'ऑपरेशन सिंदूर' की आंतरिक सफलता के बाद भारत अब अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक हमला बोलने जा रहा है। इस बार रणभूमि राजनयिक है और सेनानी स्वयं भारत की संसद है। 22 से 23 मई से प्रारंभ हो रही इस अभूतपूर्व कूटनीतिक यात्रा में भारत के संसदीय प्रतिनिधिमंडल 32 महत्त्वपूर्ण देशों का दौरा करेंगे। उद्देश्य स्पष्ट है दुनिया को यह बताना कि पाकिस्तान अब केवल एक विफल राष्ट्र नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद का उर्वर केंद्र है। इस पहल में सभी प्रमुख दलों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। कांग्रेस के शशि थरूर अमेरिका और पनामा में भारत की ओर से पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करेंगे, वहीं भाजपा के रविशंकर प्रसाद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ में भारत का पक्ष दृढ़ता से रखेंगे। जदयू के संजय कुमार झा, द्रमुक की कनीमोरी, राकांपा की सुप्रिया सुले, शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत शिंदे और AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी जैसी विविध राजनीतिक धाराओं से आने वाले सांसद इस यात्रा में शामिल हैं।
यह सर्वदलीय स्वर केवल भारत की लोकतांत्रिक मजबूती का परिचायक नहीं, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आतंकवाद के प्रश्न पर भारत एकमत है। यह संदेश जितना बाहरी दुनिया के लिए है, उतना ही देश के भीतर की राजनीति को संतुलित रखने का प्रयास भी। इन प्रतिनिधिमंडलों की यात्रा केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक आक्रोश है। हर दल के पास आंकड़े, दस्तावेज़, घटनाक्रम और प्रमाण होंगे, जो पाकिस्तान की आतंकवाद को पालने-पोसने की भूमिका को निर्विवाद रूप से उजागर करेंगे। भारत की यह रणनीति वैश्विक जनमत को प्रभावित करने, सुरक्षा परिषद में समर्थन बढ़ाने और पाकिस्तान की साख को अंतरराष्ट्रीय मंच पर खत्म करने की है। एक अद्भुत दृश्य इस अभियान में देखने को मिलेगा जब संसद में तल्ख बहस करने वाले सांसद जैसे असदुद्दीन ओवैसी और निशिकांत दुबे अब एक ही प्रतिनिधिमंडल में होंगे। यह भारत के लोकतंत्र की परिपक्वता है कि वैचारिक भिन्नता राष्ट्रहित में बाधक नहीं बनती। यही वह भावना है जिसकी इस समय सबसे अधिक आवश्यकता है। कई प्रतिनिधिमंडल उन देशों की यात्रा करेंगे जहां प्रवासी भारतीयों की संख्या बहुत अधिक है, जैसे कतर, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और सिंगापुर। यह रणनीति सॉफ्ट पावर के जरिए वैश्विक राय को भारत के पक्ष में मोड़ने का प्रयास है। प्रवासी भारतीय वहां की नीतियों को प्रभावित करने वाले अहम कारक हैं और भारत इसे अब सक्रियता से भुना रहा है।
यह पहल विपक्ष द्वारा मांगी गई सर्वदलीय बैठक का एक प्रकार से कूटनीतिक उत्तर भी है। विपक्ष को यात्रा में शामिल कर सरकार ने एक ओर समन्वय का संकेत दिया है तो दूसरी ओर अपनी नीति को विपक्ष की सहमति से पुष्ट भी कर लिया है। इसे राजनीति की परिपक्वता भी कह सकते हैं और कूटनीति की चतुराई भी। यह पहल भारत की उस कूटनीतिक नीति की नई लहर है जो केवल मंत्रालयों के गलियारों से नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सबसे ऊंचे मंच संसद से प्रवाहित हो रही है। यह भारत की विदेश नीति को बहुआयामी, सर्वदलीय और निर्णायक बना रही है। आतंकवाद के खिलाफ यह वैश्विक कूटनीतिक अभियान भारत की छवि को एक सजग, जिम्मेदार और निर्णायक राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। पाकिस्तान के लिए यह एक ऐसा कूटनीतिक घेरा है, जो शायद सैन्य कार्रवाई से भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है।
- प्रधान संपादक