लेखक: विनोद कुमार झा ✍️
इतिहास केवल घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि चेतना का प्रवाह है। सनातन धर्म में ब्रह्मांडीय समय को चार युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग में विभाजित किया गया है। प्रत्येक युग की अपनी प्रवृत्ति, चेतना और धर्म होता है। लेकिन जब भी किसी युग की प्रवृत्ति पतन की ओर बढ़ती है, जब धर्म की नींव डगमगाने लगती है, तब युद्ध और प्रकृति का कोप मिलकर उस युग का पटाक्षेप करते हैं।
यह कोई संयोग नहीं, बल्कि सनातन सत्य है कि युगों की समाप्ति का संकेत महायुद्ध , प्राकृतिक आपदाएं और नैतिक पतन के रूप में मिलता है। चाहे सतयुग का अंत हो, त्रेता की विभीषिका हो, द्वापर का महासमर या कलियुग की वर्तमान हलचल हर बार एक अदृश्य शक्ति ने मनुष्यता को चेताया है कि अब समय बदलने वाला है।
सतयुग: जब अधर्म पर पड़ा ब्रह्मास्त्र का प्रहार
सतयुग को सत्य, तप, दया और योग का युग कहा गया। इस युग में धर्म अपने चतुर्थांश पर टिका था और अधर्म का प्रभाव नगण्य था। फिर भी जैसे-जैसे समय बढ़ा, राक्षसी प्रवृत्तियाँ उभरने लगीं। हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप जैसे असुरों ने धरती पर अत्याचार का जाल फैलाया। भगवान विष्णु को वाराह और नृसिंह अवतार लेना पड़ा। पृथ्वी का भार बढ़ने लगा, दैत्यों की संख्या बढ़ती गई।
युग का अंत प्रकृति के संतुलन के बिगड़ने , सत्य के प्रति अनास्था और दैत्यों के रक्तपात से हुआ। जब भगवान ने प्रलय रूप में जल से पृथ्वी को पुनः उठाया, वह केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पुनर्निर्माण भी था।
त्रेतायुग: रामायण काल और रावण के अंत के साथ युगांत
त्रेतायुग में धर्म तीन पायों पर खड़ा था, लेकिन मनुष्य की प्रवृत्तियाँ द्वंद्व में फँसने लगीं। प्रभु श्रीराम , जो स्वयं धर्म की मूर्ति थे, को बाल्यकाल से ही ताड़का, सुबाहु , मारीच , बलि, और अंततः रावण से युद्ध करना पड़ा।
यह कोई व्यक्तिगत युद्ध नहीं था, बल्कि अधर्म और अहंकार के विरुद्ध पूरी सृष्टि का युद्ध था।रावण, जो वेदों का ज्ञाता था, लेकिन अपने अभिमान और वासनात्मक विकारों के कारण धर्म विरोधी बन गया। लंका दहन, सेतु निर्माण , अशोक वाटिका की कथा और रावण वध केवल घटनाएं नहीं, युगांत की पूर्वपीठिका थीं। जैसे ही रावण गिरा, त्रेतायुग की अंतर्वस्तु बदलने लगी लोगों की श्रद्धा कमजोर होने लगी, अगला युग दस्तक देने लगा।
द्वापरयुग: महाभारत और धर्म का युद्ध
द्वापरयुग वह युग है जिसमें धर्म और अधर्म आमने-सामने खड़े हुए। भगवान श्रीकृष्ण के काल में कुरुक्षेत्र केवल एक भूभाग नहीं था, वह समूचे संसार की अंतःचेतना बन गया। महाभारत का युद्ध कोई साधारण संघर्ष नहीं था; यह युग का समापन करने वाला निर्णय था। पांच पांडवों और सौ कौरवों का युद्ध सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि मानवता के उत्तरदायित्व और नैतिक पतन की परख थी।
इस युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेनाएं , असंख्य योद्धा , अनेक तीर्थस्थल और धर्मशास्त्रों की व्याख्याएं झोंक दी गईं। युद्ध के अंत में जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया, वह केवल एक योद्धा के लिए नहीं था, बल्कि आने वाले युगों के लिए चेतावनी थी।
कलियुग: अनवरत युद्ध और बदलते युग की आहट
कलियुग का आरंभ होते ही मानवता ने अधर्म को ही धर्म समझना शुरू कर दिया। युद्ध अब केवल अस्त्र-शस्त्र से नहीं, विचारों, धर्मों, सीमाओं और भावनाओं से लड़ा जाने लगा।
इतिहास में अनगिनत युद्ध हुआ जैसे:- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे सभ्यताओं का पतन भी प्राकृतिक आपदाओं और संघर्षों से जुड़ा था। मौर्य वंश, चोल वंश और अन्य प्राचीन साम्राज्य युद्धों में लीन रहे। मुग़ल आक्रमण, अंग्रेज़ों का औपनिवेशिक शासन और 1857 का स्वतंत्रता संग्राम कलियुग के भीतर असंख्य युगों का संघर्ष समाहित है और आज भी जारी है। जैसे :-भारत-पाक युद्ध , भारत-चीन तनाव , ईरान-इजराइल संघर्ष , रूस-यूक्रेन युद्ध , इजराइल-गाज़ा टकराव, सब नवयुग की पीड़ा और प्रसव के प्रतीक हैं।
प्राकृतिक आपदाएं: सुनामी , भूकंप, महामारी (जैसे कोविड-19), ग्लोबल वार्मिंग , बर्फबारी का संतुलन टूटना सब कलियुग की बर्बरता का रूप हैं। जैसे प्रलय के पहले ब्रह्मांड हलचल में होता है, वैसे ही आज भी धरती और मनुष्य की चेतना अस्थिर होती जा रही है।
क्या कलियुग का अंत समीप है?
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि जब कलियुग अपने चरम पर पहुँचेगा तब इस प्रकार का दृश्य दिखाई देगा, पुत्र पिता का वध करेगा, जब स्त्री केवल वस्तु मानी जाएगी, जब धन ही धर्म बन जाएगा और जब न्याय केवल शोषण का रूप रह जाएगा तब भगवान कल्कि अवतार लेंगे। यह अंतिम अवतार होगा, जो समस्त अधर्म का संहार कर नव-सतयुग की स्थापना करेगा।
युद्ध केवल अस्त्रों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि समाज की चेतना का परावर्तन होता है। आज विश्व जिस मानसिक, सामाजिक और भौगोलिक युद्धों से जूझ रहा है, वह संकेत है कि कलियुग का अंत नजदीक है। अब जरूरत है कि हम गीता के शांति संदेश , रामायण के मर्यादा मार्ग , विष्णु के दैवी रूपों, और प्रकृति के संतुलन को समझें। अगर नहीं समझे तो अगला युद्ध केवल देशों के बीच नहीं, मनुष्यता और विनाश के बीच होगा।