श्रीविष्णुपुराण : सृष्टि की पूर्णता और प्रजापति दक्ष की कन्याएँ की कथा

विनोद कुमार झा

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम । देवी सरस्वती व्याप्तं ततो जयमुदिरयेत।।

सृष्टि अब क्रमशः आकार ले रही थी। प्रजापतियों द्वारा संतति उत्पन्न हो रही थी। परंतु इस सृष्टि में स्थायित्व, संतुलन और अनुशासन लाने हेतु नारी शक्ति की प्रतिष्ठा अनिवार्य थी।
ब्रह्मा ने यह अनुभव किया कि यदि सृष्टि को गति देनी है,
तो उसका मूलधार स्त्रियाँ ही होंगी जो धर्म, प्रेम, करुणा, संयम और वंश-वृद्धि की प्रेरणा बनें। और तब प्रजापति दक्ष ने आगे बढ़कर अपने यशस्वी वंश की आधारशिला रखी जिससे संपूर्ण देव, असुर, मनुष्य, नाग, गंधर्व और अनेक लोकों की उत्पत्ति हुई।

कथा प्रारम्भ : पराशर मुनि बोले हे मैत्रेय! अब मैं तुम्हें उस प्रजापति दक्ष की कथा सुनाता हूँ, जो ब्रह्मा के मानस पुत्रों में प्रमुख और यशस्वी माने गए।
जब ब्रह्मा ने उनसे कहा,"हे दक्ष! तुम सृष्टि की स्थिरता हेतु संतान उत्पन्न करो,"तो उन्होंने तपस्या की और साठ कन्याओं को जन्म दिया। इन कन्याओं का विवाह विभिन्न ऋषियों, देवों और प्रजापतियों से हुआ, जिससे सृष्टि की असंख्य धाराएँ प्रवाहित हुईं।
 1. कश्यप से उत्पन्न कुल : कश्यप ऋषि, जो सप्तर्षियों में गिने जाते हैं, उन्होंने दक्ष की तेईस कन्याओं से विवाह किया।
इनके संयोग से अनेक प्रकार की योनियाँ उत्पन्न हुईं जैसे :-
* आदि शक्ति अदिति से देवता
* दिति से दानव और दैत्य 
* दनु से दानवों की अन्य शाखाएँ
* अरिष्ठा से गंधर्व और अप्सराएँ
* सुरसा से राक्षस
* कद्रू से नाग
* विनता से गरुड़ और अरुण
* मनु से मनुष्य
* तम्रा से पक्षी जातियाँ
* शार्मीष्ठा, काला, अनायु, क्रोष्टु, इल, भूतमती आदि से विविध जीव-जंतु। यह वही कश्यप हैं , जिनके वंश से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु, विष्णु के अवतार और शुक्राचार्य, बृहस्पति, गरुड़, नागराज वासुकि, रावण, विभीषण* तक की वंश परंपरा चली।
2. चन्द्रमा और रोहिणी : दक्ष ने अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा से किया जिनमें रोहिणी चन्द्रमा की सबसे प्रिय थीं। ये सत्ताईस कन्याएँ नक्षत्र रूप में मानी गईं। प्रत्येक नक्षत्र का एक-एक भाग चन्द्रमा में प्रवेश करता है, जिससे वह दिन-प्रतिदिन कला में वृद्धि करता है।
दक्ष ने चन्द्रमा को शाप भी दिया क्योंकि वह रोहिणी को अधिक प्रेम करता था। इस शाप के कारण चन्द्रमा को क्षय रोग हुआ,
और वह लुप्त होने लगा। तब चन्द्रमा ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें मस्तक पर स्थान दिया
और अमरत्व प्रदान किया।
3. अरिष्टनेमि, काश्यप और अन्य ऋषियों के वंश : बाकी कन्याओं का विवाह अन्य महर्षियों और प्रजापतियों से हुआ, जैसे:-  कृशाश्व ,भृगु, अत्रि ,अंगिरा , वशिष्ठ, पुलह, पुलस्त्य आदि।
इनसे जन्मे  ऋषिगण, देवर्षि नारद, शुक्राचार्य, च्यवन, जमदग्नि,  दुर्वासा, भारद्वाज, विश्वामित्र आदि।
4. दक्ष की पुत्री – सती और शिव का विवाह
प्रजापति दक्ष की एक अत्यंत तेजस्विनी कन्या थीं
सती, जिनका विवाह महादेव भगवान शिव से हुआ।
दक्ष को शिव के औघड़ और वैराग्यशील रूप से क्लेश था।
उन्होंने शिव का अपमान किया, और जब यज्ञ में उन्हें आमंत्रित नहीं किया, तब सती ने वहीं *योगाग्नि* से अपने शरीर का त्याग किया। यह प्रसंग आगे के अध्यायों में विस्तार से आएगा,
किन्तु यह सृष्टि की गहराई और ईश्वरीय योजना को प्रकट करता है कि जब नारी शक्ति का अपमान होता है, तो संहार अवश्य होता है।
 5. धर्म का स्थायित्व
दक्ष की कन्याओं से उत्पन्न वंशों ने सृष्टि को केवल संतान नहीं दी, बल्कि धर्म, नीति, तप, भक्ति और संयम की संस्थाएँ खड़ी कीं। इस सृष्टि में विविधता के साथ एक सूक्ष्म सामंजस्य भी था
जो केवल स्त्रियों की दिव्य भूमिका से संभव हो सका।
हे मैत्रेय! तुम यह न समझना कि सृष्टि केवल पुरुष की शक्ति से बनी। स्त्री जो सृजन की शक्ति है उसके बिना सृष्टि अपूर्ण है।
प्रजापति दक्ष की कन्याएँ ही इस सत्य की साक्षी हैं और इस सृष्टि में जो कुछ भी दृष्टिगोचर है, वह सब भगवान नारायण की प्रेरणा से ही गतिमान है।
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेऽंशे षष्ठोऽध्यायः।

Post a Comment

Previous Post Next Post