय संस्कृति में त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि वे सामाजिक और पारिवारिक जीवन को सहेजने वाले महत्वपूर्ण अवसर भी होते हैं। ऐसे ही अनुपम पर्वों में से एक है हरियाली तीज, जो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन महिलाएं सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख-शांति की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। हरियाली तीज केवल व्रत नहीं, बल्कि प्रकृति, प्रेम, नारी शक्ति और धर्म की अद्भुत समन्विति का उत्सव है।

पौराणिक कथाएं : हरियाली तीज का इतिहास पौराणिक युगों से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से शिव-पार्वती की अमर प्रेम कथा से। ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठिन तप किया था। 108 जन्मों तक कठिन साधना करने के पश्चात उनके 108वें जन्म में उन्होंने घोर तप कर शिव जी को प्रसन्न किया और इसी तृतीया के दिन शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। तभी से यह तिथि पति-पत्नी के पवित्र बंधन का प्रतीक मानी जाने लगी।

पुराणों के अनुसार, इस दिन हिमालय पुत्री पार्वती ने हरियाली के मौसम में अपने पिता के घर जाकर शिव से पुनर्मिलन का आनंद मनाया। अतः यह दिन पुनर्मिलन, सौभाग्य और नारी की शक्ति का प्रतीक बन गया। इस दिन विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि को जागरण कर शिव-पार्वती की कथा सुनती हैं। यह व्रत पति के दीर्घ जीवन और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना से किया जाता है। महिलाएं इस दिन सोलह शृंगार करती हैं – जैसे मेंहदी, हरे वस्त्र, हरे चूड़ी, बिंदी, बिछुए आदि। हरा रंग हरियाली, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है।

महिलाएं मिट्टी या धातु की बनी तीज माता की मूर्ति की पूजा करती हैं, उन्हें सिंदूर, चूड़ी और मेहंदी अर्पित करती हैं और शिव-पार्वती के मिलन की कथा सुनती हैं।हरियाली तीज के दिन गांवों और शहरों में झूले झूलने की परंपरा होती है। महिलाएं झूले पर बैठकर पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, जो प्रेम, विरह और मिलन की भावनाओं से भरे होते हैं।

हरियाली तीज केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्री की आत्मशक्ति, उसकी श्रद्धा, प्रेम और बलिदान की अभिव्यक्ति है। यह पर्व यह भी दर्शाता है कि एक नारी अपने संकल्प, प्रेम और तपस्या से ईश्वर को भी वश में कर सकती है। यह पर्व स्त्री के आत्मविश्वास, उसकी सामाजिक भूमिका और उसकी सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाता है।

'हरियाली' शब्द ही संकेत करता है कि यह पर्व प्रकृति से जुड़ाव का संदेश देता है। यह सावन मास की ताजगी, हरियाली और वर्षा ऋतु की सौंदर्यता का उत्सव है। इस दिन महिलाएं प्रकृति के सान्निध्य में झूले झूलती हैं, वृक्षों की पूजा करती हैं, और चारों ओर हरेपन का आनंद लेती हैं। इस प्रकार यह पर्व पर्यावरण-संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन की प्रेरणा भी देता है।हरियाली तीज का आयोजन सामूहिक रूप से मंदिरों, बाग-बगिचों, समाजिक स्थलों पर किया जाता है, जहां महिलाएं एक-दूसरे को सौभाग्य की वस्तुएं देती हैं, गीत-संगीत का आयोजन करती हैं और पारंपरिक व्यंजन जैसे घेवर, पूड़ी, खीर आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रकार यह पर्व सामाजिक एकता और मेलजोल को बढ़ाता है।

 तीज से एक दिन पहले महिलाएं हाथों और पैरों में मेंहदी लगाती हैं। माना जाता है कि जितनी गहरी मेंहदी, उतना अधिक पति का प्रेम। सामूहिक रूप से महिलाएं तीज माता की कथा सुनती हैं, जिसमें माता पार्वती के तप, शिव के स्वीकार और उनके मिलन की गाथा होती है। सूर्यास्त के समय महिलाएं जल, फल, फूल, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, और मिठाइयों से तीज माता की पूजा करती हैं।

हरियाली तीज नवविवाहित स्त्रियों के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है। उन्हें 'सावन की ससुराल' भेजा जाता है, जहां उन्हें सजी-धजी थाली में श्रृंगार का सामान, मिठाइयां और वस्त्र उपहारस्वरूप दिए जाते हैं। यह नववधु के सौभाग्य का प्रथम पर्व माना जाता है। हरियाली तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक संस्कृति, श्रद्धा और प्रेम का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व स्त्री की आस्था, प्रेम की पराकाष्ठा, और नारी की सामाजिक भूमिका का सम्मान करता है। शिव-पार्वती का यह आदर्श प्रेम हमें सिखाता है कि समर्पण, संयम और आस्था से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। हरियाली तीज मनाकर हम न केवल परंपरा को निभाते हैं, बल्कि जीवन के प्रति आभार और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता भी प्रकट करते हैं।

"हरियाली तीज की शुभकामनाएं , सौभाग्य, सुख और समृद्धि आपके जीवन में सदैव बनी रहे।"

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