फादर्स डे पर विशेष : पिता एक अदृश्य ममता का प्रतिबिम्ब

  विनोद कुमार झा

एक पिता… वह व्यक्ति जो जीवन की दौड़ में अक्सर पीछे रह जाता है, ताकि उसका बच्चा आगे बढ़ सके। मां की ममता अक्सर कविता बन जाती है, किंतु पिता की ममता तपस्या बनकर रह जाती है न दिखने वाली, न सुनाई देने वाली, पर जीवन भर साथ चलने वाली। वह चुपचाप सब कुछ सहकर भी मुस्कराता है, कभी छांव बनता है, कभी दीवार, तो कभी पुल। फादर्स डे जैसे दिन उस गहराई की याद दिलाते हैं, जिसे अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं।

पिता सिर्फ एक रिश्ते का नाम नहीं होता, वह एक पूरा जीवन दर्शन होता है  संयम, साहस, त्याग और अनुशासन का अदृश्य आदर्श। वह अपने बच्चों की पहली साइकिल के पीछे दौड़ता है, पढ़ाई के खर्चों में अपने शौक भूल जाता है, और उम्र भर अपने सपनों को बच्चों की सफलता में तलाशता है। उसकी ममता भले आंसुओं में कम, पर निर्णयों और संघर्षों में ज्यादा दिखाई देती है।

आज के समय में जब परिवार बिखराव की कगार पर हैं, जिम्मेदारियों से भागने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ऐसे में पुत्र की जिम्मेदारी और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। जिस प्रकार पिता ने बेटे की उंगली थामकर उसे चलना सिखाया, उसी प्रकार अब बेटे को पिता का सहारा बनना होगा  न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी। उम्र बढ़ने पर पिता को अकेलापन न महसूस हो, यह सुनिश्चित करना हर पुत्र का धर्म है।

फादर्स डे एक दिन नहीं, एक दर्पण है  जो हमें याद दिलाता है कि पिता भी ममता रखते हैं, भले उनकी भाषा अलग हो। और ममता का उत्तरदायित्व होता है, न केवल प्रेम लौटाने का, बल्कि उनके उस अटूट समर्पण को समझने और निभाने का भी। इस लेख के माध्यम से हम न केवल पिता के योगदान को नमन करते हैं, बल्कि हर बेटे से यह आह्वान करते हैं कि वह भी अपने पिता का सहारा बने — जैसे किसी समय पिता उसके लिए बना था।

पिता को अक्सर कठोर, अनुशासनप्रिय या भावहीन समझा जाता है, लेकिन यह केवल उनका बाह्य आवरण होता है। उनके भीतर ममता का एक सागर होता है, जो उनके कर्तव्यों की सीमा में बंधा हुआ होता है। मां की ममता जब आँचल में सहेजती है, तब पिता की ममता जीवन की कठिन राहों पर चलते हुए सुरक्षा का कवच बनती है। वे कम बोलते हैं, पर उनके हर निर्णय में स्नेह छिपा होता है। चाहे वह देर रात काम से लौटना हो या बच्चों के भविष्य की चिंता में नींद गंवाना, पिता की हर कोशिश उनके ममत्व की अनकही भाषा होती है।

बचपन में जिस पुत्र को कंधे पर बिठाकर दुनिया दिखाई गई, अब वही पुत्र बड़ा होकर उस कंधे का सहारा बने  यही जीवन की स्वाभाविक यात्रा है। वृद्ध होते पिता जब कमजोरी, बीमारी या अकेलेपन का अनुभव करते हैं, तब उनका सबसे बड़ा सहारा उनका बेटा ही होता है। परंतु आधुनिक जीवनशैली और आत्मकेंद्रित सोच ने अक्सर इस रिश्ते की गरिमा को कमजोर कर दिया है। बेटों को चाहिए कि वे पिता के आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए उनके साथ संवाद, सेवा और समय के माध्यम से जुड़ें।

फादर्स डे पर हम अक्सर उपहार देकर अपना कर्तव्य मान लेते हैं, जबकि असली उपहार समय, संवाद और साथ है। एक कप चाय उनके साथ बैठकर पीना, उनकी कहानियों को सुनना, उन्हें यह एहसास दिलाना कि वे अकेले नहीं हैं  यह उनके लिए अमूल्य तोहफा है। इस दिवस को एक संवेदना पर्व बनाना चाहिए, जहां हम अपनी भावनाओं को खुलकर प्रकट करें और पिता के योगदान को सिर्फ याद ही नहीं करें, बल्कि उन्हें महसूस भी कराएं।

पिता वृक्ष की उस जड़ की तरह हैं, जो ज़मीन के नीचे होते हुए भी पूरे परिवार को स्थिरता और पोषण देती है। अगर जड़ें कमजोर हों, तो शाखाएं कितनी भी ऊंची क्यों न हों, पेड़ हिल जाता है। इसलिए पुत्रों का यह नैतिक और भावनात्मक उत्तरदायित्व बनता है कि वे उस जड़ की रक्षा करें — प्रेम, सेवा, सम्मान और समझदारी के जल से। इस फादर्स डे पर एक वचन लें "जैसे उन्होंने हमारा बचपन संवारा, अब हम उनका बुज़ुर्गपन संवारें।"


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