विनोद कुमार झा
पश्चिम जयंतिया हिल्स, मेघालय में स्थित नॉंगलसियांग देवी मंदिर स्थानीय मान्यताओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह पवित्र स्थल एक नागरूपिणी देवी को समर्पित है, जिनके बारे में यह विश्वास है कि वे पूरे गांव की रक्षा करती हैं। यह मंदिर क्षेत्र की गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों को दर्शाता है, जहाँ प्रकृति और देवत्व के बीच गहरा संबंध स्थापित है।
नॉंगलसियांग देवी मंदिर , स्थान: वेस्ट जयंतिया हिल्स
देवी: एक नागरूपिणी देवी जिनकी रक्षा पूरे गांव पर मानी जाती है।
पुरानी लोककथा के अनुसार, एक बार एक गाँव में भीषण अकाल पड़ा। गांव के पास एक गुफा में एक नाग कन्या निवास करती थी। जब गांव वाले उसकी सेवा करने लगे, तो देवी प्रसन्न हुई और वर्षा लाकर फसलें उगाईं। उसने वचन दिया कि जब तक गांव के लोग नैतिक और सच्चे रहेंगे, वह उन्हें आशीर्वाद देती रहेगी। आज भी यह मंदिर नाग पूजा और प्राकृतिक संतुलन का प्रतीक है।
लोक कथा के अनुसार एक बार एक व्यापारी ने देवी की भूमि हड़पने की कोशिश की वह अगले दिन बिना किसी चोट के मरा पाया गया। किंवदंती है कि देवी आज भी रात्रि में गुफा के समीप नृत्य करती हैं और जिसे वह बुलाए, वही उसे देख सकता है।
एक अन्य कथाओं के अनुसार एक बार जयंतिया की वनों में बसे एक गाँव में वर्षों से सूखा पड़ा था। न कोई वर्षा होती थी, न फसलें उगती थीं। लोग परेशान और निराश हो गए। एक दिन गाँव की सबसे बुजुर्ग महिला ‘आई-रोंगखम’ को एक स्वप्न आया। स्वप्न में एक दिव्य कन्या ने उसे कहा: मैं इस धरती की नाग आत्मा हूँ। मैं इस जंगल की रक्षा करती हूँ। यदि लोग मुझसे जुड़ें, मुझे सम्मान दें, तो मैं गाँव को जल, फल और धन दूँगी।”
जब सुबह हुई, तो बुजुर्ग महिला गांव की पंचायत के पास गई और सबको स्वप्न सुनाया। कुछ ने विश्वास किया, कुछ ने उपहास किया। बुजुर्ग महिला ने उस गुफा की खोज की जहाँ नाग कन्या प्रकट हुई थी। गुफा एक झरने के समीप थी, जिसे आज ‘नॉंगलुह जलधारा’ कहा जाता है। उसने वहाँ घास से बने दीयों को जलाया, एक कच्चे दीपक में चावल, फूल और हल्दी चढ़ाई।
दूसरे ही दिन गाँव में घनघोर वर्षा हुई। सूखी हुई धरती पर हरियाली लौट आई। लोगों ने यह चमत्कार देखा और गुफा के समीप एक कच्चा मंदिर बना दिया, जिसे ‘नाग देवी का वास स्थान’ कहा गया। यह देवी न तो सामान्य मूर्ति में प्रकट होती हैं और न ही किसी मानव रूप में।
लोककथाओं के अनुसार, वे एक अर्ध-नागिनी और अर्ध-मानवी हैं । उनके बाल सर्प के फनों जैसे होते हैं, उनकी आँखें जल की तरह निर्मल होती हैं, और वे जब प्रकट होती हैं, तो झरने की आवाज़ तेज़ हो जाती है।
यहां वर्ष में एक बार, 'नोंगलसियांग महोत्सव' के दिन, गांववाले नाग देवी को “पानी का दान” अर्पित करते हैं। वे झरने के जल को कलश में भरकर लाते हैं और गुफा के द्वार पर रख देते हैं। मंदिर के भीतर प्रवेश किसी को अनुमति नहीं केवल “नागवंशज पुजारी” को ही एक विशेष रात्रि में देवी के दर्शन होते हैं।
मंदिर का महत्व : यह मंदिर प्राकृतिक आत्माओं की भारतीय अवधारणा को प्रकट करता है जहाँ न पत्थर की मूर्ति होती है, न सिंहासन बल्कि पानी, जंगल, हवा और गुफा ही देवता होते हैं। यह स्थल आदिवासी आस्था और मातृ शक्ति का अद्भुत समागम है। यहाँ पूजा एकता और आत्मस्वरूप को पुनः जोड़ने की प्रक्रिया मानी जाती है।
किसी भी परिवार में अगर लगातार दुर्भाग्य आए, तो वे यहाँ आकर देवी से ‘क्षमा याचना’ और 'पुनः संतुलन’ की प्रार्थना करते हैं। गाँव में मान्यता है कि यदि कोई झूठे मन से देवी के पास कुछ माँगता है, तो उसकी सपने में साँप डसता है।
नॉंगलसियांग की यह कथा बताती है कि देवी की उपस्थिति चमत्कारों में नहीं, संतुलन में है। वह देवी जंगल में है, जल में है, हृदय में है। वह दिखाई नहीं देती, परंतु जब हम प्राकृतिक लय से जुड़ते हैं, तब उसकी कृपा बरसती है।