विनोद कुमार झा
भारतवर्ष सदियों से एक आध्यात्मिक भूमि रही है, जहाँ ऋषि-मुनियों, संतों और तपस्वियों ने न केवल आत्मबोध प्राप्त किया, बल्कि मानवता को मोक्ष की राह भी दिखाई। इसी परंपरा में आदि शंकराचार्य ने संन्यास धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए चार महान पीठों (मठों) की स्थापना की। ये चार मठ न केवल हिंदू धर्म के दार्शनिक और आध्यात्मिक केंद्र हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, वेदांत और संत परंपरा के स्तंभ भी हैं।
चारमठों के नाम, स्थान और महत्व
1. गोवर्धन मठ (पूर्व पीठ) – पुरी, ओडिशा
स्थापना: 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा
संलग्न वेद: ऋग्वेद
महत्व: यह मठ 'जगन्नाथ' की भूमि पुरी में स्थित है और संन्यासियों के लिए 'पुरवाम्नाय' (पूर्व दिशा का ज्ञान केंद्र) के रूप में कार्य करता है। यह वेदांत के प्रचार और धर्म की रक्षा में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रहस्य: गोवर्धन मठ के शंकराचार्य को 'जगद्गुरु' की उपाधि दी जाती है, जो वेदान्त ज्ञान की सर्वोच्च गद्दी मानी जाती है।
2. शारदा पीठ (पश्चिम पीठ) – द्वारका, गुजरात
स्थापना: आदि शंकराचार्य
संलग्न वेद: सामवेद
महत्व: भगवान श्रीकृष्ण की नगरी में स्थित यह मठ ‘शारदा देवी’ (विद्या की देवी) को समर्पित है। यह मठ ज्ञान, भक्ति और वैराग्य के समन्वय का प्रतीक है।
रहस्य: ऐसा माना जाता है कि यहाँ की शारदा देवी स्वयं ज्ञान का साक्षात स्वरूप हैं, और इस मठ का दर्शन करने से आध्यात्मिक दृष्टि जागृत होती है।
3. श्रृंगेरी शारदापीठ (दक्षिण पीठ) – कर्नाटक
स्थापना: तुंगभद्रा नदी के किनारे
संलग्न वेद: यजुर्वेद
महत्व: यह मठ भारत का पहला और सबसे पुराना शंकर मठ माना जाता है। यहाँ का वातावरण अत्यंत शांत और तपस्वियों के लिए आदर्श है।
रहस्य: यहाँ शारदा देवी की एक दिव्य प्रतिमा है जो स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित मानी जाती है। इस मठ में गुरु-शिष्य परंपरा आज भी जीवंत है।
4. ज्योतिर्मठ (उत्तर पीठ) – बद्रीनाथ के पास, उत्तराखंड
स्थापना: हिमालय की गोद में
संलग्न वेद: अथर्ववेद
महत्व: यह मठ हिमालय की गोद में स्थित है और आत्मबोध, ध्यान और मोक्ष की साधना के लिए उपयुक्त स्थान माना जाता है।
रहस्य: ‘ज्योतिर्मठ’ का अर्थ है ‘प्रकाश का निवास’। कहा जाता है कि यहाँ ध्यान करने वाले साधक को दिव्य अनुभव और आत्मप्रकाश की झलक मिलती है।
चारों मठों का महत्व इस प्रकार है :-
- चारों मठ भारत के चार कोनों में स्थित हैं, जो प्रतीक हैं धर्म, ज्ञान, तपस्या और मोक्ष के चार स्तंभों का।
- वेदान्त दर्शन की रक्षा, प्रचार और शंकराचार्य परंपरा को आगे बढ़ाने में इन मठों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- प्रत्येक मठ विशेष वेद और महावाक्य से जुड़ा हुआ है, जो संन्यासियों को उनके मार्ग पर मार्गदर्शन देता है।
चारों मठों की यात्रा केवल भौगोलिक तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की तीर्थयात्रा है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ये पीठें आज भी न केवल भारत, बल्कि पूरे संसार में सनातन धर्म और वेदांत के दिव्य प्रकाश को प्रज्वलित कर रही हैं। यदि आप सत्य की खोज में हैं, तो ये मठ आपके लिए केवल मंदिर नहीं, बल्कि आत्मजागरण के प्रवेशद्वार हैं।