भारत एक बार फिर उस दुखद क्षण से गुज़रा है जब आसमान से आई एक त्रासदी ने सैकड़ों परिवारों को शोक की चादर में लपेट दिया। अहमदाबाद में एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना केवल तकनीकी चूक या मौसम की मार का परिणाम नहीं हो सकता यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है जिसने 265 ज़िंदगियों को लील लिया, जिनमें 241 यात्री और चालक दल के 12 सदस्य शामिल थे। महज एक व्यक्ति की जान बच सकी, और यह तथ्य इस हादसे की भयावहता को और भी विकराल बना देता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्घटना स्थल पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और घायलों से भेंट कर उनका हालचाल जाना। उनके साथ नागर विमानन मंत्री के. राममोहन नायडू और गुजरात सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी मौजूद रहे। यह दर्शाता है कि सरकार इस हादसे को कितनी गंभीरता से ले रही है। परंतु केवल संवेदना ही पर्याप्त नहीं है अब समय है कठोर आत्मपरीक्षण और उत्तरदायित्व तय करने का। पिछले कुछ वर्षों में भारत में नागरिक उड्डयन का जिस तेज़ी से विस्तार हुआ है, उसके साथ सुरक्षा प्रबंधन और उड़ान नियंत्रण प्रणालियों में आवश्यक सुधार समान गति से नहीं हो पाए हैं। हर दुर्घटना के बाद यही सवाल उठता है: क्या यह रोका जा सकता था? क्या विमान में कोई तकनीकी गड़बड़ी थी, जिसे समय रहते सुधारा जा सकता था? क्या मौसम विभाग की चेतावनियों को अनदेखा किया गया? और सबसे ज़रूरी सवाल क्या हमारी निगरानी एजेंसियों की सतर्कता और जवाबदेही में कोई कमी रही?
इस भयावह दुर्घटना की जांच गहन और निष्पक्ष होनी चाहिए। न सिर्फ ब्लैक बॉक्स के विश्लेषण से तकनीकी पहलुओं को खंगाला जाए, बल्कि उन मानवीय गलतियों पर भी नजर डाली जाए जो ऐसी घटनाओं का कारण बनती हैं। अगर यह दुर्घटना लापरवाही या किसी प्रणालीगत खामी का परिणाम है, तो दोषियों को सिर्फ निलंबित नहीं, बल्कि कठोरतम दंड मिलना चाहिए। हवाई यात्रा आज के समय में आम हो चली है, लेकिन सुरक्षा कभी समझौते का विषय नहीं बन सकती। यदि किसी एक प्रणाली की चूक से सैकड़ों ज़िंदगियां संकट में पड़ जाती हैं, तो यह सिर्फ तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि एक संस्थागत अपराध बन जाता है।
इस हादसे के पीछे जो भी कारण हों, वह जांच का विषय हैं। पर अब ज़रूरत है नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए (DGCA) जैसी नियामक संस्थाओं को पूरी तरह पारदर्शी, जिम्मेदार और उत्तरदायी बनाने की। केवल अंतरराष्ट्रीय मानकों की बात कर लेना काफी नहीं, हमें उन्हें ज़मीन पर लागू होते हुए देखना होगा। इसके साथ ही हमें उन परिवारों को भी नहीं भूलना चाहिए जिनके प्रियजन इस दुर्घटना में असमय काल के गाल में समा गए। सरकार को चाहिए कि पीड़ितों के परिजनों को न सिर्फ मुआवजा दिया जाए, बल्कि उनके पुनर्वास और मानसिक समर्थन के लिए भी ठोस प्रयास किए जाएं। यह हादसा केवल एक समाचार नहीं, एक चेतावनी है कि हमारी उड़ानें तब तक सुरक्षित नहीं मानी जा सकतीं, जब तक सुरक्षा को प्राथमिकता का सर्वोच्च दर्जा नहीं दिया जाता।
- विनोद कुमार झा