अब चुप नहीं बैठेगा भारत

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। 26 निर्दोष लोगों की मौत, जिनमें बड़ी संख्या में पर्यटक शामिल थे, न केवल एक अमानवीय कृत्य था, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और सुरक्षा को खुली चुनौती भी थी। ऐसे में भारत सरकार द्वारा लिए गए कड़े और स्पष्ट फैसलों का स्वागत किया जाना चाहिए।

पाकिस्तान को भेजी जाने वाली सभी डाक और पार्सल सेवाओं का निलंबन केवल प्रतीकात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह एक मजबूत राजनीतिक और कूटनीतिक संदेश है कि अब भारत ‘सब्र’ और ‘शांति वार्ता’ की राह पर चलते हुए अपनी जनता की सुरक्षा को खतरे में नहीं डालेगा। दशकों से पाकिस्तान की जमीन से चल रहे आतंकी नेटवर्कों को भारत ने लगातार सबूतों के साथ दुनिया के सामने रखा, पर हर बार उस तरफ से इनकार और धोखे का ही जवाब मिला। इस बार पहलगाम की निर्दोष लाशों ने देश के धैर्य का बांध तोड़ दिया है।

भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित कर पाकिस्तान को यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब पानी, जो जीवन का स्रोत है, उस पर भी उसका विशेषाधिकार तभी तक रहेगा जब तक वह पड़ोसी धर्म निभाएगा। अटारी बॉर्डर का बंद होना, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना और सामाजिक व व्यापारिक रिश्तों का सीमित होना एक ठोस कूटनीतिक घेरा है, जो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की दिशा में निर्णायक कदम माना जा सकता है।

हालांकि, हमें यह भी समझना होगा कि इन फैसलों का असर केवल सीमापार नहीं, बल्कि देश के भीतर भी महसूस होगा। व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले परिवारों पर इसका असर पड़ेगा, लेकिन आज देश की सुरक्षा और सम्मान सबसे ऊपर रखा जाना जरूरी है। भारत की जनता वर्षों से यह देखती आई है कि हर बड़े आतंकी हमले के बाद बयानबाजी के सिवा ज्यादा कुछ नहीं होता। इस बार सरकार का रुख और उसके उठाए कदम इस धारणा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।

अब सवाल यह है कि आगे की रणनीति क्या हो? क्या केवल डाक, पानी और बॉर्डर बंद करने से पाकिस्तान की नीतियां बदलेंगी? शायद नहीं। इसलिए भारत को अपनी सैन्य, कूटनीतिक और आंतरिक सुरक्षा नीतियों को एक साथ और मजबूती से लागू करना होगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की आतंकी भूमिका को उजागर करना, उसकी आर्थिक कमर कसने के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना, और घरेलू स्तर पर आतंक से निपटने के लिए खुफिया तंत्र को और सशक्त करना ये सभी कदम समानांतर रूप से आवश्यक हैं।

अंततः, यह क्षण केवल सरकार का नहीं, पूरे देश का इम्तिहान है। यह समय राजनीतिक मतभेद भुलाकर राष्ट्रीय एकजुटता दिखाने का है। पहलगाम के शहीदों की कुर्बानी को अगर सच्ची श्रद्धांजलि देनी है, तो हमें अपने भीतर भी यह ठानना होगा कि हम न तो आतंक के आगे झुकेंगे, न ही उसे भूलेंगे। भारत अब चुप नहीं बैठेगा यह संदेश इस बार न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया तक साफ-साफ पहुंचना चाहिए।

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