विनोद कुमार झा
(वाल्मीकि रामायण पर आधारित एक विस्तृत कथा)
रामायण केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, अपितु धर्म और अधर्म के संघर्ष की जीवंत गाथा है। इस महाकाव्य में अनेक वीर योद्धाओं ने अपने पराक्रम, निष्ठा और बुद्धि से ऐसे अमिट पदचिन्ह छोड़े जो युगों तक प्रेरणा का स्त्रोत बने रहेंगे। श्रीराम से लेकर नल-नील तक प्रत्येक योद्धा के पीछे छिपा है एक दिव्य रहस्य, एक विशेष उद्देश्य और एक आदर्श। प्रस्तुत कथा में हम उन 10 महान योद्धाओं की यात्रा को वाल्मीकि रामायण की घटनाओं के आधार पर एक सूत्र में पिरोकर प्रस्तुत कर रहे हैं।
# 1. श्रीराम (धर्म का धनुषधारी) : अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र, श्रीराम न केवल अपराजेय योद्धा थे, बल्कि धर्म के मूर्तिमान स्वरूप भी थे। विश्वामित्र मुनि ने जब उन्हें ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों से रक्षा के लिए यज्ञ में साथ लिया, तभी उनके पराक्रम का पहला परिचय मिला। श्रीराम ने शिव का धनुष उठाकर जनकपुरी में सीता स्वयंवर जीता, परंतु असली युद्ध तो लंका विजय का था।
उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी मर्यादा और विवेक। उन्होंने रावण जैसे महाबली राक्षस को न केवल रणभूमि में परास्त किया, बल्कि आदर्शों से भी उसे छोटा कर दिया। ब्रह्मास्त्र, दिव्य धनुष और परम संयम – श्रीराम युद्धकला के परम आचार्य थे।
# 2. रावण (अहंकार और विद्या का समागम) : लंका का स्वर्ण सिंहासन जिस योद्धा के बल पर टिका था, वह था रावण। दशानन रावण ने न केवल समस्त देवताओं को पराजित किया था, बल्कि शिवजी से आत्मलिंग, ब्रह्मा से अमरता का वरदान और शनि-ग्रहों को भी बंदी बना लिया था।
रावण का रहस्य था उसका श्राप से सुरक्षित शरीर, और उसकी महाज्ञानशीलता। वह वेदों का ज्ञाता, संगीत का साधक और अपराजेय रथी था। परंतु उसका पतन हुआ अहंकार के कारण। सीता हरण उसका सबसे बड़ा अपराध बना और अंततः राम की अग्नि में उसका अभिमान भस्म हो गया।
3. मेघनाद (इंद्रजित का अमोघ रहस्य) : रावण का पुत्र मेघनाद, जिसे ‘इंद्रजित’ कहा गया, क्योंकि उसने इंद्र को बंदी बनाया था। वह युद्ध में मायावी शक्तियों का सिद्धहस्त प्रयोग करता था। उसका रहस्य था निकुंभिला यज्ञ, जिसके बल पर वह अमोघ और अजेय बनता था।
लक्ष्मण ने उसे तभी मारा जब वह यज्ञ अधूरा छोड़कर युद्ध में आया। इंद्रजित की शक्ति, उसकी मंत्र-विद्या और रथ संचालन की कला ने उसे अद्वितीय योद्धा बनाया। वाल्मीकि ने उसे सबसे कठिन योद्धाओं में गिना है जिन्हें पराजित करना असंभव सा था।
4. लक्ष्मण ( सेवा, शक्ति और संकल्प) : लक्ष्मण, श्रीराम के छोटे भ्राता, न केवल उनके चरणों में सदा समर्पित रहे, बल्कि युद्धभूमि में उनके अमोघ कवच बनकर खड़े हुए। उन्होंने परशुराम के क्रोध का सामना किया, शूर्पणखा की नाक काटी और युद्ध में अतिकाय और इंद्रजित जैसे राक्षसों को मार गिराया।
लक्ष्मण का रहस्य था उनका नारायणांश और उनका संकल्पबल, जो उन्हें मृत्युशैया से हनुमान के लाए संजीवनी से वापस जीवन में खींच लाया। उनका एकनिष्ठ भाव उन्हें एक महान योद्धा बनाता है, जो केवल बल से नहीं, समर्पण से भी यशस्वी हुआ।
# 5. हनुमान ( बल, बुद्धि और भक्ति की त्रयी) : पवनपुत्र हनुमान, रामभक्तों में श्रेष्ठ, रामकथा के ऐसे नायक हैं जिनकी वीरता अमाप है। उन्होंने समुद्र पार किया, लंका जलाई, संजीवनी लाकर लक्ष्मण को जीवनदान दिया। उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ, जो उन्हें रामभक्ति से प्राप्त हुईं।
वाल्मीकि रामायण में हनुमान के अद्भुत पराक्रम का विस्तार बार-बार आता है चाहे अशोकवाटिका की लीला हो या रावण की सभा में उनकी निडरता। हनुमान का रहस्य था भक्ति से प्राप्त अतुलित बल।
# 6. सुग्रीव ( संघर्ष से सिंघासन तक) : सुग्रीव, वानरराज और श्रीराम के मित्र, स्वयं भी महान योद्धा थे। अपने भाई बालि के अत्याचार से पीड़ित, उन्होंने राम के साथ गठबंधन कर अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया। सुग्रीव ने लंका पर आक्रमण की योजना बनाई और समस्त वानर सेना का नेतृत्व किया।
उनका रहस्य था रणनीति, संकल्प और सहयोग। युद्ध में उन्होंने बलवान राक्षसों को पराजित किया और अपने वीरों को एकत्र कर रावण की सेना को धूल चटाई।
# 7. जांबवंत ( तप और तजुर्बे का महायोद्धा) : जांबवंत, ऋषि और रीछराज, त्रेता युग के सबसे वृद्ध और अनुभवी योद्धा थे। वे समुद्र मंथन काल से जीवित थे। उनका रहस्य था चिरंजीवित्व और शारीरिक शक्ति के साथ शास्त्रज्ञान का समन्वय।
हनुमान को उनकी शक्ति की याद दिलाना, अंगद को प्रेरणा देना और युद्ध में रणनीति तय करना ये सब जांबवंत के कौशल का परिचय हैं। वे बल से कम, परंतु प्रेरणा से कहीं अधिक युद्ध के स्तंभ थे।
8. कुम्भकर्ण ( निद्रा में भी शक्ति का स्वरूप) : कुम्भकर्ण, रावण का भाई, महाबली और महाशक्तिशाली योद्धा था। उसका रहस्य था छह महीने की निद्रा और जागते ही विनाशकारी शक्ति। ब्रह्मा से वर मांगने में गलती से उसने ‘निद्रासन’ मांग लिया, परंतु उस एक दिन के जागरण में वह समस्त वानर सेना पर भारी पड़ गया।
श्रीराम तक को उसके बाणों से संभलना पड़ा। अंततः वह राम के हाथों मारा गया। वह रावण के विपरीत, नीति और धर्म का पक्षधर था, पर कुलनिष्ठा उसे युद्ध में ले आई।
9. विभीषण ( नीति का महान योद्धा) : विभीषण, रावण के छोटे भाई, लंका के न्यायप्रिय पुरुष थे। उन्होंने जब रावण को सीता-विमोचन की सलाह दी और वह अस्वीकार कर बैठा, तो विभीषण ने रावण का त्याग कर श्रीराम की शरण ली।
उनका रहस्य था राजधर्म की समझ, नीति की दृष्टि और अद्भुत दिव्य ज्ञान। युद्ध में वे श्रीराम की रणनीति के प्रमुख सूत्रधार बने। रावण के वध के समय उन्होंने उसके रहस्यमयी अमरता के राज खोले।
10. नल-नील (समुद्र पर पुल बनाने वाले वीर) : नल और नील वानर योद्धा थे, जो भगवान विश्वकर्मा के वंशज थे। इनका रहस्य था पानी में पत्थर तैराने की शक्ति , जो उन्हें शापवश मिली थी। जब रामसेना को समुद्र पार करना था, तब इन्होंने अपने अद्वितीय कौशल से रामसेतु का निर्माण किया।
युद्ध में भी नल-नील वीरता से लड़े, परंतु उनका अद्वितीय योगदान भौतिक अवरोधों को पार कर विजय मार्ग प्रशस्त करना था। उन्होंने युद्ध को संभव बनाया।
इन दसों योद्धाओं में कुछ राक्षस थे, कुछ वानर, कुछ मानव, पर सभी ने रामायण की कथा को पूर्णता दी। कोई वीर था शस्त्रों से, कोई नीति से, कोई भक्ति से तो कोई निर्माण से। रामायण का युद्ध केवल बाणों का नहीं था, यह था धर्म, नीति, सेवा, बुद्धि और समर्पण का संग्राम।
इन दसों योद्धाओं की गाथा हमें सिखाती है कि महानता केवल शक्ति में नहीं, उद्देश्य और धर्म में होती है। श्रीराम के विजय पथ पर चलने वाले ये योद्धा आज भी प्रेरणा हैं जीवन के हर क्षेत्र में।