# पंचक में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य?

विनोद कुमार झा

 कल्पना कीजिए ग्रहों की चाल असामान्य हो जाए, आकाश में राहु और केतु की छाया मंथन करने लगे और पांच नक्षत्रों की ऊर्जा एक साथ एक ही दिशा में प्रवाहित होने लगे! यही होता है जब पंचक का समय आता है। यह कोई सामान्य खगोलीय घटना नहीं, बल्कि ऐसा समय होता है जब ब्रह्मांड की लय कुछ क्षणों के लिए मानवीय जीवन से विपरीत दिशा में बहने लगती है। धर्मशास्त्रों में इसे 'काल दोष' का सूचक माना गया है, जिसमें मनुष्य का किया गया कार्य भविष्य में विपरीत फल दे सकता है।

शास्त्रों के अनुसार जब चंद्रमा धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र में होता है और वह भी कुम्भ या मीन राशि में स्थित हो तब पंचक काल आरंभ होता है। बृहद् ज्योतिष ग्रंथों में कहा गया है कि इस अवधि में शुभ कार्य करना ऐसा है जैसे उलटी धारा में नाव चलाना। ऋषि अत्रि ने ब्रह्मा को बताया था कि पंचक के समय में जन्म, विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ, नई यात्रा, व्यापार की शुरुआत या मुहूर्तकर्म निषिद्ध माने जाते हैं। यह काल सामान्य से लेकर विशिष्ट लोगों तक के लिए ‘वर्जित समय’ माना गया है विशेषकर उन कार्यों के लिए जो जीवन में शुभ परिवर्तन लाते हैं, जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यात्रा, यज्ञ, मुहूर्त, बर्तन/काठी खरीदना, छत बनवाना, चिता दाह आदि। 

आइए जानते हैं धर्म ग्रंथों में वर्णित रहस्यमयी कारण और कथा के बारे में विस्तार से :  एक कथा महर्षि नारद से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि एक समय की बात है अवंतिपुरी राज्य में एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार के पांच भाई थे। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ और परोपकारी थे। एक दिन तीर्थ यात्रा के लिए जाते समय मार्ग में अचानक वज्रपात हुआ और पांचों की मृत्यु हो गई। उनके शवों को जब गांव लाया गया तो पंचक का आरंभ हो चुका था। परिजनों ने शोक में विवेक खो दिया और बिना पंचक की गणना किए चिता दहन की तैयारी कर ली।

जब अग्निसंस्कार शुरू हुआ और शवों को अग्नि दी गई, उसी क्षण वहां उपस्थित पांच लोगों की आकस्मिक मृत्यु हो गई। लोगों में भय का वातावरण छा गया। किसी ने कहा "यह कोई सामान्य घटना नहीं। निश्चित ही इसमें कोई ब्रह्म दोष या काल दोष सक्रिय है।"

तत्काल एक ज्ञानी ब्राह्मण ने पंचांग का अवलोकन किया और कहा, "यह पंचक काल चल रहा है। इस समय एक से अधिक शवों का दाह करना महाविपत्ति को निमंत्रण देना होता है। इससे पंचक दोष उत्पन्न हो जाता है।"

लोग भयभीत होकर विष्णु मंदिर में एकत्रित हुए और महामंत्रों के साथ भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे। भक्तों की करुण पुकार सुनकर भगवान प्रकट हुए और बोले,"हे भक्तों! पंचक में शवदाह करने से पंचक दोष उत्पन्न होता है, विशेषकर जब पांच शव एक साथ जलाए जाते हैं। यदि ऐसी अनिवार्य स्थिति आ जाए, तो शवों के साथ एक प्रतीकात्मक पुतला (कुश, बांस या लकड़ी से बना पुतला) बनाकर उसका पहले दान करें, जिसे 'शय्या दान' कहते हैं। उसके बाद ही दाह करें। इससे दोष का परिहार होता है।"( पद्म पुराण, मृत्यु खंड)

भगवान विष्णु के आदेशानुसार, आगे से सभी ने पंचक में शवदाह करने से पहले शय्या दान की परंपरा प्रारंभ की, जो आज भी भारत के कई हिस्सों में जारी है।

जानिए पंचक दोष के पांच प्रकार के बारे में :-

1. राज्य पंचक – शासन या नौकरी में बाधाएं।

2. अग्नि पंचक – घर या कारखाने में अग्निकांड की आशंका।

3. चौर पंचक – चोरी, डकैती या धोखाधड़ी की घटनाएं।

4. मृत्यु पंचक – अचानक दुर्घटनाओं से मृत्यु का भय।

5. रोग पंचक  – असाध्य रोगों का जन्म और दीर्घकालीन चिकित्सा।

ज्योतिषियों के अनुसार, पंचक में यदि कोई कार्य अनिवार्य हो तो "विशेष तिथि, विशेष नक्षत्र एवं विशेष मंत्रों द्वारा दोष शमन" किया जा सकता है। गृह निर्माण कार्य जैसे छत डालना भी पंचक में वर्जित है क्योंकि ऐसा मान्यता है कि अगर पंचक में छत बनाई जाती है तो परिवार में एक के बाद एक मृत्यु हो सकती है।

धार्मिक प्रमाण और शास्त्रीय साक्ष्य इस प्रकार है :-

ब्रह्मवैवर्त पुराण : पंचक को "चंद्रकालदोष" कहा गया है, जिसमें चंद्रमा की स्थिति मानसिक और शारीरिक असंतुलन लाती है।

गरुड़ पुराण : मृत्यु के समय पंचक में जन्मे या मरे व्यक्ति को विशेष संस्कार और पिंडदान से ही मुक्ति मिलती है।

नारद संहिता : पंचक काल में केवल तामसिक और आपातकालीन कार्य ही निष्पादित करने की अनुमति है।

स्कंद पुराण : पंचक काल में हवन, मंत्रजप, विष्णु सहस्रनाम, तुलसी पूजन, और ब्राह्मण भोजन कराने से दुष्प्रभाव कम होते हैं।

पंचक कोई केवल ज्योतिषीय तथ्य नहीं, यह ब्रह्मांड की उन छायाओं का संकेत है जब जीवन की लय बाधित होती है। हमारे ऋषियों ने इसे केवल तिथि नहीं, चेतावनी का स्वरूप माना है। यही कारण है कि आज भी पंचक के दौरान न केवल शुभ कार्य रोके जाते हैं, बल्कि मंत्र, हवन और दान से इसे शांत किया जाता है। जो पंचक को समझते हैं, वे समय के नियमों को सम्मान देते हैं और जो समय को सम्मान देते हैं, समय उन्हें फल देता है।

इसलिए धर्मशास्त्र कहता है कि पंचक में केवल आपातकालीन कार्य ही करें, अन्यथा जीवन में अनचाही विपत्तियाँ पग-पग पर घेर सकती हैं। यही कारण है कि हमारे पूर्वज पंचक के समय शांति पाठ, हवन, विष्णु सहस्त्रनाम और विशेष दान करते थे।

पंचक कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि खगोलीय और आध्यात्मिक संकेतों से जुड़ा एक गहन चेतावनीकाल है। जो लोग धर्म और काल की गति को समझते हैं, वे पंचक में संयम और श्रद्धा से जीवन का संचालन करते हैं। पंचक का रहस्य हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता और ऋषियों की आध्यात्मिक चेतना का एक अद्भुत उदाहरण है।



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