हनुमान जी को क्यों कहा जाता है अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता

विनोद कुमार झा

जब-जब इस धरती पर संकट आया है, तब-तब पवनपुत्र हनुमान ने अपनी अलौकिक शक्तियों से असम्भव को संभव कर दिखाया है। उनके एक नाम "सिद्धि-दानव" का अर्थ ही होता है वह जो सिद्धियाँ और निधियाँ देने में समर्थ हो।* भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा भक्त हो, जो संकटमोचन के चरणों में श्रद्धा न रखता हो। उनके पूजन मात्र से ही भक्त को असाध्य कार्यों में सफलता मिलने लगती है।

हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी को अष्ट सिद्धियों के साथ-साथ नौ निधियों का स्वामी कहा गया है। इस लेख में हम आपको बताएंगे वो नौ दिव्य निधियाँ कौन-सी हैं, जो उन्हें माता सीता ने वरदान स्वरूप दी थीं।

निधि क्या होती है?

‘निधि’ का अर्थ केवल धन नहीं होता बल्कि ऐसा दुर्लभ ऐश्वर्य जो अत्यंत साधना से प्राप्त हो, जिसकी प्राप्ति विरलों को ही होती है। ब्रह्माण्ड पुराण और वायु पुराण जैसे ग्रंथों में कई निधियों का उल्लेख मिलता है, किंतु उनमें से नौ निधियाँ विशेष और प्रभावशाली मानी जाती हैं।

अब आइए जानें, पवनपुत्र हनुमान जी को प्राप्त वे नौ दिव्य निधियाँ कौन-सी हैं:

1. रत्न-किरीट : हनुमान जी का सिर पर धारण किया गया मुकुट असाधारण है। वह अद्भुत रत्नों से जड़ा हुआ है, जिसकी आभा स्वर्गलोक को भी चकाचौंध कर दे। इस मुकुट की तुलना न तो किसी राजाधिराज के मुकुट से की जा सकती है, और न ही इंद्र के मुकुट से। यह सिर्फ हनुमान को ही शोभा देता है।

 2. केयूर : केयूर अर्थात भुजाओं में पहना जाने वाला स्वर्ण आभूषण। यह न केवल सौंदर्य और ऐश्वर्य का प्रतीक है, बल्कि हनुमान जी के लिए एक प्रकार की दिव्य कवच भी है, जो युद्ध में उनकी भुजाओं की रक्षा करता है।

 3. नूपुर :  हनुमान के चरणों में रत्नजड़ित नूपुर सुशोभित हैं। ये सामान्य नूपुर नहीं, बल्कि ऐसे दिव्य आभूषण हैं जिनकी झंकार से शत्रुओं का मनोबल डगमगा जाता है। यह केवल सौंदर्य का नहीं, अपितु शक्ति और प्रताप का भी प्रतीक है।

 4. चक्र : चक्र की बात हो और भगवान विष्णु का स्मरण न हो, यह हो नहीं सकता। परंतु क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी भी चक्रधारी हैं? राजस्थान के अलवर में हनुमान का एक प्रसिद्ध चक्रधारी रूप विद्यमान है, और जगन्नाथपुरी में तो अष्टभुजा हनुमान की प्रतिमा है जिनमें से चार भुजाओं में वे चक्र धारण किए हुए हैं। 

5. रथ : रथ केवल एक वाहन नहीं, योद्धा की पहचान होता है। रामायण में हनुमान पदाति (पैदल) रूप में ही युद्ध करते हैं, किंतु पुराणों के अनुसार वे दिव्य रथ के स्वामी हैं। महाभारत में जब अर्जुन के रथ की ध्वजा पर वे उपस्थित होते हैं, तब उस रथ को कोई परास्त नहीं कर पाता।

6. मणि : हनुमान जी के पास अनेक प्रकार की दिव्य मणियाँ हैं जैसे नागमणि, पद्ममणि, नीलमणि आदि। इन मणियों की ऊर्जा और संपत्ति इतनी विशाल है कि युधिष्ठिर की द्युतसभा में वर्णित सम्पदा भी उसके सामने कम प्रतीत होती है।

 7. भार्या (सुवर्चला) : यह तथ्य बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि एक विशेष परिस्थिति में हनुमान जी ने विवाह किया था। सुवर्चला , सूर्यदेव की पुत्री थीं। सूर्यदेव से सम्पूर्ण विद्याओं को प्राप्त करने हेतु हनुमान जी को गृहस्थ जीवन की योग्यता प्राप्त करनी पड़ी, अतः उन्होंने सुवर्चला से विवाह किया। यह विवाह साधना और ज्ञान के उच्चतम उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ था।

8. गज : गज अर्थात हाथी केवल एक प्राणी नहीं, बल्कि ऐश्वर्य, बल और गरिमा का प्रतीक है। गजराज ऐरावत भी समुद्र मंथन से प्राप्त एक निधि था। हनुमान जी की गज निधि उनके अंदर समाहित अपार बल का प्रतिनिधित्व करती है कुछ शास्त्रों में लिखा गया है कि हनुमान के भीतर दस लाख गजराजों का बल समाहित है।

9. पद्म : पद्म निधि का संबंध सात्विक संपत्ति से है। यह वह संपदा होती है जो श्रम और धर्म से अर्जित होती है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। इसका प्रयोग दान-पुण्य, लोक-कल्याण और संस्कृति की रक्षा हेतु होता है। हनुमान जी इसी सात्विक संपदा के संरक्षक हैं।

हनुमान और कुबेर दोनों निधियों के स्वामी 

कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं और उनके पास भी यही नौ निधियाँ हैं, किंतु एक अंतर है कुबेर केवल इन निधियों के रक्षक हैं, दाता नहीं। जबकि हनुमान जी इन्हें योग्य और श्रद्धालु भक्तों को प्रदान कर सकते हैं। यही कारण है कि उन्हें "अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता" कहा जाता है।

हनुमान जी केवल शक्ति और भक्ति के प्रतीक नहीं, अपितु संपदा, सौंदर्य, शौर्य और शांति के भी मूर्त स्वरूप हैं। जो भक्त सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसे केवल आशीर्वाद ही नहीं, बल्कि जीवन की अनगिनत निधियाँ भी प्राप्त होती हैं। इसीलिए आज भी संकटनाशन की पहली पुकार “जय बजरंगबली” से होती है!

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