वट सावित्री पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री और विधि

 विनोद कुमार झा 

 वट सावित्री व्रत की सामग्री और पूजा विधि के बारे में जानते हैं:-


पूजा सामग्री:

1. बांस का पंखा – 8

2. डाली (पूजा की टोकरी) – 8

3. बोहनी – 1 (जिसमें लावा, बड़ा आदि रहते हैं)

4. अहिवात (धूप)

5. उड़द दाल के फूलाए हुए 14 बड़

6. सूत की डोरी

7. सरवा (पीतल या मिट्टी का बर्तन) – 2

8. मिट्टी से बना नाग-नागिन का जोड़ा

9. केले का पत्ता

10. लावा (चावल से बना हुआ प्रसाद)

11. एक सरवा में दही

12. मूंग (भिगोकर फूलाया हुआ नवेद्य के लिए)

13. चना (फूलाया हुआ)

14. लाल कपड़ा

15. कनिया-पुतरा (गुड़िया जैसे प्रतीक रूप में पुत्र और पुत्रवधू)

16. साजी (डिब्बी जिसमें कनिया-पुतरा होते हैं)

17. चावल (अरवा यानी बिना पॉलिश किया हुआ)

18. जनऊ (यज्ञोपवीत) – एक जोड़ी और साबुत सुपारी

19. फल, फूल, मिठाई

20. कच्ची हल्दी, दूब घास, साबुत धनिया

21. बिन्नी (लाल कपड़े में चावल, दूब, हल्दी बांधकर बनाई गई गठरी)

22. दूध

पूजा की पूर्व तैयारी (एक दिन पहले)

* - कन्या स्नान करके अरवा (सादा चावल) भोजन करती है।

*शाम - शाम को देवी भगवती, भगवान शिव, ब्राह्मण, हनुमान और गौरी के गीत गाए जाते हैं।

- दूब, कच्ची हल्दी, और धनिया मिलाकर मिट्टी की गौरी बनाई जाती है।

- गौरी को एक सिक्के के ऊपर सरवा (बर्तन) में स्थापित कर पान के पत्ते से ढँक दिया जाता है।

- पान के पत्ते के ऊपर सिंदूर की गद्दी रखी जाती है और लाल कपड़े से ढँककर देवी के पास रखी जाती है।

- उड़द की दाल के फूलाकर 14 बड़ बनाए जाते हैं, जिन्हें सूत की डोरी में (बिना सुई के) पिरोया जाता है।

- यह बड़ से बनी माला बोहनी के मुंह पर बांधी जाती है।

- केले के पत्ते पर सिंदूर और काजल से “विष-विषहारा” लिखा जाता है।

- रात में मूंग और काले चने को पानी में भिगोकर फूलने के लिए रखा जाता है।

वट सावित्री पूजा के दिन ऐसे करें विधि:

* - नवविवाहिता कन्या स्नान कर ससुराल से आए नए वस्त्र पहनती है, श्रृंगार करती है और खोंइछा (पूजा सामग्री) लेती है।

- देवी भगवती की पूजा कर हाथ में साजी (जिसमें कनिया-पुतरा होते हैं) और सिर पर बोहनी (जिसमें लावा भरा होता है और जिसके मुंह पर 14 बड़ बांधे होते हैं) लेकर देवी के चरणों में प्रणाम करती है।

- सब महिलाएं बड़ (वट) वृक्ष के नीचे जाती हैं।

- बोहनी में रखा लावा निकालकर केले के पत्ते पर रखती हैं और बोहनी में पानी भर देती हैं।

- वटवृक्ष के नीचे रंगोली (अरिपन) बनाई जाती है।

- एक अरिपन पर 7 पंखा रखी जाती हैं और 7 डाली में फूलाए हुए चने, फल और मिठाई रखी जाती है।

- वटवृक्ष के नीचे अहिवात (धूप) जलाया जाता है।

- एक डाली में चावल, सुपारी, जनऊ, पैसा, फल और मिठाई रखकर पूजा के बाद पंडित को दिया जाता है।

- आम के पत्ते पर 60 जगह फूलाया मूंग और फल-मिठाई का नवेद्य चढ़ाया जाता है।

- एक पंखा और एक आम के पत्ते पर 5 स्थानों पर सिंदूर लगाकर वटवृक्ष की जड़ में रखा जाता है।

- अरिपन पर विष-विषहारा लिखा हुआ पत्ता रखकर उसके ऊपर मिट्टी का विष-विषहारा (नाग-नागिन) रखा जाता है।

- कन्या एक बड़ के पत्ते को बालों में खोंसती है।

- पूजा के बाद कन्या, गौरी के समक्ष अपने मायके और ससुराल की महिलाओं को नवेद्य अर्पित करती है, फूल और सिंदूर से गौरी की पूजा करती है।

- फिर हाथ में बिन्नी लेकर और जांघ पर बोहनी रखकर कथा सुनती है।

- कथा सुनने के बाद साड़ी के पल्लू से आम और सिंदूर की गद्दी लेकर मौली (पवित्र धागा) से वटवृक्ष के चारों ओर पाँच बार परिक्रमा करती है।

- फिर पंखा से वटवृक्ष की तीन बार वंदना (स्पर्श) करते हुए गला मिलाती है। इसके बाद कन्या स्वयं अपने पुतले रूपी पति के हाथ से अपने मांग में सिंदूर भरती है। फिर सभी नवेद्य प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं और विष-विषहारा को दूध तथा लावा अर्पित किया जाता है।

बोहनी में बंधे बड़ को अपने बाएं हाथ की अंगुलियों (अंगूठा और अनामिका) से तोड़कर एक बार आगे और एक बार पीछे फेंकते हुए मंत्र बोला जाता है –

  * “बड़ लिय” (पीछे की ओर फेंकते समय),
  * “मर दिय” (आगे की ओर फेंकते समय)।

* फिर बोहनी को सिर पर उठाया जाता है, साजी हाथ में ली जाती है और भगवती के घर लौटा जाता है।

वटवृक्ष के नीचे रखी डाली भी उठाकर भगवती घर में स्थापित की जाती है।

देवी के चरणों में 7 अहिवाती डाली चढ़ाई जाती हैं और सभी बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है।

समाप्त

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