विनोद कुमार झा
प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा में चंदन को अत्यंत पवित्र, शुद्ध और ईश्वर का प्रिय पदार्थ माना गया है। विशेषकर श्रीखंड चंदन जो हल्के पीले रंग का, शीतलता और दिव्यता से भरपूर होता है का प्रयोग देवपूजन में विशेष महत्व रखता है। जब भी किसी देवता की प्रतिमा या शिवलिंग पर श्रीखंड चंदन अर्पित किया जाता है, वह केवल एक भौतिक क्रिया नहीं होती, बल्कि आत्मा की शुद्धि, मन की स्थिरता और भक्ति की परिपूर्णता का प्रतीक होती है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, स्कन्द पुराण और पद्म पुराण जैसे धर्मग्रंथों में श्रीखंड चंदन के गुणों और धार्मिक उपयोग का विस्तृत वर्णन मिलता है। स्कन्द पुराण में यह उल्लेखित है कि चंदन का तिलक लगाने से व्यक्ति के अंदर के ताप समाप्त होते हैं और मन, इंद्रियों व आत्मा को परम शांति प्राप्त होती है। श्रीखंड चंदन की विशेषता यह है कि यह न केवल इंद्रिय सुख को शांत करता है, बल्कि भगवान को भी प्रिय होता है।
शास्त्रों में यह बताया गया है कि भगवान विष्णु को श्रीखंड चंदन विशेष रूप से प्रिय है। उन्हें स्नान के बाद चंदन से लेपित करना वैकुंठ की सेवा का द्योतक है। इतना ही नहीं, भगवान श्रीकृष्ण, राम , और शिव की आराधना में भी श्रीखंड चंदन की विशेष भूमिका है। इससे आत्मा निर्मल होती है और पूजा में सात्त्विकता का संचार होता है।
वर्तमान युग में जब पूजा मात्र एक कर्मकांड बनती जा रही है, श्रीखंड चंदन हमें याद दिलाता है कि भक्ति केवल शब्दों में नहीं, अपितु स्पर्श, सुगंध और भावना में भी समाहित होती है। यह चंदन हमारे हृदय में देवत्व की आभा जगाने वाला एक माध्यम है एक सेतु है भक्त और भगवान के बीच।
स्कन्द पुराण में श्रीखंड चंदन का उल्लेख इस प्रकार है:-
गंधं दत्तं यदा भक्त्या, श्रीखण्डं विशेषतः।
तदा तुष्टो भवत्येव, विष्णुर्वा शंकरोऽपि च॥
(स्कन्द पुराण, ब्रह्मखंड) इस श्लोक में कहा गया है कि जब भक्त श्रद्धा से भगवान को श्रीखंड चंदन अर्पित करता है, तो भगवान विष्णु या भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
पौराणिक कथा: पुराकाल में विदर्भ देश में चंदनसेन नामक एक ब्राह्मण रहते थे, जो अत्यंत निर्धन थे, परंतु उनका विश्वास और भक्ति अचल थी। वह प्रतिदिन किसी भी प्रकार से श्रीकृष्ण की पूजा करते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक साधु मंदिर में भगवान विष्णु को पीले रंग का सुगंधित लेप चढ़ा रहे हैं। जब उन्होंने पूछा, तो ज्ञात हुआ कि वह श्रीखंड चंदन है, जो शरीर की शुद्धि के साथ-साथ आत्मा को भी निर्मल करता है।
चंदनसेन ने व्रत लिया कि वे भी भगवान को श्रीखंड चंदन अर्पित करेंगे, भले ही भूखे रहना पड़े। उन्होंने कई दिनों तक वन में घूमकर श्रीखंड वृक्ष की खोज की। अंततः एक पर्वत की तलहटी में उन्हें श्रीखंड का एक छोटा वृक्ष मिला, जिसके नीचे उन्होंने साधना की। तेरहवें दिन भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और कहा “हे ब्राह्मण, तुम्हारी भावना ही मेरे लिए श्रीखंड है। जो चंदन तुम अपने श्रम, प्रेम और तप से अर्पित करते हो, वह त्रिलोक में सर्वश्रेष्ठ है।”
यह सुनकर चंदनसेन की आंखों से आंसू बहने लगे। उसी क्षण वह वृक्ष श्रीखंड चंदन में परिवर्तित हो गया और एक दिव्य कूप से सुगंधित जल बहने लगा। तभी से वहां के पुजारी श्रीखंड चंदन से ही पूजा करने लगे। यह स्थान कालांतर में *‘गंधतीर्थ’* कहलाया और आज भी वहां श्रीखंड चंदन की महिमा गायी जाती है।
पद्म पुराण में उल्लेख:
गंधद्रव्यमयं देवं, चन्दनेनालिभावयेत्।
तेन पूजितमात्रेण, सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
(पद्म पुराण, उत्तरखंड)
जिसका अर्थ है जो व्यक्ति भगवान को चंदन से पूजता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
एक और कथा के अनुसार द्वापर युग में मथुरा में एक बालक अमल रहता था, जो श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त था। एक दिन मंदिर में जब पुजारी ने उससे कहा कि "बिना श्रीखंड चंदन के पूजा अधूरी रहती है," तो अमल ने व्याकुल होकर गोपाल से प्रार्थना की "मुझे श्रीखंड नहीं, केवल मेरी सच्ची भक्ति है, प्रभु!" उसी रात भगवान ने पुजारी के स्वप्न में दर्शन देकर कहा जो बालक मुझे अपने भावों से पूजता है, उसके स्पर्श मात्र से मुझे श्रीखंड की सुगंध मिलती है।
सुबह होते ही मंदिर के द्वार से चंदन की भीनी-भीनी सुगंध फैलने लगी। पुजारी ने देखा, अमल नंगे पांव, धूल में लथपथ, पर आंखों में प्रेम लिए भगवान को प्रणाम कर रहा है। तभी से मंदिर में नियम बना कि सबसे पहले भक्तों के स्पर्श से बने चंदन से श्रीकृष्ण का तिलक किया जाएगा।
श्रीखंड चंदन केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है, वह भक्त की भावना, शुद्धता और आत्मार्पण का प्रतीक है। धर्मग्रंथों में वर्णित इन कथाओं और श्लोकों से स्पष्ट होता है कि श्रीखंड चंदन से पूजा करना न केवल देवताओं को प्रसन्न करता है, बल्कि आत्मा को भी प्रभु से जोड़ता है। जब मन, कर्म और वचन से चंदन समर्पित होता है, तब वह प्रभु के अधरों पर मुस्कान बनकर खिलता है।