ज्येष्ठ पूर्णिमा की कथा और दैवीय रहस्य

विनोद कुमार झा

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा अत्यंत पावन और शुभ मानी जाती है। यह तिथि धर्म, तप, दान और स्नान के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी गई है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर व्रत, उपवास एवं दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यह वही दिन है जब कई महत्वपूर्ण पौराणिक घटनाएँ घटित हुई थीं और अनेक धार्मिक परंपराएं जन्मी थीं।

ज्येष्ठ पूर्णिमा की प्रमुख कथाएँ और रहस्य इस प्रकार है:-

गंगावतरण की स्मृति : ज्येष्ठ पूर्णिमा को मां गंगा के धरती पर अवतरण की स्मृति में भी मनाया जाता है। हालांकि गंगावतरण मुख्यतः ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशहरा) को माना जाता है, लेकिन पूर्णिमा के दिन गंगा की महिमा के अनेक वर्णन स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगीरथ ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए कठिन तप किया और ब्रह्मा जी से गंगा को पृथ्वी पर लाने का वर प्राप्त किया। तब गंगा को शिवजी ने अपनी जटाओं में धारण किया और धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतारा। यह दिव्य कार्य ग्रीष्म ऋतु की पूर्णता के समय हुआ। इस दिन गंगा में स्नान, दीपदान और गंगा स्तोत्र पाठ करना अतिशय पुण्यदायी माना जाता है।

सत्यनारायण व्रत की उत्पत्ति : ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन बहुत शुभ माना जाता है।

 पौराणिक कथा के अनुसार एक समय नारद मुनि ने पृथ्वी लोक में दुखों से कराहते मनुष्यों को देखा। वे श्रीविष्णु के पास गए और इसका उपाय पूछा। श्रीविष्णु ने उन्हें सत्यनारायण व्रत कथा का उपदेश दिया और कहा कि जो भक्त इस व्रत को पूर्णिमा तिथि पर श्रद्धा से करेंगे, उनके सभी दुख दूर होंगे। यह व्रत पारिवारिक सुख-शांति, धन-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति का प्रमुख साधन माना जाता है।

वट सावित्री व्रत की पूर्णता : वट सावित्री व्रत की पूर्ति भी ज्येष्ठ पूर्णिमा को होती है। यह व्रत पति की दीर्घायु और सौभाग्य की रक्षा हेतु सुहागिन स्त्रियों द्वारा किया जाता है। धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार अति प्राचीनकाल में सावित्री ने यमराज से अपने मृत पति सत्यवान को चतुराई और धर्म-तप से पुनः जीवित करवाया। यह कथा स्त्री धर्म, तप और समर्पण की उच्चतम मिसाल है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा और उसका परिक्र्रमण विशेष फलदायक माना गया है।

भगवान बुद्ध का जन्म और महापरिनिर्वाण : कुछ बौद्ध परंपराओं के अनुसार, भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण तीनों घटनाएँ पूर्णिमा के दिन ही हुई थीं  विशेषकर वैशाख और ज्येष्ठ पूर्णिमा को बौद्ध परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी ध्यान, भिक्षा और सेवा कार्यों में संलग्न रहते हैं।

ऋषियों के तप का पूर्ण फल : पुराणों में उल्लेख है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा को अनेक ऋषियों का तप सफल हुआ था। विशेषकर महर्षि अत्रि, दुर्वासा, और अगस्त्य आदि ने इस दिन ब्रह्मानंद की अनुभूति की थी। अतः यह तिथि योग, ध्यान और आत्मविकास के लिए भी सर्वोत्तम मानी जाती है।

दैवीय रहस्य और आध्यात्मिक प्रभाव

चंद्रमा का उच्चतम प्रभाव : ज्येष्ठ पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र अपनी पूर्ण चमक के साथ आकाश में होता है। यह मानसिक शांति, ध्यान-साधना और आत्मसंयम के लिए अत्यंत शुभ समय होता है।

जलतत्व का उत्थान : इस दिन जलतत्व विशेष सक्रिय होता है। यही कारण है कि गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा जैसी नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। जलतत्व हमारे भावनात्मक शरीर से जुड़ा है, अतः यह दिन शुद्धिकरण और संतुलन के लिए आदर्श है।

पितृ तृप्ति और पितृऋण से मुक्ति : इस दिन गंगा में स्नान करके पितरों का तर्पण, दान और पूजा करने से पितृ दोष समाप्त होता है और आत्मिक कल्याण होता है।

इस दिन दान और अन्नक्षेत्र का विशेष महत्व

🔸 अन्न, वस्त्र, जलपात्र, छाता, चप्पल, पंखा, शर्बत, बेलपत्र आदि का दान अत्यंत पुण्यकारी होता है।

🔸 "ज्येष्ठ मास की तपती गर्मी में शीतलता बाँटना ही सच्चा धर्म है।"

ज्येष्ठ पूर्णिमा पर क्या करें?

1. गंगा या पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

2. सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन करें।

3. वट वृक्ष की पूजा करें (वट सावित्री व्रत)।

4. ध्यान, जप और मंत्र साधना करें।

5. गरीबों को जल, शर्बत, पंखा, वस्त्र आदि दान करें।

6. चंद्रमा को अर्घ्य देकर मानसिक शांति की प्रार्थना करें।

ज्येष्ठ पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का अवसर है। यह दिन तप, सेवा, दान और आस्था से भरपूर होता है। यह याद दिलाता है कि मनुष्य अपने संकल्प, श्रद्धा और कर्म से ही अपने जीवन को दिव्य बना सकता है। इस पावन तिथि पर एक छोटा-सा दीप, एक अंजलि जल, एक ग्रंथ-पाठ और एक सच्चा संकल्प  हमारे जीवन की दिशा बदल सकता है।

 शुभकामनाएँ: आपका जीवन ज्येष्ठ पूर्णिमा की शीतल चाँदनी जैसा निर्मल, पुण्यफलदायी और आनंदमय हो।


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