श्रीविष्णुपुराण : ब्रह्मा की सृष्टि और सृजन का रहस्य

विनोद कुमार झा

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम । देवी सरस्वती व्याप्तं ततो जयमुदिरयेत।।

तीन गुणों की क्रिया और तत्वों की उत्पत्ति के पश्चात अब सृष्टि रचना का संचालन आरम्भ होता है। इस अध्याय में ब्रह्मा की उत्पत्ति, उनके द्वारा विविध सृष्टियों की रचना और उसमें आनेवाली विफलताओं तथा साधना की गाथा है।

यह अध्याय न केवल ब्रह्मा के चिंतन और योग का चित्रण करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सृजन की गति ईश्वर के आदेश के बिना पूर्ण नहीं होती।

कथा आरम्भ : पराशर मुनि बोले, हे मैत्रेय! जब पाँच भूत, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और अहंकार सभी एकत्रित हो गये, तब भी वे सृष्टि करने में असमर्थ थे। वे अलग-अलग होकर निष्क्रिय थे, जैसे बिना सारथी के रथ।

तब भगवान विष्णु की प्रेरणा से सब तत्व एकत्रित होकर एक रूप में प्रकट हुए। यह था हिरण्यगर्भ, जो ब्रह्मा के रूप में प्रसिद्ध हुए।

ब्रह्मा की उत्पत्ति : विष्णु की नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। वह कमल ब्रह्माण्ड के मध्य तक विस्तृत था। उसके भीतर ब्रह्मा प्रकट हुए, जो सब ओर अन्धकार ही अन्धकार देखकर चकित हो गये। वे न तो अपने स्वरूप को जानते थे, न दिशा, न कारण। उन्होंने विचार किया"मैं कौन हूँ? किससे उत्पन्न हुआ हूँ?"और तब ध्यान में लीन हो गये।

ब्रह्मा का तप और ध्यान : उन्होंने हज़ार दिव्य वर्षों तक योग किया। विष्णु का ध्यान किया। और तब उनके हृदय में ज्ञान का प्रकाश हुआ। उन्होंने जाना कि "मैं ब्रह्मा हूँ, और विष्णु ही सर्वस्व हैं। उन्हीं के आदेश से यह सृष्टि सम्भव है।"

ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का संकल्प: तब ब्रह्मा ने सृष्टि का संकल्प किया और चारों ओर देखा परंतु फिर भी उन्हें सृष्टि की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं हो रही थी। तब विष्णु ने उन्हें दर्शन दिया और कहा:

"हे ब्रह्मन्! तुम मेरी शक्ति से सृष्टि करो। तुम सृजनकर्ता हो, परन्तु सृजन की प्रेरणा मुझसे प्राप्त करोगे। तुम्हारी बुद्धि मेरे तप से प्रकाशित होगी।"

ब्रह्मा की आरम्भिक सृष्टियाँ : ब्रह्मा ने सर्वप्रथम मन उत्पन्न किया। फिर संज्ञा, काम (इच्छा) ,क्रिया, वाणी, और फिर रति और श्रद्दा जैसी भावनाएँ। इसके बाद उन्होंने सिद्ध ,चारण, गंधर्व, अप्सरा ,यक्ष ,राक्षस ,पिशाच, और दैत्य उत्पन्न किए। परंतु, हे मैत्रेय! यह सृष्टि असंतुलित थी।

राक्षस और पिशाच सत्त्वगुणहीन थे, और उन्होंने ब्रह्मा पर ही आक्रमण कर दिया। ब्रह्मा भयभीत होकर अर्धरात्रि को लीन हो गए।

रात्रि सृष्टि उस समय तमोगुण प्रभावी था। तब रात्रि की सृष्टि हुई वह राक्षसी और घोर रूप वाली थी। इससे उत्पन्न हुए भय, माया, निद्रा, तृष्णा, क्रोध, मोह और अज्ञान।

सांध्या सृष्टि और देवसृष्टि : ब्रह्मा ने फिर सत्त्वगुण से सांध्या सृष्टि की रचना की यह ज्ञान और विवेक की वाहक थी।

तब उन्होंने देवसृष्टि की रचना की जिसमें उत्पन्न हुए देवता, ऋषि, यज्ञ, और धर्म।

मनु की उत्पत्ति : ब्रह्मा ने आगे स्वायम्भुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया, जिनसे मानव जाति की वंशावली प्रारम्भ हुई।मनु ने यज्ञ किया, धर्म स्थापित किया और पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न कीं जिससे संसार का क्रम आगे बढ़ा।

हे मैत्रेय! इस सृष्टि की प्रक्रिया में ब्रह्मा भी केवल निमित्त हैं।प्रेरणा, शक्ति, और विधि सब कुछ भगवान विष्णु की ही लीला है। यह जानकर जो मनुष्य अहंकार को त्यागता है और अपने कर्तव्यों का पालन करता है,वही वास्तव में धर्म को समझ पाता है।

इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेऽंशे चतुर्थोऽध्यायः।


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