# काला रंग अशुभता या आध्यात्मिकता?

विनोद कुमार झा

हिंदू धर्म, जो प्रकृति के प्रत्येक जीव में दैवीय तत्व देखता है, उसमें कौवा और कोयल जैसे पक्षियों को केवल उनके रंग के आधार पर शुभ या अशुभ मानना एक सीमित दृष्टिकोण हो सकता है। फिर भी, धार्मिक ग्रंथों, लोकपरंपराओं और सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर हम इन दोनों पक्षियों की भूमिका और उनके रंगों का धार्मिक विवेचन कर सकते हैं।

हिंदू शास्त्रों में काले रंग को तमोगुण’ से जोड़ा गया है, जो अज्ञान, रहस्य और गहनता का प्रतीक माना गया है। यह रंग मृत्यु, पितृलोक और रहस्यमयी शक्तियों से जुड़ा है, किन्तु यह अनिवार्यतः अशुभ नहीं है। आइए जानते हैं संवाद के माध्यम से:-

स्थान:एक शांत मंदिर के प्रांगण में पीपल वृक्ष के नीचे बैठे एक वृद्ध पंडित और एक जिज्ञासु युवक के बीच संवाद।

युवक (आश्चर्य से): पंडितजी, एक बात पूछूं? कौवा और कोयल  दोनों ही काले रंग के होते हैं, फिर भी जब कौवा दिखाई देता है तो लोग अशुभ समझते हैं, लेकिन कोयल की आवाज़ सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है। क्या सच में काला रंग अशुभ होता है?

पंडितजी (मुस्कराते हुए): बिलकुल नहीं वत्स! धर्म की दृष्टि में कोई भी रंग अपने आप में शुभ या अशुभ नहीं होता। हमारे शास्त्रों में तो काले रंग को भी एक दैवीय संकेत माना गया है। प्रश्न यह है कि तुम उस रंग में क्या अर्थ भरते हो?

युवक: लेकिन पंडितजी, लोग कहते हैं कि कौवे का आना किसी अनहोनी का संकेत है। कहीं वो मृत्यु का संदेशवाहक तो नहीं?

पंडितजी: कौवा केवल संदेशवाहक है, अशुभ नहीं। गरुड़ पुराण कहता है कि श्राद्ध में जब हम पितरों का अन्न कौवे को अर्पित करते हैं, तो वह उस अन्न को पितरों तक पहुंचाता है। वो पितरों का दूत है, उनका प्रतिनिधि।

युवक: अर्थात कौवा तो पितरों की कृपा का प्रतीक हुआ!

पंडितजी (गंभीरता से): सही समझा। कौवे का रंग काला है, लेकिन उसकी आत्मिक भूमिका उज्ज्वल है। वह यमराज का वाहन है, शनि देव का मित्र है, और पितरों का वचनवाहक है। क्या तुम ऐसे जीव को अशुभ कह सकते हो?

युवक: बिलकुल नहीं पंडितजी! लेकिन फिर कोयल? वह भी तो काली ही होती है।

पंडितजी (हँसते हुए): कोयल, वत्स, प्रकृति की मधुरता है। उसकी काली देह के भीतर प्रेम की एक रसभरी आत्मा छिपी है। काव्य, संगीत और प्रेम के देवता कामदेव के आगमन की सूचना वसंत में कोयल ही देती है।

युवक: तो क्या रंग महत्त्वहीन हो जाता है?

पंडितजी (बड़ी कोमलता से): धर्म कहता है कि रंग से अधिक महत्त्व भाव और कर्म का होता है। काला रंग रहस्य, गहराई और आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है। यही रंग शनि का है, यही रंग रात्रि का है  जिसमें ध्यान खिलता है, समाधि घटती है, ब्रह्मज्ञान उदय होता है।

युवक: तो क्या यह कहना उचित होगा कि काला रंग भय का नहीं, बल्कि बोध का संकेत है?

पंडितजी (प्रसन्न होकर): तुमने सत्य को छू लिया, वत्स! काले रंग की कोमलता को समझना है तो कोयल से सीखो। उसकी काली काया में छिपी मधुरता यह सिखाती है कि रूप नहीं, गुण प्रधान है।

युवक: पंडितजी, यदि कौवा पितृपक्ष का दूत है और कोयल प्रेम की प्रतीक, तो दोनों ही काले रंग में लिपटे दिव्य भाव हैं। आश्चर्य है, जो हमने अब तक नहीं समझा।

पंडितजी: धर्म की दृष्टि यही सिखाती है  “रूप पर नहीं, रस पर ध्यान दो। रंग नहीं, रचना देखो।” काले रंग में भी उजाला हो सकता है, यदि दृष्टि सच्ची हो।

शुभ-अशुभ का सार:

| पक्षी | रंग  | धार्मिक भूमिका    | शुभता  |

| कौवा  | काला | पितृ प्रतिनिधि, यम का दूत, शनि का वाहन | शुभ (श्राद्ध, शनि पूजा में आवश्यक)   |

| कोयल  | काला | मधुर स्वर, प्रेम और वसंत का संकेत      | अत्यंत शुभ (काव्य, सौंदर्य, संगीत का प्रतीक) |

युवक (गंभीरता से नत मस्तक होकर): आज आपने काले रंग की परिभाषा ही बदल दी, गुरुदेव। अब मैं कौवे को देखकर डरूँगा नहीं, श्रद्धा से झुकूँगा। और कोयल को सिर्फ उसकी आवाज़ से नहीं, उसकी आत्मा से समझूँगा।

पंडितजी (आशीर्वाद देते हुए): यही है धर्म की सीख  जहाँ दृष्टि निर्मल होती है, वहाँ काले रंग में भी देवता दिखते हैं।

कभी-कभी रंग हमारी धारणाओं का पर्दा बन जाते हैं, जबकि धर्म हमें सिखाता है भावनाओं की शुद्धता ही सच्चा रंग है। कौवा हो या कोयल, रंग एक माध्यम है  संदेश आत्मा का होता है।



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