विनोद कुमार झा
पौराणिक काल में जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तो देवताओं और ऋषियों ने प्रश्न उठाया"मानव की भूख कैसे मिटेगी?" तब भगवान विष्णु ने कहा, “धरती माता स्वयं अपने गर्भ से ऐसे अन्न उत्पन्न करेंगी जो न केवल शरीर को पोषण देंगे, बल्कि आत्मा को भी पवित्र करेंगे।” उसी समय धरती ने अपने अंक से सात विशेष अन्न उत्पन्न किए, जिन्हें सप्तधान्य कहा गया—जो केवल भोजन नहीं, बल्कि दैवीय वरदान थे।
आज भी इन सात अन्नों का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों, व्रतों, पूजा-पाठ, यज्ञों और आत्मिक साधना में विशेष रूप से होता है। इनका उल्लेख वेदों, पुराणों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में देवत्व, ऊर्जा और संतुलन के प्रतीक रूप में किया गया है। आइए जानते हैं सप्तधान्य के बारे में विस्तार से...
सप्त दैवीय अन्न (7 Divine Grains) कौन-कौन से हैं?
# 1. जौ (Barley - यव)
दैवीय तत्व : भगवान विष्णु का अन्न
पौराणिक महत्व : यज्ञों और होम में सबसे पहले जौ ही अर्पित किया जाता है।
गुण : यह तप, त्याग और सात्विकता का प्रतीक है। इसकी उत्पत्ति क्षीरसागर मंथन से मानी जाती है।
# 2. तिल
दैवीय तत्व : पितरों को तृप्त करने वाला
पौराणिक मान्यता : भगवान यमराज ने इसे अपने श्राद्ध रूप में स्वीकार किया। इससे पितृ दोष की शांति होती है।
गुण : आत्मा को शुद्ध करने वाला और पुण्य प्रदायक अन्न।
# 3. चावल (शालि)
दैवीय तत्व : शांति और समृद्धि का प्रतीक
पौराणिक प्रसंग : लक्ष्मी पूजा, ग्रह प्रवेश, विवाह आदि में अक्षत (टूटे बिना चावल) अति पवित्र माने जाते हैं।
गुण : सुख, शांति और मंगलकारी ऊर्जा को आकर्षित करता है।
# 4. गेहूं (गोधूम)
दैवीय तत्व : शक्ति और पुष्टि का प्रतीक
धार्मिक उपयोग : कन्या पूजन में, माँ दुर्गा को अर्पित किया जाता है।
गुण : जीवन शक्ति, स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करता है।
# 5. चना (चणक)
दैवीय तत्व : श्री हनुमान जी का प्रिय
पौराणिक प्रसंग : हनुमान जयंती, मंगलवार के व्रत में चने का भोग चढ़ाया जाता है।
गुण : ऊर्जा, संकल्प और साहस का प्रतिनिधि।
# 6. मूँग (मुद्ग)
दैवीय तत्व : ऋषि-मुनियों का अन्न
धार्मिक महत्त्व : व्रत-उपवास में मूँग विशेष फलदायक माना जाता है।
गुण: पाचनशक्ति, मानसिक शुद्धता और वात-पित्त-संतुलन।
# 7. कुटकी/कोदो
दैवीय तत्व : पवित्रता और तपस्या का प्रतीक
पौराणिक प्रसंग : व्रतों, ब्रह्मचर्य और तपस्या में इसका अन्न रूप प्रयोग किया जाता है।
गुण : लघु अन्न होते हुए भी आत्मिक उन्नति में सहायक।
कुछ परंपराओं में सातवें अन्न के रूप में "कुटकी", "कोदो", "मक्का" या "कुशा बीज" को शामिल किया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों में सप्तधान्य की भूमिका
1. अथर्ववेद में सप्तधान्य को देवताओं द्वारा मानव जीवन की रक्षा हेतु प्रदत्त बताया गया है।
2. मनुस्मृति में इन्हें पवित्र, यज्ञोपयोगी और ऋषि भोज्य कहा गया है।
3. गरुड़ पुराण में तिल और जौ को पितृ कार्यों का मूल आधार बताया गया है।
4. महाभारत के अनुशासन पर्व में भी सात धान्यों की चर्चा पुण्यदायक अन्न के रूप में होती है।
आध्यात्मिक रहस्य: ये अन्न सिर्फ अन्न नहीं
| धान्य | तत्व | मानव अंग/गुण
| जौ | अग्नि | आत्मबल (संयम)
| तिल | जल | श्रद्धा (भक्ति)
| चावल | चंद्र | शांत चित्त
| गेहूं | पृथ्वी | स्थिरता
| चना | मंगल | उत्साह, शक्ति
| मूँग | वायु | प्राणशक्ति
| कोदो/कुशा | आकाश | ध्यान, तप
उपयोग और विधि
नवरात्र, होलिका दहन, ग्रह शांति, विवाह, उपनयन, यज्ञ आदि सभी शुभ कार्यों में इन सात अन्नों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें पवित्र जल से धोकर, सुखाकर, कलश में डाला जाता है। “सप्तधान्य पूजन” करके वातावरण को सात्विक किया जाता है।
सप्तधान्य केवल अन्न नहीं, दैविक ऊर्जा के बीज हैं, जो हमारी संस्कृति, धर्म और शरीर के संतुलन का मूल आधार हैं। इनका प्रयोग न केवल स्वास्थ्यवर्धक है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करने वाला है। ये सात धान्य हमें सिखाते हैं कि जीवन में सात्त्विकता, संतुलन और श्रद्धा हो, तो हर कर्म यज्ञ बन जाता है।