##अनुष्ठान में नौग्रह पूजा का क्या है महत्व?

 विनोद कुमार झा

कल्पना कीजिए अरण्य में तप करते एक ऋषि की आंखों से अग्नि झलक रही है। उनके सामने धधकती यज्ञ-वेदिका है, और आकाश में विचरण करते नवग्रह अपनी-अपनी स्थिति में थरथरा रहे हैं। ऐसा लगता है मानो समय थम गया हो। ऋषि के एक उच्चारित मंत्र से सूर्य मंद पड़ गया, और शनि थरथराने लगा। देवताओं के लोकों तक कंपन पहुंचा क्योंकि यह केवल पूजा नहीं थी, यह नवग्रहों की सत्ता को साधने की प्रक्रिया थी।

नवग्रह, ब्रह्मांडीय शक्तियाँ, जिनकी गति से जीवन का हर पल नियंत्रित होता है। ये कोई मात्र खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि देवताओं के रूप में पूज्य हैं क्योंकि इनका प्रभाव हमारे कर्म , भाग्य और मनोस्थिति पर सीधा पड़ता है। अनुष्ठानों में इनकी पूजा इसलिए की जाती है ताकि ये संतुलन बनाए रखें और अनिष्ट के संभावित प्रभावों को टाल सकें।

##नवग्रह: देवताओं की वह मण्डली है जो भाग्य की डोर थामे हुए है। हिंदू धर्म में नवग्रह कहे जाते हैं जो इस प्रकार है :-

1. सूर्य (आत्मा का कारक)

2. चंद्र (मन का प्रतिनिधि)

3. मंगल (शक्ति और पराक्रम का देवता)

4. बुध (बुद्धि और वाणी के अधिपति)

5. गुरु (बृहस्पति) (धर्म, ज्ञान और बृहद्तत्व)

6. शुक्र (भोग, कला और प्रेम के दाता)

7. शनि (कर्मफलदाता और न्यायधीश)

8. राहु (छाया ग्रह, माया और भ्रम का केंद्र)

9. केतु (गूढ़ ज्ञान, मोक्ष और आध्यात्मिकता का द्वार)

इन नौ ग्रहों की सामूहिक ऊर्जा हमारी जन्मपत्रिका से लेकर जीवन की प्रत्येक घटना तक को आकार देती है। नवग्रहों के अनुकूल रहने का अर्थ है जीवन में समृद्धि, संतुलन और शांति। किंतु जब इनका संतुलन बिगड़ता है—तो अशांति, बीमारी, मानसिक क्लेश और विफलताएं जन्म लेती हैं।

##नवग्रह पूजा का अनुष्ठानों में सम्मिलन क्यों आवश्यक है?

1. कर्मों का शमन और ग्रह पीड़ा की निवृत्ति : हर जन्मपत्रिका में कुछ ग्रह शुभ स्थिति में होते हैं और कुछ अशुभ। यदि कोई अनुष्ठान (जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ, संतानोत्पत्ति, या दीक्षा) बिना नवग्रह पूजा के किया जाए, तो उनके प्रभाव में बाधाएं आ सकती हैं। नवग्रह पूजन से उन ग्रहों को संतुष्ट कर उनका कोप टाला जा सकता है।

 2. सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान : हर ग्रह एक विशेष ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे सूर्य तेज का, चंद्र शीतलता का, गुरु ज्ञान का। नवग्रह पूजा से ये ऊर्जाएं वातावरण में समाहित होती हैं और अनुष्ठान अधिक प्रभावशाली बनता है।

3. प्रत्येक कर्म के पीछे ग्रहों का संचालन : यह मान्यता है कि प्रत्येक कर्म के फल की डोर नवग्रहों के हाथों में है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार विघ्न आ रहे हों, तो उसके पीछे शनि, राहु या केतु की बाधाएं हो सकती हैं। नवग्रह पूजा करके उन बाधाओं को न्यून किया जाता है।

##नवग्रह पूजा की विधि (संक्षेप में)

1. आसन और शुद्धि : पूजा करने वाले का स्थान और शरीर शुद्ध हो।

2. ध्यान और आवाहन : प्रत्येक ग्रह का आवाहन मंत्रों द्वारा किया जाता है।

3. मंत्र जप : नवग्रहों के बीज मंत्रों का जप किया जाता है।

4. हवन : नवग्रहों को समर्पित आहुति अग्नि में दी जाती है।

5. दक्षिणा और दान : ग्रहों को शांत करने के लिए संबंधित वस्तुओं का दान भी आवश्यक होता है।

 जैसे: शनि के लिए काले तिल, कंबल, लोहे की वस्तु,  शुक्र के लिए सफेद वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, राहु के लिए नीले फूल, उड़द, नीला कपड़ा।

वास्तविक जीवन में नवग्रह पूजा के लाभ (कुछ चमत्कारी दृष्टांत)

राजा दशरथ और शनि का अनुष्ठान :  रामायण में वर्णित है कि जब शनि ने पृथ्वी को पीड़ा देना चाही, तब राजा दशरथ ने शनि से यज्ञ और स्तुति द्वारा उसे शांत किया। वास्तविक जीवन में कहा जाता है कि जब  जीवन में शनि की साढ़ेसाती आई, उन्होंने नवग्रह पूजा करवा कर स्थिति को संभाला जा सकता है।

ग्रहों का प्रभाव रोग-निवारण में : अनेकों चिकित्सक और आयुर्वेदाचार्य यह मानते हैं कि नवग्रहों के असंतुलन से शरीर की 9 प्रमुख प्रणालियाँ प्रभावित होती हैं। नवग्रह पूजा से मानसिक शांति के साथ-साथ शारीरिक आरोग्यता भी प्राप्त होती है।

##आधुनिक युग में नवग्रह पूजा की प्रासंगिकता 

ज्योतिषीय उपचार का माध्यम : बिना रत्न धारण किए भी नवग्रह पूजा से उनका प्रभाव संतुलित किया जा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: चंद्र, राहु और केतु जैसे ग्रह मानसिक स्थिति पर गहरा असर डालते हैं। उनकी शांति से चिंता, अवसाद और भ्रम कम हो सकते हैं।

सामूहिक कल्याण हेतु : किसी परिवार या संस्था में लंबे समय से नकारात्मकता हो, तो सामूहिक नवग्रह पूजा एक प्रभावी समाधान हो सकता है।

नवग्रहों की पूजा केवल किसी अनुष्ठान की औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड की शक्तियों को अपने पक्ष में करने का विज्ञान है। जब नवग्रह संतुष्ट होते हैं, तब आपका भाग्य भी मुस्कुराने लगता है। यह पूजा आपको न केवल बाह्य शांति देती है, बल्कि अंतरात्मा को स्थिरता और चेतना की ऊंचाई भी प्रदान करती है।

तो अगली बार जब आप कोई शुभ कार्य करें नवग्रहों का स्मरण अवश्य करें , क्योंकि जब वे प्रसन्न हों, तो खुद काल भी आपकी राह का पत्थर नहीं बनता।

नवग्रह स्तोत्र (कल्याण हेतु पाठ्य मंत्र):

जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।  

तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥

(सूर्यदेव के लिए यह मंत्र पाठ आपके जीवन में प्रकाश भर सकता है।)

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