विनोद कुमार झा
सनातन धर्म में ध्वनि को ब्रह्म का स्वरूप कहा गया है "नाद ब्रह्मा"। सृष्टि की उत्पत्ति ओंकार से मानी गई है, और उसी दिव्य नाद से निकलती हैं वे पवित्र ध्वनियाँ जो केवल श्रवण नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने का माध्यम हैं। ऐसे में कुछ विशेष वाद्य या ध्वनियाँ धर्म, साधना, योग और ध्यान के अनिवार्य अंग बन गईं। इनमें 10 ध्वनियाँ विशेष रूप से पूज्य और पुण्यकारी मानी गई हैं घंटी, शंख, बांसुरी, वीणा, मंजीरा, करतल, बीन (पुंगी), ढोल, नगाड़ा एवं मृदंग।
ये सभी ध्वनियाँ केवल संगीत नहीं रचतीं, ये मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करती हैं। वेद, पुराण, उपनिषद और मंदिरों के संस्कारों में इनका उपयोग केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऊर्जावान संवाद है आत्मा से परमात्मा तक।
1. घंटी (घंटा) आकाश तत्व का उद्घोष : घंटी की ध्वनि को ‘शुद्धि का नाद’ कहा गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही जब भक्त घंटी बजाता है, तो उसका उद्देश्य देवता को सूचना देना नहीं, बल्कि अपने चित्त की चंचलता को शांत करना होता है। घंटी की ध्वनि 7 प्रकार की तरंगों से उत्पन्न होती है जो मानव शरीर के 7 चक्रों को स्पंदित करती है। यह ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने के साथ-साथ सकारात्मक कंपन को स्थान देती है। शास्त्रों में कहा गया है नादं मधुरं तस्य देवतासुखकारकम्। मधुर नाद देवताओं को प्रिय होता है।
2. शंख – जल तत्व का शुद्ध स्वरूप : शंख को विष्णु का प्रमुख आयुध माना गया है। इसकी ध्वनि से वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो रोगाणुओं का नाश करता है। शंखनाद युद्ध के उद्घोष से लेकर पूजन तक, हर विधि में शक्ति का प्रतीक रहा है। शंखध्वनि का आध्यात्मिक रहस्य यह है कि यह प्राणशक्ति को जागृत करता है। शंखस्य नादं गृहीत्वा, दुर्जयाः पराजिता भवन्ति। जो शंख ध्वनि का सन्निकट होता है, वह दुर्भावनाओं से पराजित नहीं होता।
3. बांसुरी – वायु तत्व का मधुर निमंत्रण : भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी केवल राधा या गोपियों को नहीं बुलाती, वह समस्त जीवों के हृदय को आकर्षित करती है। बांसुरी की ध्वनि साक्षात् वायु तत्व को संगीतमय बनाती है। श्रीमद्भागवत में वर्णन है कि श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनते ही पशु-पक्षी, नदी, वृक्ष और मानव सभी चेतन हो उठते थे। यह ध्वनि प्रेम का नाद है जब आत्मा परमात्मा को पुकारती है।
4. वीणा – अंतर्यामी की अनुभूति : सरस्वती की वीणा ज्ञान और रचनात्मकता की प्रतीक है। इसकी ध्वनि में एक विशेष कंपन होता है जो चेतना को उच्चतम स्तर पर ले जाता है। यह साधना, तप और ज्ञान के मार्ग को प्रशस्त करती है। वीणावाद्यं यत्र गीयते, तत्र देवाः रमन्ति। जहाँ वीणा वादन होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है। यह ध्वनि ब्रह्मविद्या की झंकार है।
5. मंजीरा – लय और ताल का अद्वितीय संगम : मंजीरा की कड़ी और स्पष्ट ध्वनि मानसिक चंचलता को केंद्रित करने में सहायक है। भजन, कीर्तन और आरती में मंजीरा का प्रयोग भक्तिभाव को गहराता है। यह ताल-मात्रा का प्रतीक है, जो हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर भाव, हर कर्म का एक अनुशासन और लय होना चाहिए।
6. करतल – ऊर्जा का जागरण : करतल (ताली) वादन का विशेष प्रयोग आरती और कीर्तन में होता है। इसका धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य यह है कि जब हम ताली बजाते हैं तो हाथ के एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे शरीर की ऊर्जा प्रणाली सक्रिय होती है। ताली बजाना ईश्वर की आराधना का सरलतम और सबसे प्रभावशाली साधन है जिसमें शरीर, मन और आत्मा एक हो जाते हैं।
7. बीन (पुंगी) – नागों की पुकार, आत्मचेतना की गुहार : बीन, जिसे नागों को मंत्रमुग्ध करने वाला वाद्य माना जाता है, वस्तुतः कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। इसके स्वर सर्पाकार ऊर्जा को जाग्रत करते हैं यही कारण है कि इसे तांत्रिक परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है। शिव और नागों का संबंध, योग और बीन की ध्वनि यह एक त्रिकोणीय रहस्य है जो ध्यान और तांत्रिक उन्नति में सहायक होता है।
8. ढोल – पृथ्वी तत्व की गर्जना : ढोल की गूंज धरा की गहराई से उठती है। किसी भी पर्व, अनुष्ठान या युद्ध के उद्घोष में ढोल की ध्वनि एक ज्वालामुखी की तरह होती है जो चेतना को झकझोर देती है। ग्राम्य संस्कृति से लेकर देवस्थलों तक ढोल एक संकेत है “अब उठो! अब जागो!” यह चेतना को ऊर्जावान बनाने वाला वाद्य है।
9. नगाड़ा – यज्ञ और युद्ध का उद्घोषक : नगाड़ा मंदिरों और युद्धस्थलों पर बजने वाला विशेष वाद्य है। इसका उद्देश्य केवल ध्वनि नहीं, आत्मा में जागृति लाना है। राजपूताने की भूमि से लेकर काशी के घाटों तक नगाड़े की गर्जना देवताओं की उपस्थिति का संकेत रही है। यह ध्वनि असुरों को भयभीत करती है और साधकों में अद्भुत उत्साह भरती है।
10. मृदंग – भक्तिरस की थिरकती आत्मा : मृदंग, जिसे श्रीकृष्ण के रास और श्रीचैतन्य महाप्रभु के कीर्तन से जोड़कर देखा जाता है, उसकी थाप भक्तिरस का आधार है। यह वाद्य मानव हृदय की धड़कन जैसा है जीवन की लय को बनाए रखने वाला। श्रीमद्भागवत में इसका स्थान अति महत्त्वपूर्ण है। मृदंग का प्रत्येक थाप भक्त के हृदय में भगवान के चरणों की गूँज पैदा करता है।
ध्वनियाँ जो ध्यान हैं, संगीत जो साधना है : इन दस पवित्र ध्वनियों का रहस्य केवल उनके संगीत में नहीं है, बल्कि उनकी अदृश्य चेतना में है। वे न केवल कानों से सुनी जाती हैं, बल्कि आत्मा से महसूस की जाती हैं।
नादं हि ब्रह्म स्वरूपं, तद् ज्ञानं मोक्षकारकं। नाद ब्रह्म का रूप है, उसका ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है। इन ध्वनियों से जुड़ना केवल धार्मिक परंपरा निभाना नहीं, बल्कि स्वयं की यात्रा में एक पवित्र कदम है आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा।