प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नीति आयोग की 10वीं शासी परिषद की बैठक में दिया गया वक्तव्य "अगर केंद्र और राज्य मिलकर 'टीम इंडिया' की तरह काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है" वास्तव में भारत के भावी विकास का मूलमंत्र है। यह वक्तव्य केवल एक राजनीतिक दृष्टिकोण नहीं, बल्कि प्रशासनिक समन्वय, आर्थिक समरसता और साझा उत्तरदायित्व की दिशा में एक स्पष्ट आह्वान है।
भारत का संघीय ढांचा तभी प्रभावी और फलदायी सिद्ध हो सकता है जब केंद्र और राज्य एक-दूसरे के सहयोगी बनें, प्रतिद्वंद्वी नहीं। प्रधानमंत्री का यह कथन, जिसमें उन्होंने 'टीम इंडिया' की भावना पर बल दिया, भारतीय संघवाद के उस उन्नत चरण की ओर संकेत करता है जहाँ राजनीतिक भिन्नताओं के बावजूद विकास का साझा लक्ष्य सर्वोपरि होता है। "विकसित भारत" का सपना तब तक अधूरा रहेगा जब तक प्रत्येक राज्य और वहाँ का नागरिक समृद्ध और सशक्त न हो जाए। 2047 में विकसित भारत' का जो विज़न प्रस्तुत किया गया है, वह केवल एक प्रशासनिक एजेंडा नहीं है, यह उस आकांक्षा का प्रतिबिंब है जो आज 140 करोड़ भारतीयों के हृदय में है। यह लक्ष्य तभी साकार हो सकता है जब केंद्र सरकार राज्यों के साथ केवल संसाधन-वितरण या योजनाओं के कार्यान्वयन तक सीमित संवाद न रखे, बल्कि नीति-निर्माण के स्तर पर भी उन्हें सहभागी बनाए। विकास की गति बढ़ाने का मतलब केवल तेज़ी नहीं है, बल्कि उसकी दिशा, समावेशन और संतुलन भी उतना ही आवश्यक है।
शासी परिषद की बैठकें केवल प्रशासनिक समीक्षा या प्रस्ताव पारित करने का मंच नहीं हैं, वे भारत के संघीय ढांचे में विश्वास को मज़बूत करने का अवसर हैं। राज्यों की विविध आवश्यकताएं, सामाजिक-सांस्कृतिक भिन्नताएं और आर्थिक स्तर की विषमता को समझकर नीतियों का निर्माण तभी संभव है जब हर राज्य की बात को सुना जाए और उसे केंद्र के साथ साझेदार बनाया जाए। इस संदर्भ में 'टीम इंडिया' की भावना महज़ एक रूपक नहीं, एक रणनीतिक आवश्यकता है। जल-संरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटल समावेशन, महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में केवल योजनाओं की घोषणा से कार्य नहीं चलता, वहाँ ज़मीनी कार्यान्वयन और प्रशासनिक उत्तरदायित्व साझा करने की ज़रूरत है। राज्यों के पास ज़मीनी अनुभव और सामाजिक संदर्भ होते हैं, जिन्हें नीति निर्माण में शामिल करना अनिवार्य है।
प्रधानमंत्री द्वारा बैठक के विषय "2047 में विकसित भारत के लिए विकसित राज्य" को रेखांकित करना यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्र का विकास, राज्यों के विकास के बिना असंभव है। यह विषयवस्तु उस सोच का प्रतीक है जो क्षेत्रीय विषमताओं को पाटकर समान अवसर और समरसता की दिशा में काम करना चाहती है। विकसित भारत की संकल्पना में केवल जीडीपी वृद्धि या बुनियादी ढांचे की मजबूती नहीं है, उसमें सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय संतुलन, तकनीकी समावेशन और लोकतांत्रिक सहभागिता जैसी मानवीय आवश्यकताएं भी शामिल हैं। इस दिशा में नीति आयोग का दायित्व है कि वह राज्यों को केवल आंकड़ों के पैमाने पर न देखे, बल्कि उनकी विशिष्टताओं को पहचानकर विकास के मॉडल प्रस्तुत करे।
आज जब विश्व एक नई आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक संरचना की ओर बढ़ रहा है, भारत को भी आंतरिक स्तर पर संगठित और समन्वित होने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य अगर परस्पर विश्वास और समान उद्देश्य की भावना से काम करें, तो कोई भी चुनौती चाहे वह गरीबी हो, बेरोजगारी हो या जलवायु परिवर्तन असाध्य नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की बात केवल एक वक्तव्य नहीं, एक चेतावनी भी है यदि हम समन्वय की इस आवश्यकता को नहीं समझे, तो 'विकसित भारत' का सपना सिर्फ नारों तक सीमित रह जाएगा। यह समय है जब भारत 'टीम इंडिया' बनकर वैश्विक मंच पर विकासशील राष्ट्र नहीं, बल्कि विकसित और सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरे।
-संपादक