विनोद कुमार झा
पूर्वोत्तर भारत का यह स्वर्ग, "मेघों का घर" मेघालय, न केवल अपनी हरियाली, बादलों और झरनों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी धरती पर बसी पौराणिक मंदिरों की कहानियाँ भी अद्भुत हैं। यह भूमि जितनी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, उतनी ही आध्यात्मिक और रहस्यमयी कथाओं से भी ओतप्रोत है। यहाँ के मंदिर आदिकालीन श्रद्धा, लोक मान्यताओं और दैवी चमत्कारों का प्रतीक हैं। प्रस्तुत हैं मेघालय के प्रमुख पौराणिक मंदिरों की कुछ विशेष कहानियाँ:
उमांग लशे मंदिर ( “नभ से उतरने की सीढ़ी”)
स्थान: सोहपेटबनेंग पर्वत, शिलांग से 20 किमी दूर
कथा: खासी जनजाति की मान्यता के अनुसार, एक समय मनुष्य और ईश्वर के बीच सीधा संपर्क था। वे 'सोहपेटबनेंग' नामक पर्वत के माध्यम से स्वर्ग और पृथ्वी के बीच आते-जाते थे। यह पर्वत एक "देव सीढ़ी" की तरह था, जिसे 'U Lum Sohpetbneng' कहा गया – यानी 'नभ को जोड़ने वाला स्तंभ'। यह खासी जनजाति के लिए एक अत्यंत पवित्र और पूजनीय स्थल है। "नभ से उतरने की सीढ़ी" या "स्वर्ग की नाभि" के रूप में जाना जाने वाला यह स्थान खासी लोगों की पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक मान्यताओं का केंद्र है।
खासी लोककथाओं के अनुसार, उ लुम सोहपेटबनेंग वह बिंदु था जहाँ स्वर्ग और पृथ्वी को एक सुनहरी सीढ़ी (जिंगकिएंग किसियार) द्वारा जोड़ा गया था। ऐसा माना जाता है कि इसी सीढ़ी के माध्यम से "हैनिउ ट्रेप" (सात कुल या जनजातियाँ) स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। ये सात कुल खासी जनजाति के पूर्वज माने जाते हैं।
यह कहानी बताती है कि प्रारंभ में, मनुष्य दिन के समय पृथ्वी पर खेती करने के लिए उतरते थे और शाम को सुनहरी सीढ़ी के माध्यम से स्वर्ग में लौट जाते थे। लेकिन एक दिन, मानवीय महत्वाकांक्षा के कारण, यह सीढ़ी काट दी गई, जिससे सात कुल पृथ्वी पर ही फंसे रह गए। भगवान ने उन पर दया की और उन्हें विभिन्न फसलों को उगाने और जीवन जीने के तरीके सिखाए।
तीर्थयात्रा का केंद्र: यह स्थान खासी जनजाति के पारंपरिक धर्म 'सेंग खासी' के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। हर साल फरवरी के पहले रविवार को, 'सेंग खासी' समुदाय के लोग इस पवित्र पर्वत पर ट्रेकिंग करते हैं और धन्यवाद अनुष्ठान करते हैं।
पूर्वजों का सम्मान: यह पहाड़ी खासी लोगों की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं और उनके पूर्वजों के साथ उनके संबंध का प्रतीक है। यह उनके सांस्कृतिक विरासत और पहचान का एक अभिन्न अंग है। यहां हर वर्ष फरवरी माह में ‘Sohpetbneng Festival’ मनाया जाता है, जिसमें खासी समुदाय के लोग सफेद वस्त्र धारण कर, पर्वत की चोटी पर चढ़ते हैं। वे वहाँ बैठकर पूर्वजों की आत्मा का स्मरण, प्रकृति की आराधना, और आध्यात्मिक पुनर्संयोजन करते हैं। कहते हैं "जो पर्वत की चोटी पर बैठ कर मौन से बात कर सकता है, वही आत्मा की सीढ़ी चढ़ सकता है।" यहाँ कोई मूर्ति या शिल्प नहीं है केवल प्राकृतिक चोटी ही मंदिर है। यही इसकी आध्यात्मिकता की चरम स्थिति है। यह पर्वत आज भी खामोशी में आत्मा को बुलाता है, जो अपने भीतर स्वर्ग की सीढ़ी खोज सके।
प्राचीन ज्ञान का भंडार: उ लुम सोहपेटबनेंग को प्राचीन ज्ञान और मूल्यों का स्थान माना जाता है, जो गहरी धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा का प्रतीक है।
भौगोलिक स्थिति और पर्यटन : उ लुम सोहपेटबनेंग मेघालय के री-भोई जिले में, शिलांग-गुवाहाटी राजमार्ग पर स्थित एक खूबसूरत पहाड़ी है। यह लगभग 1,343 मीटर (या 1,434 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है और आसपास की घाटियों और पहाड़ियों के लुभावने मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
हालांकि यह उतना प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नहीं है जितना अन्य भारतीय गंतव्य हैं, यह स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल रहा है। मेघालय सरकार की पहल से हाल के वर्षों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है, जो इस आध्यात्मिक स्थल की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को उजागर करने पर केंद्रित है। यहां का वातावरण शांत और मनमोहक है, जो प्रकृति प्रेमियों और आध्यात्मिकता की तलाश करने वालों को आकर्षित करता है। उ लुम सोहपेटबनेंग केवल एक पहाड़ी नहीं है, बल्कि खासी लोगों की आस्था, इतिहास और संस्कृति का एक जीवित प्रतीक है, जो उन्हें उनके दिव्य मूल और प्राचीन परंपराओं से जोड़ता है।
किन्तु जब मानवों में पाप और अहंकार बढ़ने लगा, ईश्वर ने यह संपर्क तोड़ दिया। तब से यह स्थल आध्यात्मिक पुनःजागरण का प्रतीक बन गया। यहां हर वर्ष हजारों लोग इस पर्वत की चोटी पर चढ़कर प्रार्थना करते हैं और अपने पूर्वजों से पुनः जुड़ने का प्रयास करते हैं।