लेखक: विनोद कुमार झा
-एक जीवन, जो झूठ से लड़ा और सत्य की मशाल बन गया।
उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव 'सुरजनपुर' की मिट्टी में बचपन से ही नैतिकता की गंध थी। हर घर में सुबह तुलसी की पूजा होती थी, खेतों में हल चलते समय राम नाम लिया जाता था, और शाम को गाँव की चौपालों पर बुज़ुर्ग रामायण का पाठ करते थे।
इसी गाँव में जन्मा था रामप्रसाद , एक साधारण किसान का बेटा। उसका चेहरा सांवला, आँखों में तेज़ और ह्रदय में विनम्रता की गहराई। उसके पिता श्यामलाल गाँव के सबसे ईमानदार और गरीब किसान थे, जिनका जीवन सत्य की डोरी से बंधा था। श्यामलाल अक्सर कहा करते थे, “बेटा, धरती पर बोया बीज और ज़ुबान से बोले शब्द, दोनों का फल ज़रूर मिलता है। पर अगर बीज सच्चाई का हो तो फल मीठा होता है।”
यह उपदेश रामप्रसाद के मन में धीरे-धीरे अंकुरित होने लगा। गाँव के बच्चे चोरी करते, झूठ बोलते, लड़ते, मगर रामप्रसाद चुपचाप अपने काम में लग जाता। लोग कहते— “बहुत भोला है ये लड़का, दुनिया इसे खा जाएगी।” मगर श्यामलाल को पता था कि यही भोला लड़का एक दिन सत्य की मशाल बनेगा।
जब रामप्रसाद आठवीं पास हुआ, तो श्यामलाल ने खेत गिरवी रखकर उसे शहर के स्कूल में दाखिल कराया। यह 1980 का समय था, जब गाँव से शहर जाना किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं माना जाता था।
शहर की गलियाँ नई थीं, दोस्त अजनबी थे, और वातावरण छलावे से भरा हुआ। वहां की हवा में पैसे की महक थी, और चेहरे मासूमियत से कोसों दूर।
एक दिन परीक्षा में एक छात्र नीरज ने रामप्रसाद से पूछा, “सुनो, हमारे ग्रुप में शामिल हो जाओ, हम सब पर्ची से पास होते हैं, और तुम भी टॉपर हो, कोई शक नहीं करेगा।”
रामप्रसाद ने शांति से उत्तर दिया, “पास होने से ज़्यादा ज़रूरी है सही रास्ते से चलना। झूठ से अगर आज पास भी हो जाऊं तो ज़िंदगी की परीक्षा में तो फेल हो जाऊंगा।”
नीरज और उसके दोस्त हँस दिए। मगर रामप्रसाद की आत्मा मुस्कुरा उठी। धीरे-धीरे उसके सत्य के मूल्य उसके अध्यापकों को भी भाने लगे। वो हर प्रतियोगिता में भाग लेता, मगर कभी नकल नहीं करता। एक दिन स्कूल में भाषण प्रतियोगिता हुई विषय था: “सत्य का मूल्य।”
रामप्रसाद ने जो बोला, वह आज भी उसके शिक्षकों की स्मृति में अंकित है,“सत्य कोई आदर्शवादी किताब की बात नहीं है। यह हर दिन की लड़ाई है। जब भूख लगती है और सामने चोरी का माल पड़ा होता है, तब ईमानदारी सबसे कठिन लगती है। जब पूरी दुनिया झूठ बोल रही हो और आप अकेले सच कह रहे हों, तब सत्य पर टिके रहना ही असली बहादुरी है।” हॉल तालियों से गूंज उठा।
रामप्रसाद ने पढ़ाई पूरी की और शिक्षक की नौकरी पाने के लिए परीक्षा दी। पहली बार वह सरकारी भ्रष्टाचार से रूबरू हुआ। वहाँ हर जगह दलाल थे जो पैसे लेकर नौकरी लगवाने का वादा करते थे।
एक व्यक्ति ने उससे कहा,“पाँच लाख दो, तुरंत नियुक्ति करवा दूँ। सब करते हैं, कोई तुम्हारा भगवान नहीं बैठेगा तुम्हारे लिए।” रामप्रसाद ने मुस्कराकर उत्तर दिया, “मेरा विश्वास है कि जो भगवान ऊपर बैठा है, वही मेरी मेहनत का मूल्य तय करेगा।” इसलिए जब वह असफल हुआ, तो उसके रिश्तेदारों ने ताने दिए
“सच्चाई खाएगी नहीं, रामू। कुछ सीख दुनिया से।”मगर उसने जवाब में सिर्फ एक मुस्कान दी। वह गाँव लौटा, और एक छोटे निजी स्कूल में ₹800 महीने पर पढ़ाना शुरू किया। वहाँ बच्चों को सिर्फ किताबें नहीं, जीवन के मूल्य भी पढ़ाता।
एक दिन गाँव में चुनाव हुए। गाँव के दबंग नेता विक्रम सिंह के भाई ने स्कूल में घुसकर कहा,“बच्चों से हमारी पार्टी के पोस्टर बनवाओ और रैली में ले चलो।”
रामप्रसाद ने कहा,“बच्चे पढ़ने आए हैं, रैली में नहीं। शिक्षा मंदिर है, राजनीति की मंडी नहीं।” विक्रम सिंह बौखला गया। उसी रात स्कूल में आग लगवा दी। रामप्रसाद का नाम मिट्टी में मिला दिया गया। मगर उसने कहा, “जिस सत्य की जड़ें भीतर तक हों, उसे कोई आग जला नहीं सकती।”
कुछ वर्षों बाद उसकी सत्यनिष्ठा की गूँज शहर तक पहुँची। एक अख़बार ने उसके ऊपर लेख लिखा, “गाँव का गांधी।”
उसी लेख को पढ़कर एक NGO ने उसे बुलाया, और ग्रामीण शिक्षा मिशन का प्रमुख बना दिया। आज़ादी के बाद पहली बार सुरजनपुर और आसपास के गाँवों में लड़कियों की पढ़ाई के लिए केंद्र खुले। लोग बोले, “रामप्रसाद ने सच को हथियार नहीं, मशाल बना दिया।”
कई सालों बाद रामप्रसाद को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाज़ा गया। मंच पर खड़े होकर उसने सिर्फ एक वाक्य कहा “मैं आज भी वही रामप्रसाद हूँ, जो पहली परीक्षा में बिना पर्ची के बैठा था।” सभा भावुक हो उठी।
पुरस्कार के बाद भी उसने गाँव नहीं छोड़ा। आज भी वह सुबह तुलसी में जल देता है, खेत में मिट्टी को प्रणाम करता है और बच्चों को एक ही पाठ पढ़ाता है “झूठ से बनी इमारत कभी स्थायी नहीं होती।”
रामप्रसाद की कहानी कोई काल्पनिक गाथा नहीं, बल्कि हर उस इंसान की कहानी है जो कठिन रास्ता चुनता है। सत्यनिष्ठा का मूल्य सिर्फ आदर्श नहीं, एक दृष्टि हैएक ऐसी दृष्टि जो हमें भीतर से मजबूत बनाती है, और समाज को एक नई दिशा देती है।