मां की जुबानी वट सावित्री व्रत की कहानी
वट सावित्री व्रत कथा एक अमर प्रेम, तप और सत्यनिष्ठा की गाथा
भारतीय संस्कृति में यदि किसी व्रत को स्त्रियों की अखंड सौभाग्य, अटल प्रेम और अडिग नारी शक्ति का प्रतीक माना गया है, तो वह है वट सावित्री व्रत। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसा दिव्य संकल्प है जो पत्नी के प्रेम, तप और संकल्प की शक्ति को जगत के समक्ष स्थापित करता है। यह वह कथा है जहाँ मृत्यु के अधिपति यमराज भी एक स्त्री की सत्यनिष्ठा, त्याग और वचनबद्ध प्रेम से पराजित हो जाते हैं।
सावित्री यह नाम केवल एक नारी का नहीं, बल्कि एक जीवंत आदर्श है। उसने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए न केवल प्रकृति, भाग्य और काल से संघर्ष किया, बल्कि स्वंय मृत्यु के मार्ग में उतरकर अपने प्रेम की अमरता सिद्ध की। जिस वटवृक्ष के नीचे यह तपस्या की गई, वह आज भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र बन चुका है जहाँ नारी शक्ति अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है, कथा सुनती है और वटवृक्ष की परिक्रमा करती है।
यह कथा केवल अतीत की एक पौराणिक स्मृति नहीं, बल्कि आज की भी प्रेरणा है कि नारी जब संकल्प कर ले, तो वह स्वयं ब्रह्मांड की गति को भी मोड़ सकती है। आइए, इस अलौकिक व्रत कथा के माध्यम से हम जानें उस दिव्य स्त्री की गाथा, जिसने प्रेम को मृत्यु पर भी विजय दिलाई सावित्री की वाणी से, सत्यवान की आत्मा तक।
आइए जानते हैं विस्तार से कथा:
एक गाँव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और सात पुत्रों के साथ खुशी-खुशी रहता था। उनके घर की रसोई के पास चिनवाड़ के के नीचे एक नाग और नागिन ने अपना बिल बना रखा था। ब्राह्मण की पत्नी सांप के डर से हर दिन भोजन बनाने के बाद गरम मांड (भात का पानी) उस बिल में डाल देती थी, जिससे नाग-नागिन के सारे बच्चे मर जाते थे।
निरंतर अपने बच्चों की मृत्यु से आक्रोशित होकर एक दिन नाग-नागिन ने ब्राह्मण को श्राप दे दिया "जैसे तुमने हमारे बच्चों को मारा है, वैसे ही तुम्हारे सारे पुत्र भी सर्पदंश से मारे जाएंगे।"
समय बीता। ब्राह्मण के सबसे बड़े पुत्र का विवाह हर्षोल्लास के साथ हुआ। विवाह के बाद पुत्र अपनी पत्नी को विदा करा अपने घर ले जाने लगा। रास्ते में एक बरगद के पेड़ के नीचे कुछ समय के लिए विश्राम हेतु वे दोनों बैठे। उसी पेड़ की जटाओं में नाग-नागिन रहते थे। नाग-नागिन ने निकलकर दोनों को डस लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
ब्राह्मण के घर शोक का पहाड़ टूट पड़ा। एक-एक कर के ब्राह्मण के छहों पुत्र सर्पदंश से मृत्यु को प्राप्त हो गए। ब्राह्मण और उनकी पत्नी अब सबसे छोटे पुत्र को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते थे। उसे हमेशा बचा कर रखते कि कहीं उसे भी सांप न डस ले।
जब छोटा पुत्र बड़ा हुआ, तो धनार्जन हेतु घर से बाहर जाने की जिद करने लगा। पहले तो माता-पिता ने मना किया, लेकिन फिर इस शर्त पर अनुमति दी कि वह हमेशा छाता और जूता अपने साथ रखेगा। पुत्र ने शर्त मान ली और घर से निकल पड़ा।
चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा। गाँव के बाहर एक नदी थी। ब्राह्मण का बेटा जूते पहनकर नदी पार करने लगा। उसी समय कुछ लड़कियाँ भी नदी पार कर रही थीं। उन्होंने ब्राह्मण के बेटे को पानी में जूते पहनकर चलते देखा तो हँसने लगीं "देखो कैसा मूर्ख ब्राह्मण का बेटा है!"
लेकिन उस झुंड में सामा नामक धोबिन की बेटी भी थी। उसने कहा "तुम लोग समझ नहीं रहीं, यह ब्राह्मण पुत्र पानी में इसलिए जूता पहनकर चल रहा है ताकि पानी में मौजूद सांप या कीड़े उसे न काट सकें।"
ब्राह्मण पुत्र उसकी बात सुनकर चकित रह गया। नदी पार कर सभी आगे बढ़े। बहुत धूप थी, लेकिन ब्राह्मण पुत्र छाता अपनी बगल में दबाए रहा। लड़कियाँ उसे देख हँसने लगीं "इतनी धूप में भी छाता नहीं खोला, अब पेड़ की छाया में बैठकर छाता खोल रहा है!"
फिर से सामा ने कहा, "तुम लोग नहीं समझ रही हो, यह ब्राह्मण पुत्र पेड़ पर रहने वाले सांपों से बचने के लिए छाता खोल रहा है।"
ब्राह्मण पुत्र सामा की बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित हुआ और मन में ठान लिया कि विवाह करूंगा तो इसी चतुर कन्या से करूंगा। वह गाँव के धोबी से मिला और सामा से विवाह की इच्छा जताई। धोबिन खुशी से राजी हो गई और दोनों का विवाह करवा दिया।
विदा के समय सामा की माँ बोली "बेटी, मैं तो गरीब हूँ, क्या दूँ तुझे विदा में?"
सामा ने कहा "माँ, मुझे बस थोड़े से धान के लावा, थोड़ा दूध, एक बोहनी (जल से भरा बर्तन), और एक बिंदा (मांग सजाने का सामान) दे दीजिए, और आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने पति और उनके वंश की वृद्धि में सहायक बनूँ।"
माँ ने सब दे दिया और आशीर्वाद देकर बेटी को विदा किया। ब्राह्मण पुत्र और सामा चलते-चलते थक गए तो एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने लगे। सामा ने अपनी माँ द्वारा दी गई सारी वस्तुएं वहीं पेड़ के नीचे रख दीं।
उसी पेड़ के जटाओं में एक नाग और नागिन रहते थे। नाग को भूख और प्यास लगी, तो वह बिल से बाहर निकलने लगा। नागिन ने रोका, लेकिन वह नहीं माना। जैसे ही नाग बोहनी में रखा पानी पीने को झुका, सामा ने बोहनी को उठाकर नाग को दबाकर पकड़ लिया।
नाग निकलने का बहुत प्रयास करता रहा, लेकिन सफल नहीं हुआ। जब बहुत देर हो गई, तो नागिन बाहर निकली। उसने देखा कि नाग एक नवविवाहिता के हाथों में कैद है। वह विनती करने लगी "उसे छोड़ दो।"
सामा ने कहा"मैं तभी नाग को छोड़ूंगी जब तुम मेरे पति और उनके पूरे वंश को सर्प-दोष से मुक्त करोगी और उनके मरे हुए छहों भाइयों और उनकी पत्नियों को पुनः जीवित करोगी।"
नागिन मजबूर होकर मान गई। वह स्वर्ग से अमृत लेकर आई और ब्राह्मण के सातों पुत्रों और बहुओं को जीवित कर उन्हें सर्प-दोष से मुक्त कर दिया। सबको आशीर्वाद देकर नाग-नागिन बोले, "यदि जेष्ठ मास की अमावस्या को विवाहित महिलाएँ बरगद के पेड़ की पूजा कर विष-निवारक नाग-नागिन को दूध और लावा अर्पण करेंगी, तो उनका सुहाग अटल रहेगा।"
नाग-नागिन का आशीर्वाद लेकर ब्राह्मण के सातों पुत्र और उनकी पत्नियाँ जब घर पहुँचे, तो माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने सामा को ढेरों आशीर्वाद दिए और सभी मिलकर सुखपूर्वक रहने लगा। समाप्त
विनोद कुमार झा
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