विनोद कुमार झा
पंचदेवता पूजा सनातन परंपरा की मूल स्तंभ है। भारत की सनातन धर्म परंपरा विविधता और व्यापकता में विश्व में अद्वितीय है। इस परंपरा की गहराइयों में यदि हम उतरें, तो हमें ज्ञात होता है कि हर पूजा, हर विधि, हर आचरण के पीछे कोई न कोई दार्शनिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उद्देश्य छुपा है। ऐसी ही एक अत्यंत प्राचीन और व्यापक मान्यता है पंचदेवता पूजा। यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि एक ऐसा संतुलित साधना पथ है जो जीवन में संतुलन, एकता और आंतरिक शांति का सृजन करता है।
पंचदेवता पूजा का शाब्दिक अर्थ है पाँच प्रमुख देवताओं की सामूहिक आराधना। यह वह पूजा-पद्धति है जिसमें श्रद्धालु एक साथ पाँच प्रमुख देवों की उपासना करता है। यह प्रणाली विशेषतः स्मार्त संप्रदाय द्वारा प्रतिष्ठित की गई है, जो आदि शंकराचार्य द्वारा प्रचारित अद्वैत वेदांत पर आधारित है।
शंकराचार्य का मत था कि ईश्वर एक ही है, किंतु उसकी उपासना विभिन्न रूपों में की जा सकती है। अतः उन्होंने पंचदेव पूजा को अपनाने का आग्रह किया जिससे धर्म-संप्रदाय में भिन्नता के बावजूद एकत्व बना रहे।
पंचदेवता में कौन-कौन से देवता होते हैं?
पंचदेवता पूजा में निम्नलिखित पाँच प्रमुख देवों की उपासना की जाती है:-
1. भगवान गणेश: संकटहर, विघ्ननाशक एवं शुभारंभ के देवता हैं । किसी भी कार्य के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है। वे बुद्धि, विवेक और ज्ञान के प्रतीक हैं।
2. भगवान विष्णु : पालनकर्ता, सृष्टि के संरक्षक हैं वे धर्म, मर्यादा और न्याय के प्रतीक हैं। उनके द्वारा संसार का संतुलन बना रहता है।
3. भगवान शिव: संहारकर्ता, योगेश्वर एवं परमार्थ के प्रतीक हैं वे त्याग, वैराग्य और समाधि के स्वामी हैं। उनका पूजन आत्मा को उच्च स्तर पर ले जाता है।
4. देवी शक्ति: (दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी या सरस्वती के रूप में) सृजन की शक्ति, माता के रूप में दया की मूर्ति हैं। शक्ति स्वरूपा देवी संपूर्ण प्रकृति की अधिष्ठात्री हैं। वे ऊर्जा, श्रद्धा और संरक्षण की देवी हैं।
5. भगवान सूर्य : ज्योति, स्वास्थ्य और आत्मिक प्रकाश के स्रोत हैं। वे प्रत्यक्ष देव हैं जिनका तेज जीवन का आधार है। उनका पूजन स्वास्थ्य, तेज और आत्मबोध प्रदान करता है।
पंचदेवता पूजा का महत्व क्या है?
पंचदेवता पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि एक समग्र साधना पद्धति भी है। इसके अनेक आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक लाभ हैं जैसे:-
1. आध्यात्मिक संतुलन : जब एक साथ पाँच देवों की उपासना होती है, तो व्यक्ति सृष्टि के विविध आयामों सृजन, पालन, संहार, शक्ति और प्रकाश से जुड़ता है। इससे आत्मा संतुलित होती है।
2. संपूर्णता की भावना : केवल एक देव की आराधना मन को संकुचित कर सकती है, किंतु पंचदेवता पूजा मन को व्यापक बनाती है और सर्वदेवमयी भावना को जन्म देती है।
3. संप्रदायिक एकता : पंचदेवता पूजा हिंदू धर्म के विभिन्न मार्गों शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य और सौर को एक सूत्र में बाँधती है। इससे संप्रदायिक विद्वेष कम होता है।
4. सांस्कृतिक पुनर्जागरण : जब समाज पंचदेवों की उपासना करता है, तो वह अपनी प्राचीन जड़ों से जुड़ता है और संस्कृति का पुनरुद्धार होता है।
5. मानसिक एवं पारिवारिक कल्याण : हर देव की पूजा विशिष्ट मानसिक लाभ देती है गणेश से बुद्धि, शिव से वैराग्य, विष्णु से सहिष्णुता, देवी से ऊर्जा और सूर्य से आत्मबल। इससे पारिवारिक वातावरण में समरसता आती है।
पंचदेवता पूजा की विधि : पंचदेवता पूजन के लिए पाँच छोटे-छोटे वेदियों या प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। क्रम कुछ इस प्रकार होता है: सबसे पहले भगवान गणेश फिर विष्णुजी, शिव, देवी और सूर्य।
- पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से प्रत्येक देव की आराधना की जाती है।
- मंत्र, पुष्प, दीप, नैवेद्य और जल अर्पण किया जाता है।
- अंत में पंचदेवों से क्षमा याचना कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
आज के युग में जहाँ संप्रदायवाद, एकपक्षीय विचारधारा और उग्र धार्मिक विभाजन बढ़ रहा है, वहाँ पंचदेवता पूजा एक समरस, सर्वग्राही और समन्वयवादी साधना का मार्ग है। यह विचार देता है कि "सभी देव एक ही ब्रह्म की अभिव्यक्ति हैं"। इससे समाज में सहिष्णुता और एकता को बढ़ावा मिलता है।
पंचदेवता पूजा न केवल एक पूजन-विधि है, बल्कि एक दार्शनिक दर्शन है विविधता में एकता का। यह सनातन धर्म की उदारता, समावेशिता और आंतरिक सौंदर्य का प्रतीक है। इसके माध्यम से साधक न केवल धर्म को समझता है, बल्कि ब्रह्म के विविध रूपों में समरस होता है। यह पूजा हमें यह सिखाती है कि चाहे हम शिव को मानें या विष्णु को, शक्ति को पूजें या सूर्य को अंतिम लक्ष्य एक ही है सत्य, ब्रह्म और शांति।