विनोद कुमार झा
हिंदू धर्म की देवी उपासना परंपरा में शक्तिपीठों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ये वे दिव्य स्थल हैं जहाँ देवी सती के अंग, वस्त्र या आभूषण गिरे थे, जब भगवान शिव उनकी मृत देह को लेकर तांडव कर रहे थे। इन शक्तिपीठों को साक्षात शक्ति का निवास स्थान माना जाता है और इनका उल्लेख अनेक पुराणों में अत्यंत श्रद्धा और रहस्य के साथ किया गया है।
शक्तिपीठों की उत्पत्ति का रहस्य : शक्तिपीठों की कथा शिवपुराण, कालिका पुराण, तंत्रचूड़ामणि और देवी भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में विस्तृत रूप से मिलती है।
पौराणिक कथा संक्षेप में : माता सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। माता सती ने विरोध स्वरूप यज्ञ कुंड में अपने आपको आहुति देकर अपने प्राण त्याग दिए। इस खबर को सुनकर शोकसंतप्त शिव ने सती के शव को कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में तांडव आरंभ कर दिया। इस विनाश को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ये स्थान ही शक्तिपीठ कहलाए और उन्हें महाशक्ति का साक्षात रूप माना गया।
शक्तिपीठों की संख्या क्यों 51 मानी जाती है?
शास्त्रों में शक्तिपीठों की संख्या अलग-अलग मानी गई है जैसे 18 , 51, 52 या 108 परंतु 51 शक्तिपीठ सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत हैं। इसका संबंध संस्कृत वर्णमाला के 51 अक्षरों से भी जोड़ा जाता है:
शक्ति = सृजन की जड़, और
अक्षर = ब्रह्मांड की ध्वनि।
इसलिए 51 अक्षर और 51 शक्तिपीठों का आध्यात्मिक मेल दिखाया जाता है यह दर्शाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि शक्ति के अक्षरों से बनी है।
शक्तिपीठों की पहचान: शक्ति और भैरव
प्रत्येक शक्तिपीठ में दो प्रमुख तत्त्व होते हैं:
1. देवी (शक्ति): सती का एक अंग, वस्त्र या आभूषण यहाँ प्रतिष्ठित है।
2. भैरव: प्रत्येक पीठ पर एक रक्षक भैरव की उपस्थिति होती है, जो शिव का रूप है।
उदाहरण के लिए कामाख्या शक्तिपीठ (असम) : यहाँ देवी का योनि अंग गिरा था। शक्ति = कामाख्या , भैरव = उमानंद
वैष्णो देवी (जम्मू): माना जाता है कि यहाँ सती का हाथ गिरा। शक्ति = वैष्णवी, भैरव = भैरवनाथ
शक्तिपीठ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, तिब्बत आदि स्थानों में भी स्थित हैं। यह दर्शाता है कि शक्ति की उपासना सीमाओं से परे है।
| देश | प्रमुख शक्तिपीठ
| भारत | कामाख्या (असम), कालीघाट (कोलकाता), वैष्णो देवी (जम्मू), अम्बाजी (गुजरात), हिंगलाज (राजस्थान)
| नेपाल | गौरीकुंड, गंधमादन
| पाकिस्तान | हिंगलाज माता (बलूचिस्तान)
| बांग्लादेश | जशोरेश्वरी, सतीपिठ
| श्रीलंका | श्रीपद पर्वत (सीता शिला)
तंत्र परंपरा में शक्तिपीठों को शक्ति के चक्रों से जोड़ा गया है: शक्तिपीठ केवल मंदिर नहीं, बल्कि ऊर्जा केंद्र (माने जाते हैं।वहाँ साधना करने से व्यक्ति के सात चक्र जाग्रत हो सकते हैं।कहा जाता है कि हर पीठ एक विशिष्ट तांत्रिक रहस्य और सिद्धि से जुड़ी होती है।
शक्तिपीठों की यात्रा आत्मा को शक्ति से जोड़ती है। भक्ति और शक्ति* का अद्वितीय संगम होता है इन स्थानों पर। प्रत्येक शक्तिपीठ में देवी के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं कहीं माँ कोमल हैं, तो कहीं उग्र; कहीं करुणा की देवी, तो कहीं संहार की शक्ति।
यह रही 51 शक्तिपीठों की विस्तृत तालिका, जिसमें प्रत्येक शक्तिपीठ का नाम, उसका स्थान, शक्ति (देवी), भैरव (शिव), और सती का कौन-सा अंग या आभूषण गिरा था उसका विवरण दिया गया है आइए जानते हैं 51 शक्तिपीठों की पवित्र सूची :
क्रम|शक्तिपीठ| शक्ति का नाम| भैरव का नाम|अंग जो गिरा 1 .| कामाख्या (असम) | कामाख्या | उमानंद | योनि 2 .| वैष्णो देवी (जम्मू) | वैष्णवी | भैरवनाथ | हाथ 3 |कालीघाट (कोलकाता)|कालिका|नकुलेश्वर|दाहिना पाँव 4 | हिंगलाज (पाकिस्तान)| हिंगलाज | भैरव चण्ड| ब्रह्मरंध्र 5| तारापीठ (बंगाल) | तारा | चन्द्रशेखर | तीसरा नेत्र
6| ज्वालामुखी (हिमाचल) | सिद्धिदा | उन्मत्त भैरव| जिह्वा 7| ब्रह्मरंध्रपीठ (नेपाल)|महाशिरा|कपालीश्वर|सिर का भाग 8|श्रीपर्वत (श्रीलंका)|श्रीशैलवातिका|संहार भैरव|पैरों की उंगलियाँ
9 | त्रिपुरमालिनी|यारकंडा (तिब्बत सीमा)|त्रिपुरमालिनी| त्रिपुरान्तक|दाँत
10| नागेश्वरी|करवीर, महाराष्ट्र|महालक्ष्मी|कोल्हेश्वर | नेत्र 11|शूलेश्वर|श्रीहट्ट, बांग्लादेश|महालया|शूलेश्वर|पैर की एड़ी
12|मनसा देवी | हरिद्वार | मनसा | महेश्वर | ललाट
13 | चिंतपूर्णी | हिमाचल प्रदेश | चंद्रिका| रुद्रानंद |मस्तक
14 | भीमेश्वरी| त्रिवेणी, नेपाल| भीमेश्वरी| भैरव | बाल 15 | पूर्णेश्वरी | पूर्णिया, बिहार | पूर्णेश्वरी| कामदनाथ| पेट
16| गंधकी|मुक्तिनाथ, नेपाल| नारायणी|विष्णु|कंठ (गला)
17|अम्बाजी| बनासकांठा, गुजरात| अंबा| बालेश्वर | हृदय 18 | कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ|कुरुक्षेत्र, हरियाणा|सती | शिव | दायाँ कंधा |
19| जशोरेश्वरी|सतखीरा, बांग्लादेश|जशोरेश्वरी|चण्ड | हथेली |
20 | श्रंगेरी | कर्नाटक|शारदा| शिव| नासिका (नाक)
21| महाकाली | उज्जैन, मध्यप्रदेश | अवंती | लम्बकरण | ऊर्ध्व अधर (ऊपरी होंठ) |
22 | महालक्ष्मी| तुलजापुर, महाराष्ट्र | लक्ष्मी| शम्भू |कान 23 | महालया| महालया तट, बांग्लादेश| महालया| शूलभद्र | नितम्ब (कमर)|
24 |ललिता| प्रयागराज, उप्र| ललिता| भैरव| ऊरु (जांघ) 25| बहुला|वर्धमान, बंगाल|बहुला|भैरव सरवनंद |बाँया हाथ |
26| एकलिंगजी| उदयपुर| अम्बिका | एकलिंग| गर्दन|
27|हरसिद्धि | उज्जैन| हरसिद्धि कपाली | कुहनी|
28| मंगला गौरी| गया, बिहार मंगला| शिव| स्तन (बाँया) |
29|कामरूपेश्वरी|असम |कामेश्वरी|उमानंद| योनि |
30| देवगढ़| झारखंड|जयदुर्गा| शिव| दांत|
31| रत्नेश्वरी| रत्नेश्वर, कर्नाटक| रत्नेश्वरी | शिव | केश
32|पञ्चसागर|वाराणसी|वाराही|वटुकनाथ|दाँया कंधा
33| अट्टहास| बर्धमान, बंगाल | अट्टहासिनी| भैरव | होंठ 34 | भ्रामरी| कूचबिहार, बंगाल| भ्रामरी | शिव | सिर
35| महाशिरा| नेपाल| महाशिरा|कपालीश्वर | सिर |
36|विशालाक्षी|वाराणसी|विशालाक्षी|कालभैरव| कान की बालियाँ |
37| विंध्यवासिनी| मिर्जापुर,उप्र|विंध्यवासिनी|रुद्र | घुटना
38|नारायणी|जनकपुर, नेपाल|नारायणी| विष्णु | गला 39|हनुमानगढ़ी|अयोध्या|शक्तिरूपा|कालेश्वर| भौंह |
40| चंद्रभागा| कर्नाटक| चंद्रभागा | भैरव| कमर|
41|सतीचौरा|अलीगढ़, उप्र|सावित्री| भैरव | हृदय |
42|कालिका|कालीघाट, कोलकाता|कालिका|नकुलेश्वर| पाँव
43| देवीपाटन| बलरामपुर, उप्र| पतनदेवी| भैरव | गाल
44 |मंदारगिरि |भागलपुर, बिहार| योगिनी| भैरव| जांघ 45|शोनितपुर| तेजपुर, असम|शोनिता| शिव | नख
46| पुष्कर|अजमेर, राजस्थान| गायत्री| शिव | नाभि |
47| भैरवपद |कुंडपुर, बंगाल|सती| भैरव| पाँव की उंगली
48|त्रिपुरा सुंदरी |उदयपुर, त्रिपुरा|त्रिपुरेश्वरी| त्रिपुरेश|दाहिना पाँव|
49|चामुंडेश्वरी|मैसूर, कर्नाटक | चामुंडा| शिव | नाक |
50| गिरिजा | गिरिजास्थान, ओडिशा | गिरिजा | भैरव | बाँया स्तन |
51| कन्याकुमारी | तमिलनाडु | भगवती | शिव | पीठ (पीछे का भाग) |
इन सभी शक्तिपीठों में पूजा करने से जीवन के संकट दूर होते हैं।तांत्रिकों के लिए ये साधना केंद्र हैं। प्रत्येक स्थान पर शक्ति के दर्शन अलग-अलग रूप में होते हैं कहीं उग्र, कहीं सौम्य। इनके दर्शन मात्र से भक्त को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। और कुंडलिनी जागरण में सहायक। संकटों से रक्षा और आंतरिक बल की प्राप्ति होती है। माँ के इन रूपों के दर्शन से संपूर्ण जीवन धन्य हो जाता है। 51 शक्तिपीठ केवल तीर्थस्थल नहीं, बल्कि शाश्वत चेतना के केंद्र हैं। ये हमें यह स्मरण कराते हैं कि शक्ति हर रूप में, हर स्थान पर, और हर परिस्थिति में हमारे साथ है। ये पीठ हमें शक्ति के प्रति समर्पण, भक्ति और आत्मा के परम लक्ष्य की ओर अग्रसर करते हैं।