हर-हर महादेव के जयकारों संग शिवालयों में गूंजा श्रद्धा का स्वर, बारिश बनी देव सेवा का माध्यम

भगवान शिव के भक्तों ने बारिश की बूंदों संग किया जलाभिषेक

विनोद कुमार झा, नोएडा। श्रावण मास के पवित्र अवसर पर पूरा देश शिवमय हो उठा है। कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। गंगाजल से भरे कलश सिर पर उठाए, "हर-हर महादेव" और "बोल बम" के गगनभेदी नारों के साथ भक्तजन देशभर के शिवालयों की ओर बढ़ रहे हैं। बुधवार को हो रही बारिश मानो इंद्रदेव ने स्वयं कांवड़ियों की सेवा में जल बरसाकर अपनी श्रद्धा अर्पित की।

बारिश में भीगते हुए शिवभक्तों का जलाभिषेक : बारिश की एक-एक बूंद जैसे शिवभक्तों के उत्साह को और भी प्रखर करती रही। भीगते हुए, थके हुए, मगर अडिग श्रद्धा के साथ भक्तों ने मंदिरों में पहुंचकर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक किया। यह दृश्य देखकर हर मन श्रद्धा से भर गया। शिवभक्तों का कहना था कि इस बार इंद्रदेव ने भी जल बरसाकर शिव सेवा में भाग लिया।

"हम तो जल लाए थे गंगोत्री से, लेकिन जब ऊपर से भी बूंदें बरसने लगीं, तो लगा जैसे प्रकृति भी हर-हर महादेव कह रही हो," एक शिवभक्त ने मुस्कराते हुए कहा।

शिवालयों में गूंजे महादेव के जयकारे : देश के कोने-कोने में स्थित शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। मंदिर परिसर 'हर हर महादेव', 'बम बम भोले' और 'जय शिव शंकर' जैसे नारों से गूंजते रहे। श्रद्धालु शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध, दही, शहद और गंगाजल अर्पित करते हुए परिवार, समाज और राष्ट्र की मंगलकामना करते रहे।

जब आसमान भी बना श्रद्धालु : शिवमहिमा का वर्णन करते हुए कई भक्तों ने कहा कि भगवान शिव केवल जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं, और इस बार इंद्रदेव ने स्वयं उनकी सेवा में योगदान दिया। बारिश की फुहारें श्रद्धा की उस भावना का प्रतीक बन गईं, जो शिवभक्तों को हर बाधा पार करने की प्रेरणा देती हैं।

भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले दिव्य श्लोक

करपूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥

(शिव की करूणामयी छवि का वर्णन करता यह श्लोक श्रद्धालुओं को अपार शांति देता है।)

नमः शिवाय शान्ताय शान्तस्वरूपिणे।
शिवाय शान्तिरूपाय शान्ताय नमो नमः॥

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

(महा मृत्युंजय मंत्र – रोग, भय और मृत्यु से रक्षा के लिए शिव को समर्पित शक्तिशाली स्तुति)

 सेवा, समर्पण और साधना का संगम : कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि यह सेवा, त्याग और तपस्या का प्रतीक बन चुकी है। गांव-गांव में लोगों ने शिवभक्तों के लिए जल, फल, भोजन और विश्राम की व्यवस्था की। स्वयंसेवकों ने नंगे पांव चल रहे कांवड़ियों के पैरों की सेवा की, तो कहीं छोटे बच्चों ने "बोल बम" कहकर उनका हौसला बढ़ाया।

श्रावण मास का यह पर्व केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति, समाज और भक्ति की त्रिवेणी का संगम है। जब इंसान, देवता और प्रकृति एक ही ध्येय से जुड़ जाएं  भगवान शिव की आराधना  तो यह युगों तक स्मरणीय बन जाता है।

हर-हर महादेव!

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