क्या सच में यह पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है? जानिए इसके पीछे की अद्भुत कथा

विनोद कुमार झा

कभी आपने सोचा है कि इतने बड़े-बड़े पर्वत, सागर, नदियाँ और महाद्वीपों से भरी यह पृथ्वी आखिर कैसे संतुलित रहती है? भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में इसका अद्भुत और रहस्यमय उत्तर मिलता है पृथ्वी शेषनाग के विशाल फनों पर टिकी हुई है! यह सुनने में भले ही अलौकिक लगे, पर महाभारत और अनेक धर्मग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है। तो आइए, इस प्राचीन कथा के रहस्यों से परदा उठाते हैं और जानते हैं कि आखिर क्यों शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फनों पर धारण किया।

शेषनाग का जन्म: नागों का राजा

ब्रह्मा जी के छह मानस पुत्रों में से एक थे मरीचि। मरीचि के पुत्र थे कश्यप ऋषि, जिन्होंने दक्ष प्रजापति की 17 कन्याओं से विवाह किया। इन्हीं में से एक थी कद्रू, जिससे हजारों नाग उत्पन्न हुए, जिनमें सबसे श्रेष्ठ और बलशाली थे शेषनाग।

कश्यप की एक और पत्नी थीं विनता, जिनसे गरुड़ और अरुण का जन्म हुआ। कद्रू और विनता में अक्सर प्रतिस्पर्धा रहती थी, और एक दिन यही प्रतिस्पर्धा बड़े घटनाक्रम का कारण बन गई।

कद्रू-विनता की शर्त और नागों का कपट

कथा के अनुसार, एक दिन कद्रू और विनता वन विहार को निकलीं। रास्ते में उन्हें एक अद्भुत घोड़ा दिखा — वह समुद्र मंथन से उत्पन्न उच्चैःश्रवा नामक दिव्य अश्व था। कद्रू ने कहा, “इस घोड़े की पूँछ काली है,” जबकि विनता ने कहा, “नहीं, यह पूर्णतः सफेद है।” दोनों में शर्त लग गई कि हारने वाली दूसरी की दासी बनेगी।

कद्रू, अपनी हार सुनिश्चित देख, छल का सहारा लेती है। वह अपने नागपुत्रों से कहती है कि वे घोड़े की पूँछ में लिपटकर उसे काला बना दें। नागों ने अपनी माँ का आदेश मान लिया।

शेषनाग का वैराग्य और कठोर तप

जब शेषनाग ने यह कपट और अधर्म देखा, उनका हृदय खिन्न हो उठा। उन्होंने अपने भाइयों और परिवार का त्याग कर दिया और हिमालय, गंधमादन और बदरिकाश्रम की ओर चले गए। वहाँ वे कठोर तपस्या में लीन हो गए  न अन्न, न जल, केवल वायु सेवन से जीवनयापन करते हुए इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का संकल्प लिया।

उनकी घोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो उठे और प्रकट होकर वरदान दिया: “तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।”

पृथ्वी का कंपन और शेषनाग का भार धारण

ब्रह्मा जी ने शेषनाग से कहा, “हे शेष, यह पृथ्वी पर्वतों, नदियों और सागरों के भार से हिलती रहती है। कोई ऐसा चाहिए जो इसे स्थिर कर सके, और तुम्हारे समान कोई नहीं।”

शेषनाग ने ब्रह्मा जी की आज्ञा को स्वीकार किया और अपने अद्भुत, सहस्रफनीय स्वरूप में पृथ्वी को अपनी फनों पर उठा लिया। तब से, पुराणों के अनुसार, पृथ्वी शेषनाग के स्थिर और संतुलित फनों पर टिकी हुई है।

इससे पहले पृथ्वी की स्थिति क्या थी?

धार्मिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में पृथ्वी जल में डूबी हुई थी। जब विष्णु जी ने ‘वराह अवतार’ लेकर पृथ्वी को जल से बाहर निकाला, तब से यह ऊपर स्थिर है। किंतु नदियों का प्रवाह, पर्वतों का भार और जीवों की गतिविधियों के कारण पृथ्वी में हलचल बनी रहती थी। ब्रह्मा जी के अनुरोध पर शेषनाग ने इसे अपने फनों पर संभाल लिया, ताकि पृथ्वी संतुलन में बनी रहे और जीवन का चक्र अविरल चलता रहे।

शेषनाग न केवल शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक हैं, बल्कि वैराग्य, तप, और धर्म के मार्ग पर अडिग रहने की मिसाल भी हैं। जब अपने ही परिवार ने अधर्म का मार्ग अपनाया, तब उन्होंने मोह-माया त्याग कर परम धर्म का पालन किया और ब्रह्मांड की स्थिरता का दायित्व संभाला।

पृथ्वी का शेषनाग के फनों पर टिके रहना महज एक प्रतीकात्मक कथा नहीं, बल्कि यह बताता है कि इस जगत में संतुलन बनाए रखने के लिए धर्म, धैर्य और त्याग कितना आवश्यक है। यह कथा हमें सिखाती है कि शक्ति का सही प्रयोग वही है, जो जगत की भलाई में लगे — और यही शेषनाग का वास्तविक संदेश है।

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