जब 1984 में राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में जाकर "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" कहा था, तब से आज तक भारतवर्ष के हृदय में यह स्वप्न पलता रहा कि एक बार फिर किसी भारतीय का नाम ब्रह्मांड की अथाह गहराइयों में गूंजे। 41 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद, यह सपना फिर साकार हुआ शुभांशु शुक्ला के रूप में।
एलन मस्क की कंपनी SpaceX द्वारा संचालित यह मिशन, न केवल सरकारी बल्कि निजी कंपनियों की भूमिका को रेखांकित करता है। Axiom-4 मिशन, मानवता के अंतरिक्ष में भविष्य को आकार देने की दिशा में एक ठोस कदम है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह उदाहरण है कि वैश्विक मंच पर अब भागीदारी केवल पश्चिमी शक्तियों तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय वैज्ञानिक, इंजीनियर और यात्री भी उस दिशा में अग्रसर हैं। जब शुभांशु की उड़ान लखनऊ के एक ऑडिटोरियम में उनके माता-पिता ने सजीव देखी, तो केवल रॉकेट नहीं उड़ा था एक माँ का सपना, एक पिता की तपस्या और पूरे राष्ट्र की उम्मीदें भी अंतरिक्ष की ओर प्रस्थान कर चुकी थीं। उनकी माता की आंखों में छलकते आँसू, हमें याद दिलाते हैं कि वैज्ञानिक उपलब्धियों के पीछे परिवारों की त्याग-तपस्या छिपी होती है। और यही मानवीय पक्ष वैज्ञानिकता को भी भावनात्मक स्पर्श देता है।
शुभांशु आईएसएस में 14 दिन बिताएंगे और 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों में भाग लेंगे। ये प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में जीवन, पदार्थ और ऊर्जा की जटिलताओं को समझने के लिए अहम होंगे। इससे चिकित्सा, दवा, कृषि और पर्यावरणीय सुधार के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी और भारत को इन प्रयोगों में भागीदार बनना, उसके वैज्ञानिक विकास की दिशा में एक और मील का पत्थर होगा। शुभांशु की यह उड़ान उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो आकाश में उड़ने का सपना देखते हैं। यह सिद्ध करता है कि सही दिशा, परिश्रम और उद्देश्य के साथ भारत का कोई भी छात्र, किसी भी कोने से निकलकर ब्रह्मांड की ओर अग्रसर हो सकता है। शुभांशु की यह यात्रा महज़ एक अंतरिक्ष अभियान नहीं है यह भारत के आत्मविश्वास, वैज्ञानिक प्रगति और वैश्विक मंच पर बढ़ते कद की उद्घोषणा है। अंतरिक्ष विज्ञान के इस नए युग में भारत अब सिर्फ ‘दर्शक’ नहीं, ‘निर्माता’ की भूमिका निभा रहा है। आइए, हम सब मिलकर शुभांशु को बधाई दें और इस ऐतिहासिक क्षण को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरक अध्याय बना दें क्योंकि अंतरिक्ष अब भारत के लिए सपना नहीं, मंज़िल बन चुका है। जय हिंद!
– विनोद कुमार झा