लहू से सने सिंदूर का हिसाब चुकता...

विनोद कुमार झा

 भारत ने आतंक के सिंदूर को पोंछने वालों से हिसाब चुकता किया। यह मात्र सैन्य कार्रवाई नहीं थी; यह एक सशक्त सांस्कृतिक प्रतिघात था, एक उत्तर था उन बंदूकधारियों को जिन्होंने हमारी माताओं-बहनों के माथे से सिंदूर छीनने की धृष्टता की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'ऑपरेशन सिंदूर' पर देश को किया गया यह पहला संबोधन सिर्फ़ एक औपचारिक वक्तव्य नहीं था  यह भारतीय अस्मिता का घोषणापत्र था। इस संपादकीय का उद्देश्य है उस रणनीतिक गहराई, सामाजिक पीड़ा और राजनीतिक दृढ़ता का विवेचन करना, जिसने इस ऑपरेशन को केवल सैन्य प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा का शुद्धिकरण बना दिया।

जब किसी स्त्री का सिंदूर मिटता है, तो वह केवल एक महिला का वैवाहिक प्रतीक नहीं मिटता, वह एक परिवार, एक समाज, और अंततः एक राष्ट्र के आत्मगौरव पर आघात होता है। आतंकी हमले जब निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाते हैं, तो वे न केवल शरीरों को छलनी करते हैं, बल्कि विश्वास को भी लहूलुहान कर देते हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' एक ऐसे ही क्षण की प्रतिक्रिया था जहां सीधी चोट एक महिला के सिंदूर पर हुई। यह भारत के सैन्य इतिहास में वह मोड़ था जहां बदले की भाषा भी मर्यादा में थी, लेकिन दृढ़ थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा , “आतंकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ा था, इसलिए भारत ने आतंक के हेडक्वार्ट्स उजाड़ दिए।” यह कोई सैन्य प्रवक्ता की सूचना नहीं थी, यह एक संस्कृति का उत्तर था। पीएम मोदी की यह पंक्ति शुद्ध राजनीतिक बयान नहीं थी, बल्कि वैदिक काल की 'राष्ट्र माता' की अवधारणा को सजीव करती थी। इसमें राजधर्म , स्त्री सम्मान, पराक्रम और *पुनरुद्धार* के चार स्तंभ गूँज रहे थे।

'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता केवल लक्ष्य भेदन में नहीं थी, बल्कि इस बात में थी कि भारत ने एक तरफ आतंक के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की, और दूसरी ओर शाम 5 बजे पाकिस्तान के साथ DGMO स्तर की शांति वार्ता भी की। यह एक परिपक्व राष्ट्र की पहचान है  जो हमला भी कर सकता है और संवाद भी साध सकता है। यह संतुलन भारत की नई कूटनीति का परिचायक है, जिसमें 'पहले बात नहीं, पहले जवाब' की नीति अपनाई गई।

प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया, “टेरर, ट्रेड और टॉक एक साथ नहीं हो सकते।” यह एक ऐतिहासिक कथन है। यह बताता है कि भारत अब दोहरा मापदंड नहीं अपनाएगा। अगर कोई देश एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में बंदूक लेकर भारत से संपर्क साधेगा, तो उसे साफ़ इंकार मिलेगा। यहाँ हमें ध्यान देना होगा कि पाकिस्तान लंबे समय से इस भ्रम में था कि वह आतंकवाद को “रणनीतिक सम्पत्ति” के रूप में उपयोग करता रहेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवाद का पात्र भी बना रहेगा। 'ऑपरेशन सिंदूर' ने इस भ्रम को तोड़ दिया।

इस ऑपरेशन का नाम ही 'सिंदूर' रखा जाना दर्शाता है कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए किया गया अभियान था। सिंदूर नारी की शक्ति और उसके स्नेह का प्रतीक है जो भारत की आत्मा का प्रतिबिंब है। इस नाम के माध्यम से भारत ने वैश्विक मंच पर यह स्पष्ट कर दिया कि अब वह न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि अपनी संस्कृति, भावनाओं और परंपराओं की भी रक्षा करेगा।

मनोरथों का आत्मविश्वास लौटा: आतंकी घटनाओं से सामान्य जनमानस भयभीत हो जाता है। लेकिन जब राष्ट्र बदला लेता है, तो जनता का विश्वास लौटता है कि सरकार उनके पीछे खड़ी है।

स्त्री सुरक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता: इस ऑपरेशन ने यह स्पष्ट कर दिया कि महिला सम्मान अब केवल सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।

राजनीतिक एकता का संचार: यह ऑपरेशन पार्टी-राजनीति से ऊपर उठकर सम्पूर्ण राजनीतिक विमर्श में एकजुटता का कारण बना।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा  “पाकिस्तानी फौज और सरकार जिस तरह आतंकवाद को खाद-पानी दे रहे हैं, वह एक दिन पाकिस्तान को ही समाप्त कर देगा।” यह वाक्य केवल चेतावनी नहीं थी, बल्कि इतिहास की एक संभावित भविष्यवाणी थी। जैसा कि अमेरिका ने अल कायदा और तालिबान के संदर्भ में देखा, पाकिस्तान भी उस राह पर है जहाँ वह अपने ही बनाए राक्षसों से निगल लिया जाएगा।

भारत की यह कार्रवाई उस दौर में हुई जब विश्व आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट तो है, पर निष्क्रिय भी है। 'ऑपरेशन सिंदूर' ने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को “क्रियाशील नेतृत्व” में बदला है। यह संकेत गया कि यदि संयुक्त राष्ट्र चुप है, तो भारत अपने नागरिकों के खून का बदला स्वयं ले सकता है  मर्यादा के भीतर, लेकिन निर्णायक ढंग से।

इस ऑपरेशन के दौरान भारतीय मीडिया ने जिस संवेदनशीलता से इसे कवर किया, वह सराहनीय है। समाचार चैनलों ने इसे टीआरपी के तमाशे की बजाय राष्ट्र की आवाज़ बनने का प्रयास किया। हालांकि कुछ वर्गों ने इसे “राजनीतिक स्टंट” बताने की भी कोशिश की, लेकिन जनसामान्य की प्रतिक्रिया ने इन आवाज़ों को स्वतः ही खामोश कर दिया। 

'ऑपरेशन सिंदूर' भारत के लिए केवल एक अभियान नहीं था, यह एक चेतना थी। अब आवश्यकता है कि हम इस चेतना को तीन स्तरों पर आगे बढ़ाएँ:

1. शैक्षिक स्तर पर जागरूकता: आतंक और उसकी विचारधारा को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों में वैज्ञानिक ढंग से समझाया जाए।

2. कूटनीतिक स्तर पर दबाव: पाकिस्तान को आतंक-समर्थक राष्ट्र घोषित करवाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाएँ।

3. सैन्य स्तर पर सतर्कता: एक बार की कार्रवाई काफी नहीं, भारत को सतत निगरानी और रक्षा की मुद्रा बनाए रखनी होगी।

'ऑपरेशन सिंदूर' एक ऐसा उदाहरण बन गया है जब भारत ने स्पष्ट कर दिया कि भावनाएँ उसकी कमजोरी नहीं, उसकी शक्ति हैं। जब कोई राष्ट्र अपनी स्त्रियों के सिंदूर की रक्षा के लिए हथियार उठाता है, तो वह केवल युद्ध नहीं करता, वह धर्म की रक्षा करता है। प्रधानमंत्री मोदी की भाषा में राष्ट्रभक्ति और मानवीय संवेदना का जो समावेश था, वह हमें यह विश्वास देता है कि भारत अब न केवल सीमा की रक्षा करेगा, बल्कि आत्मा की भी।

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