##भारत अब अकेला नहीं...

- वैश्विक मंच पर भारत की आतंकवाद के विरुद्ध दृढ़ प्रतिज्ञा

भारत की आतंकवाद के खिलाफ 'शून्य सहिष्णुता' की नीति केवल एक नीतिगत घोषणा नहीं, बल्कि एक नैतिक और कूटनीतिक प्रतिबद्धता बन चुकी है। बीते सप्ताहों में विभिन्न देशों में पहुँचे भारतीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों की गतिविधियाँ इस तथ्य की सशक्त गवाही देती हैं कि भारत अब आतंकवाद के विरुद्ध अकेला नहीं खड़ा है। पनामा, फ्रांस, इंडोनेशिया, कनाडा, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश न केवल भारत के दृष्टिकोण को समझ रहे हैं, बल्कि उसका समर्थन भी कर रहे हैं। शशि थरूर, रविशंकर प्रसाद, संजय झा, बैजयंत जय पांडा जैसे वरिष्ठ सांसदों के नेतृत्व में भारत ने एकजुट होकर वैश्विक लोकतंत्रों को यह संदेश दिया कि आतंकवाद केवल किसी एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह समूची सभ्यता के लिए खतरा है। कनाडा की संसद अध्यक्ष डाना कास्टानेडा को कश्मीरी शॉल भेंट कर थरूर ने भारत की सांस्कृतिक गरिमा को उजागर किया, तो वहीं फ्रांसीसी उपराष्ट्रपति जैकलीन ब्रिनियो ने भारत की आतंकवाद विरोधी पहल को स्पष्ट और दृढ़ समर्थन देकर यह स्पष्ट किया कि पेरिस, नई दिल्ली के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।

पनामा सिटी के मंदिर में जब मुस्लिम सांसद सरफराज अहमद अपने हिंदू और सिख सहयोगियों के साथ पूजा-अर्चना में सम्मिलित हुए, तो वह केवल एक व्यक्तिगत क्षण नहीं था, बल्कि भारत के भीतरू सौहार्द, एकता और धर्मनिरपेक्षता की जीवंत तस्वीर थी। थरूर ने इसे "भावुक क्षण" कहकर देश के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिपक्वता की पहचान कराई। यह दृश्य यह भी दर्शाता है कि भारत का संघर्ष किसी धर्म विशेष के विरुद्ध नहीं, बल्कि उस विचारधारा के विरुद्ध है जो मानवता के मूल्यों को रौंदती है। फ्रांस, इंडोनेशिया और सऊदी अरब के मंचों पर जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान की आतंकी संरचनाओं की जानकारी दी, तो यह केवल एक राजनीतिक कूटनीति नहीं, बल्कि मानवता के प्रति एक नैतिक चेतावनी थी। एमजे अकबर ने सटीक रूप से कहा कि "प्रायोजित आतंकवाद की शुरुआत पाकिस्तान से हुई", और यह आज भी वही भ्रम पाले बैठा है कि यह रास्ता उसे सफलता दिला सकता है। इस वक्तव्य के पीछे केवल भारतीय पीड़ा नहीं, बल्कि वैश्विक यथार्थ की झलक है।

रविशंकर प्रसाद ने फ्रांसीसी प्रतिनिधियों से संवाद के दौरान जो बात कही, वह आज के समय का मूल मंत्र है “पूरी लोकतांत्रिक दुनिया को आतंक के खिलाफ एक स्वर में आवाज उठाने की जरूरत है।” यह केवल भारत की मांग नहीं, बल्कि हर उस राष्ट्र की ज़रूरत है जो स्वतंत्रता, शांति और मानवीय गरिमा में विश्वास रखता है। यदि आतंकवाद को वैश्विक खतरा माना जाता है, तो उसका उत्तर भी वैश्विक एकता में ही संभव है। दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब जैसे विविध पृष्ठभूमि वाले देशों का भारत के साथ आना यह दर्शाता है कि भारत की आवाज़ अब केवल एक क्षेत्रीय नहीं, बल्कि एक वैश्विक नैतिक नेतृत्व की भूमिका में है। जब भारत अपने प्रवासी समुदाय के साथ मिलकर आतंक के विरुद्ध खड़ा होता है, तो यह केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता की रक्षा की भी बात होती है।

बीते वर्षों में भारत ने जिस प्रकार आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने की दिशा में कार्य किया है, वह प्रशंसनीय है। पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करना और उसकी छद्म नीतियों को विश्व पटल पर उजागर करना केवल भारतीय कूटनीति की सफलता नहीं, बल्कि मानवता के पक्ष में खड़ा होना है। आज आवश्यकता है कि यह वैश्विक एकजुटता केवल वक्तव्य और निंदा तक सीमित न रहे, बल्कि ठोस सामूहिक कार्रवाई की दिशा में बढ़े।भारत की यह कूटनीतिक पहल एक नई आशा जगा रही है  आशा इस बात की कि दुनिया अब आतंक के खिलाफ केवल देखती नहीं, बल्कि मिलकर लड़ती है। यही भारत की सबसे बड़ी विजय है।

– संपादक


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