लेखक : विनोद कुमार झा
पुरानी चीज़ें अक्सर इतिहास की धूल में छिप जाती हैं, लेकिन कभी-कभी, वही चीज़ें किसी की किस्मत बदल देती हैं। यह कहानी एक ऐसे ही रहस्य, रोमांच और प्रेम से भरे सफर की है, जहाँ नायक और नायिका की मुलाकात किस्मत से नहीं, बल्कि एक चोरी से होती है। यह चोरी एक जोड़ी कान की बालियों ने मिलाया न सिर्फ प्रेम में, बल्कि एक छुपे हुए सच की तलाश में। इसके प्रमुख पात्र इस प्रकार है :-
नायिका – अदिति शर्मा: दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक होशियार, आत्मनिर्भर और कला में रुचि रखने वाली छात्रा। उसे एंटीक ज्वेलरी का बहुत शौक है, खासकर अपनी दादी की दी हुई राजस्थानी झुमके उसकी सबसे प्रिय निशानी हैं।
नायक – कबीर राठौड़: जयपुर का एक रहस्यमयी, दिलेर और तेज़ दिमाग वाला युवक। रात में एक ‘एथिकल हैकर’, दिन में एक इतिहास प्रेमी और पुरानी वस्तुओं का कलेक्टर।
अदिति शर्मा दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा थी, लेकिन उसका मन किताबों से कहीं ज़्यादा अपनी दादी की कहानियों में बसता था। दादी एक समय में राजस्थान की किसी रियासत से जुड़ी थीं। उनकी सबसे प्रिय चीज़ थी – एक जोड़ी झिलमिलाती हुई राजस्थानी बालियां, जिनमें नन्हें-नन्हें मीनाकारी के फूल थे। वे बालियां अदिति को विरासत में मिली थीं। लेकिन पिछली गर्मियों में जब अदिति जयपुर गई थी, वे बालियां होटल से चोरी हो गई थीं। अदिति ने बहुत ढूंढ़ा, लेकिन वे जैसे हवा में गायब हो गईं।
एक साल बाद, एक दिन अदिति कनॉट प्लेस के एक एंटीक बाजार में घूम रही थी। वहाँ की एक दुकान पर उसकी नज़र ठहर गई एक काँच के बॉक्स में रखी थी वही बालियों जैसी जोड़ी। दिल जोर से धड़क उठा। वह झुकी, देखने लगी। तभी एक युवक तेज़ी से आया, बालियां खरीदीं और बाइक पर निकल गया। अदिति सिर्फ एक चीज़ देख पाई उसकी जैकेट पर बना एक सुनहरा बाघ।
उस रात वह सो नहीं सकी। उसके मन में एक ही सवाल था – वो लड़का कौन था? क्या उसने चोरी की थीं? या वो भी किसी तलाश में था? कुछ दिनों की खोज और एक ऑनलाइन सुराग अदिति को जयपुर ले आया। वहाँ उसे पता चला कि पुरानी विरासत से जुड़ी चीज़ें चोरी होकर एक रहस्यमयी नेटवर्क के ज़रिए बेची जा रही हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी – इस नेटवर्क में एक नाम बहुत बार आ रहा था कबीर राठौड़। कबीर, जो राजपूताना हवेलियों का शौक़ीन, पुरानी पेंटिंग्स का जानकार और एक अर्ध-गुप्त डिजिटल नेटवर्क का हिस्सा था। वो अतीत की चीज़ों को तलाश कर उन्हें संग्रहालयों तक पहुंचाने का दावा करता था। लेकिन क्या वो वाकई एक ‘हीरो’ था?
हवामहल की छांव में जब अदिति कैमरा लेकर घूम रही थी, तभी किसी से टकरा गई। कैमरा गिरा, और जब उसने ऊपर देखा वही बाघ वाली जैकेट! “तुम?!” अदिति चौंकी। कबीर मुस्कुराया, “पहचाना?”
“वो बालियां मेरी हैं,” अदिति बोली। कबीर पल भर चुप रहा, फिर बोला “नहीं, ये मेरी माँ की थीं।” वो बात वहीं अधूरी छूट गई। लेकिन अदिति जान गई कि उसके सवालों के जवाब कबीर के पास हैं।
अदिति ने कबीर का पीछा करना शुरू किया। वो उसके किले जैसे पुराने घर पहुँची वहाँ उसने पाया कि कबीर की माँ भी एक इतिहासविद् थीं जो अचानक लापता हो गई थीं 15 साल पहले। और उन्होंने भी वही बालियां पहनी थीं फोटो में अदिति को दिखी वही डिज़ाइन!
अब शक यक़ीन में बदलने लगा दोनों बालियों की जोड़ी एक ही थी। लेकिन कैसे?
वहां एक पुराने संदूक से कबीर को एक डायरी मिली उसमें अदिति की दादी और उसकी माँ की तस्वीर थी। लिखा था ,"हम विरासत की रक्षक हैं। ये बालियां नारी-बल, इतिहास और गुप्त परंपरा की पहचान हैं। कोई इनका दुरुपयोग न कर पाए, इसके लिए हमें अलग होना पड़ा..."
अब अदिति और कबीर समझ गए ये बालियां एक गुप्त संगठन की पहचान थीं जो रियासतों की ऐतिहासिक वस्तुओं को लूट से बचाता था।
इस खोज में कबीर और अदिति के बीच एक अद्भुत जुड़ाव बनने लगा। जब वे पुरानी हवेलियों में छानबीन करते, तो एक दूसरे की आँखों में उतरते चले जाते। एक रात झील के किनारे कबीर ने कहा, “जब तुम पास होती हो, बालियां भी कम चमकती हैं।”
अदिति हँस पड़ी “क्या तुम हर लड़की को यही कहते हो?” “नहीं,” कबीर ने गंभीरता से कहा, “हर लड़की उस रहस्य का हिस्सा नहीं होती, जो मेरी माँ की आखिरी सांस में था।”
कबीर और अदिति ने मिलकर वो सारी चीज़ें एक जगह इकट्ठा कीं, जो रियासतों से लूट कर बेची गई थीं। उन्होंने एक स्वतंत्र संग्रहालय खोला "शक्ति वंश विरासत केंद्र"। और बालियों की जोड़ी अब एक विशेष कमरे में रखी गई साथ में उस डायरी की कॉपी भी।
उस शाम जब अदिति बालियों को काँच में रख रही थी, कबीर ने कहा ,“अब ये सिर्फ इतिहास नहीं, हमारे भविष्य का प्रतीक हैं।” फिर उसने धीरे से बालियां निकालकर अदिति के कानों में पहनाईं। बालियां पहनाते हुए कबीर ने फिर से वही बात दोहराया, “अब ये बालियां राज़ की नहीं, बल्कि हमारे रिश्ते की पहचान हैं।” और कहा,“हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती, लेकिन जब प्यार सच्चा हो, तो वह हमारा प्यार हैं।”
कभी जो बालियां दो अलग राहों के प्रतीक थीं, अब वो एक ही मंज़िल की पहचान बन गईं। कबीर और अदिति की प्रेम कहानी “कानों की बालियों की चमक” के साथ इतिहास और वर्तमान का संगम बन गई एक ऐसा संगम जो पीढ़ियों तक चमकता रहेगा।