विनोद कुमार झा
"जहाँ श्रीराम हैं, वहाँ हनुमान हैं; और जहाँ हनुमान हैं, वहाँ केवल पराक्रम नहीं, वहाँ ममता भी है, भक्ति भी है, और दिव्य ज्ञान की उजास भी।"
वो जो राम के एक संकल्प पर समूची लंका को धूल बना दे, वही हनुमान जब सीता माँ की सुध लेने अशोक वाटिका पहुँचे, तो उनके नयनों में बहता प्रेम किसी पुत्र की तरह माँ के लिए हिलोरें लेने लगा। वे सिर्फ बलशाली नहीं हैं, वे समर्पण की अंतिम सीमा हैं। राम के प्रति उनकी भक्ति इतनी विशुद्ध और निर्विकल्प है कि स्वयं भगवान ने उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सेवक’ की उपाधि दी। लघुता में अनंत विस्तार और विराटता में भी कोमलता का नाम है महावीर हनुमान।
उनका पराक्रम केवल युद्धों में नहीं, उनके अंतर्मन में है, जहाँ भक्ति है, प्रेम है और त्याग का वह तेज है जो उन्हें सभी सिद्धियों का अधिपति बना देता है। जब लक्ष्मण मूर्छित पड़े थे, तब उनका स्पंदन रोक लेने वाली धरती के बीच से उठकर हनुमान ने संजीवनी लाने का संकल्प लिया। जब लंका जल उठी, तब उसमें रौद्र नहीं, राम नाम की तपिश थी। जब वह सुरसा के मुख में गए, तब अणु बनकर, और जब पर्वत उखाड़ लाए, तब विराट बनकर ये सभी थे उनकी अष्ट सिद्धियाँ, जो उन्होंने अपनी निष्कलंक भक्ति से अर्जित की थीं।
हनुमान की शक्ति, भक्ति और बुद्धि का यह त्रिवेणी संगम उन्हें केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि सनातन धर्म के सबसे दिव्य, सजीव और साक्षात चिरंजीवी बना देता है। राम की राह पर चले इस वानरराज ने संसार को दिखा दिया कि प्रेम में कितनी शक्ति होती है और भक्ति में कितना बल।
आइये, उन्हीं अष्ट सिद्धियों के रहस्यों को समझें जो हनुमान को "सिद्धि-सम्पन्न" देवता बनाती हैं, और जिनका स्मरण मात्र जीवन में शक्ति और शांति का संचार कर देता है...
ये अष्ट सिद्धियाँ इस प्रकार है :-
अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः।।
अब आइये इन आठों सिद्धियों का गहन विवेचन करते हैं:-
1. अणिमा सिद्धि : (सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप धारण करने की शक्ति) : अणिमा वह दिव्य शक्ति है जिससे साधक अपने शरीर को इतना सूक्ष्म बना सकता है कि वह किसी भी वस्तु में समा सकता है या अदृश्य हो सकता है। यह शक्ति उस आत्मनिष्ठ साधना का फल है जो साधक को अणु के समान बना देती है। हनुमान जी ने इस सिद्धि का प्रयोग कई बार किया।
* जब वे लंका में प्रवेश करने लगे, तो लंकिनी राक्षसी से बचने के लिए सूक्ष्म रूप धर लिया।
* सुरसा द्वारा उन्हें निगलने की कोशिश की गई, तब अति विशाल बन जाने के बाद पुनः अति सूक्ष्म बनकर उनके मुख से बाहर निकल गए।
* अहिरावण की यज्ञशाला में भी उन्होंने इसी सिद्धि के बल पर अंधकार को चीरते हुए प्रवेश किया। यह सिद्धि हनुमान जी की चतुरता, साधन-बल और प्रभु-सेवा की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
2. महिमा सिद्धि : (विराट, अत्यंत विशाल रूप धारण करने की शक्ति) : महिमा सिद्धि के माध्यम से साधक अपने शरीर को अनंत, विराट बना सकता है, जिसकी सीमा कोई नहीं जान सकता। हनुमान जी की विराटता के कई प्रमाण हैं:-
* सुरसा से बचने के लिए उन्होंने एक योजन (लगभग 13 किमी) तक अपना शरीर बढ़ा दिया।
* जब वे अशोक वाटिका में सीता माँ को रामकथा सुना रहे थे, और उन्होंने पहचान जाहिर करनी चाही, तो उन्होंने अपना स्वरूप इतना बड़ा कर लिया कि सीता माँ समझ सकें कि ये कोई साधारण वानर नहीं, प्रभु राम के दूत हैं।
* जब वे संजीवनी पर्वत नहीं पहचान सके, तब उन्होंने पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया। ये सब महिमा सिद्धि का परिणाम था।यह सिद्धि हनुमान जी की आध्यात्मिक विराटता और ईश्वर के प्रति उनकी असीम श्रद्धा की झलक देती है।
3. लघिमा सिद्धि : (अपने शरीर को अत्यंत हल्का करने की शक्ति) : लघिमा वह सिद्धि है जिससे साधक अपने शरीर का भार इतना हल्का कर सकता है कि वह वायु के वेग से भी उड़ सके। यह शक्ति उन्हें पल में पवन सम गति प्रदान करती है।
* जब हनुमान जी अशोक वाटिका पहुँचे, तो एक पत्ते पर बैठ गए, जैसे एक तितली हो।
* समुद्र पर राम नाम से पत्थरों को तैराने के लिए, उन्होंने अपने शरीर और वायु तत्व को इतना सूक्ष्म और हल्का किया कि उनकी गति असंभव प्रतीत होती थी। यह सिद्धि हनुमान जी की गतिशीलता, चपलता, और प्रभु-कार्य की तत्परता का प्रतीक है।
4. गरिमा सिद्धि : (अपने शरीर को अत्यधिक भारी बना लेने की शक्ति) : गरिमा सिद्धि से साधक चाहे तो अपने शरीर को इतना भारी बना सकता है कि कोई उसे हिला भी न सके।
* जब भीम हनुमान जी के पूँछ को पार करना चाहते थे, तो हनुमान जी ने अपने पूँछ का भार इतना बढ़ा दिया कि महाबली भीम भी उसे टस से मस नहीं कर सके।
* लंका युद्ध में जब राक्षसों ने उन्हें बाँधना चाहा, तो उनका शरीर इतना भारी हो गया कि उनकी पकड़ में ही न आए। यह सिद्धि हनुमान जी की स्थिरता , आत्मबल, और अडिगता की द्योतक है।
5. प्राप्ति सिद्धि : (चाहे कोई भी वस्तु हो, उसे प्राप्त करने की शक्ति) : प्राप्ति सिद्धि से साधक किसी भी वस्तु, स्थान, स्थिति को तुरंत प्राप्त कर सकता है। वह कहीं भी जा सकता है, अदृश्य हो सकता है और पशु-पक्षियों की भाषा भी समझ सकता है।
* हनुमान जी ने इसी सिद्धि से माता सीता की खोज की और उनकी पीड़ा समझी।
* वन-वन, पर्वत-पर्वत घूमकर उन्होंने श्रीराम का कार्य सफल किया। वे जहाँ चाहे, जब चाहे पहुँच सकते थे देवताओं की सभा में, पाताल लोक में , या स्वर्ग लोक में। यह सिद्धि हनुमान जी की दृढ़ इच्छा शक्ति , दिव्य दृष्टि , और परम कार्यनिष्ठा का प्रमाण है।
6. प्राकाम्य सिद्धि : (इच्छित वस्तु को स्थायी रूप से प्राप्त करने की शक्ति) : प्राकाम्य सिद्धि के प्रभाव से साधक जो चाहे, वह प्राप्त कर सकता है और वह वस्तु नष्ट नहीं होती।
* हनुमान जी चिरंजीवी हैं, यही इस सिद्धि का प्रमाण है।
* वे इच्छा मात्र से जल, थल, नभ में गति कर सकते हैं।
* उन्हें अजर, अमर होने का वरदान भी इसी सिद्धि से प्राप्त है।
* श्रीराम की भक्ति को भी उन्होंने स्थायी और अनंत बना लिया। यह सिद्धि हनुमान जी के अमरतत्त्व, विरक्ति, और परब्रह्म से तादात्म्य की अनुभूति कराती है।
7. ईशित्व सिद्धि ; (दैवी सत्ता, नेतृत्व और देवपद की प्राप्ति) : ईशित्व वह स्थिति है जहाँ साधक को ईश्वर तुल्य अधिकार प्राप्त हो जाता है। वह देवताओं जैसा पूजनीय बन जाता है।
* हनुमान जी को आज भी पूरे भारत में देवता के रूप में पूजा जाता है।
* उन्होंने सुग्रीव को नेतृत्व दिया, वानर सेना का संचालन किया और प्रभु राम के कार्य में अग्रणी बने।
* देवताओं ने भी उन्हें आशीर्वाद और दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए।यह सिद्धि हनुमान जी की प्रेरणात्मक नेतृत्व क्षमता , निःस्वार्थता, और दैवी ऊर्जा का साक्ष्य है।
8. वशित्व सिद्धि : (इन्द्रियों एवं दूसरों पर नियंत्रण की शक्ति) : वशित्व सिद्धि से साधक अपनी सभी इन्द्रियों को वश में कर लेता है और साथ ही, इच्छानुसार किसी पर भी प्रभाव डाल सकता है।
* हनुमान जी जितेन्द्रिय ब्रह्मचारी हैं, जिन्होंने जीवनपर्यंत शुद्धता और संयम का पालन किया।
* वे जब चाहें, किसी को वश में कर सकते हैं शत्रु हो या मित्र।
* रावण जैसे राक्षस भी उनकी शक्ति से भयभीत थे। यह सिद्धि हनुमान जी की आत्मनियंत्रण , ब्रह्मचर्य और मन की स्थिरता की ऊँचाइयों को दर्शाती है।
इन अष्ट सिद्धियों के धारक हनुमान न केवल एक साधक हैं, न केवल एक योद्धा वे रामकथा के जीवित तत्व हैं। उनके लिए शक्ति का उपयोग केवल सेवा और प्रेम के लिए है, न कि प्रदर्शन के लिए।
हनुमान जी की भक्ति, उनकी शक्ति से भी बड़ी है। वे उस अमिट ज्योति के समान हैं, जो हर काल, हर युग में प्रभु श्रीराम की भक्ति की लौ जलाए रखते हैं। जो भी भक्त सच्चे हृदय से उनका स्मरण करता है, उसके जीवन में यही आठ सिद्धियाँ आत्मिक रूप से जाग्रत हो जाती हैं।