विनोद कुमार झा

1999 की गर्मियों में, जब दुनिया शांति की उम्मीद कर रही थी, पाकिस्तान ने धोखे से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया। यह एक ऐसी चुनौती थी जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। दुश्मन ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्जा कर लिया था, जिससे उन्हें भारतीय चौकियों पर सीधा हमला करने का फायदा मिल रहा था।
लेकिन भारतीय सेना ने इस अप्रत्याशित चुनौती का सामना बेहद दृढ़ता और शौर्य के साथ किया। हमारे वीर जवानों ने शून्य से नीचे के तापमान और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना, दुश्मन के मजबूत गढ़ों को भेदने का असंभव-सा लगने वाला कार्य अपने हाथों में लिया। टाइगर हिल, तोलोलिंग, प्वाइंट 4875 (बत्रा टॉप) जैसी चोटियों पर हुई लड़ाइयां भारतीय सेना के अद्भुत साहस की गवाह हैं।
हमारे सैनिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए, दुश्मन पर घातक प्रहार किए। राइफलमैन संजय कुमार, ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव जैसे वीर योद्धाओं ने असाधारण शौर्य का प्रदर्शन करते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित हुए। कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे जैसे अनेक जांबाज अधिकारियों और सैनिकों ने "ये दिल मांगे मोर" का नारा लगाते हुए और दुश्मन को धूल चटाते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी वीरता और त्याग आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
इस युद्ध में हर सैनिक ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की शपथ ली थी। उनके अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प ने दुश्मन के हर नापाक मंसूबे को ध्वस्त कर दिया। भारतीय सेना ने न केवल अपने क्षेत्र को वापस जीता, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
कारगिल विजय दिवस हमें उन वीर शहीदों की याद दिलाता है जिन्होंने राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। यह दिन हमें सेना के उस मजबूत इरादे और त्याग की भावना को सलाम करने का अवसर देता है जो हर मुश्किल में देश के लिए ढाल बनकर खड़े रहते हैं।
आइए, इस पावन अवसर पर हम उन सभी शूरवीरों को नमन करें जिन्होंने हमें सुरक्षित रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और उनकी शौर्यगाथा हमें सदैव राष्ट्रभक्ति के पथ पर अग्रसर करती रहेगी।
जय हिंद!