लेखक : विनोद कुमार झा
संसार में अनेक प्रेम कहानियाँ प्रचलित हैं कुछ शरीर तक सीमित, कुछ जीवनभर की यात्रा तक। परंतु कुछ प्रेम ऐसे होते हैं जो मृत्यु की सीमाएं पार कर जाते हैं, जो बार-बार जन्म लेते हैं, और बार-बार एक-दूसरे को खोजते हैं। ऐसे प्रेम की पहचान होती है उसकी भक्ति से उस त्याग से, जो वह संसार को देकर भी बिना किसी अपेक्षा के निभाता है। यह कथा एक ऐसे ही प्रेम की है एक भक्त और भक्तिन के अमर मिलन की, जो श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित हो चुका था।वृंदावन, जहां हर कण-कण में श्रीकृष्ण की लीलाओं की गूंज होती है, जहां यमुना की हर लहर श्रीराधा के प्रेम की गवाही देती है, वहीं एक छोटे से घर में जन्मी थी अनन्या। उसका जन्म ही जैसे किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। बाल्यकाल से ही वह कृष्ण के प्रति इतनी अनुरक्त थी कि जब बाकी बालिकाएं गुड़ियों से खेलती थीं, अनन्या मुरली बजाती मूर्ति को फूल पहनाती और भजन गाया करती थी।
उसकी माँ कहती, "बिटिया, तुझे कोई संसार की चिंता नहीं?"
अनन्या मुस्कुराकर कहती, "माँ, जब मन मोहन से बंधा हो, तो बाकी दुनिया मायाजाल लगती है।"
उसी गाँव में माधव नामक एक युवा रहता था। वह चरवाहा था, किन्तु अत्यंत शांत स्वभाव का। उसका जीवन यमुना किनारे गायें चराने और बांसुरी बजाने में बीतता था। वह दुनिया से बहुत अलग था न ज्यादा बोलता, न किसी से राग-द्वेष रखता। उसके भीतर एक अधूरापन था, एक तलाश थी... शायद किसी ऐसी आत्मा की जो उसकी भक्ति को पूर्ण कर दे।
एक दिन यमुना किनारे वह बांसुरी बजा रहा था कि उसे एक स्वर सुनाई दिया “जय श्री राधे राधे!” उसने देखा, सफेद वस्त्रों में, माथे पर तिलक लगाए एक कन्या श्रीकृष्ण के सामने बैठी भजन गा रही थी। वह स्वर इतना मधुर, इतना आत्मिक था कि माधव की आंखें भर आईं।
पहली भेंट और भक्ति का आरंभ : उस दिन के बाद माधव का मार्ग बदल गया। वह हर सुबह अनन्या के साथ मंदिर जाने लगा। दोनों साथ भजन गाते, यमुना किनारे बैठकर राधा-कृष्ण की लीलाओं की चर्चा करते।
अनन्या ने माधव को देखा और पहचाना यह केवल कोई ग्रामीण युवक नहीं, यह उस रूह का साथी है जो युगों से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। माधव ने भी अनन्या में कोई अलौकिक प्रकाश देखा था।
"माधव," अनन्या बोली, "क्या तुम जानते हो प्रेम क्या होता है?"
"नहीं," माधव ने विनम्रता से कहा: "प्रेम वो होता है," अनन्या बोली, "जो राधा ने किया न पाने की इच्छा, न अधिकार की कामना। केवल समर्पण, केवल भक्ति।" माधव की आंखों से आँसू छलक पड़े। उसने पहली बार प्रेम को इतने निर्मल रूप में जाना था।
गांव की चर्चा और समाज का विरोध : गांव में कुछ लोगों को यह मिलन रास नहीं आया। वे बोले, "एक लड़का और लड़की रोज़ साथ बैठते हैं? यह क्या कृष्ण भक्ति है?" कुछ लोगों ने अनन्या के घर शिकायत की, तो उसकी माँ चिंतित हुई।
माधव ने अनन्या से कहा, "यदि तुम्हें लगता है कि मेरे कारण तुम्हें समाज की आलोचना सहनी पड़ रही है, तो मैं दूर चला जाऊंगा।"
अनन्या ने दृढ़ स्वर में कहा, "माधव, जो समाज ईश्वर को समझ नहीं पाया, वह हमारे प्रेम को क्या समझेगा? यह प्रेम सांसारिक नहीं है। यह आत्मा का मिलन है, और जब आत्मा एक हो जाए, तो कोई उसे अलग नहीं कर सकता।"
श्रीकृष्ण का संकेत : एक दिन माधव और अनन्या, मंदिर में भजन गा रहे थे, तभी पुरोहित ने उन्हें रोका और डांटते हुए कहा, "भक्ति एकांत की होती है, दो जन मिलकर भजन नहीं गाते। यह प्रेम नहीं, प्रपंच है।"
उसी रात माधव को स्वप्न में श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए। वे बोले, "माधव, यह प्रेम जो तुम्हारे हृदय में है, वह सत्य है। यह राधा और मीरा के प्रेम के समान है। इसका तिरस्कार मत करना। यह प्रेम तुम्हें मोक्ष की ओर ले जाएगा।" माधव ने जागकर प्रण लिया कि वह इस प्रेम को संसार से नहीं, ईश्वर से जोड़कर जिएगा।
विरह की वेदना: समय बीतता गया। अनन्या को एक दुर्लभ रोग ने घेर लिया। उसके शरीर में बल नहीं रहा, परंतु उसकी भक्ति और बढ़ गई। माधव दिन-रात उसके सेवा में लगा रहता। जब वैद्य हार मान गए, तो माधव ने कृष्ण से कहा, "प्रभु, मेरी प्राण ले लो, पर अनन्या को जीवन दो।"
अनन्या मुस्कुरा दी। उसने कहा, “माधव, हम इस जीवन में मिलकर श्रीकृष्ण की भक्ति कर सके यह ही बहुत है। अब मुझे जाना है। पर याद रखना, हमारा प्रेम अमर है। मैं फिर लौटूँगी। इस जीवन में नहीं, तो अगले में। और तब फिर हम श्रीकृष्ण के चरणों में साथ बैठेंगे।"वह दिन आया जब अनन्या ने कृष्ण का नाम लेते-लेते प्राण त्याग दिए।
तप और सन्यास : माधव जैसे शून्य में चला गया। उसने अनन्या की चिता के पास ही दिन बिताया, और फिर यमुना में स्नान कर, अपने केश श्रीकृष्ण को अर्पित कर सन्यासी बन गया। वह वृंदावन के एक आश्रम में रहने लगा और दिन-रात भजन में समय बिताने लगा।
वर्षों बीत गए। उसका शरीर वृद्ध हो गया, पर आँखें अब भी उसी आत्मा की प्रतीक्षा कर रही थीं उस प्रेम की, जो कभी समाप्त नहीं हुआ।
पुनर्जन्म और पुनर्मिलन : बीस वर्षों के बाद उसी वृंदावन में एक कन्या का जन्म हुआ। नाम रखा गया अनन्या। यह बालिका बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में डूबी रहती थी। वह मंदिर जाती, भजन करती और कृष्ण की मूर्ति को देखकर मुस्कराती। उसकी माँ अक्सर कहती, "बिटिया, तेरे चेहरे पर मुझे कोई पुरानी आत्मा की छाया दिखती है।"
एक दिन, वृंदावन के उसी मंदिर में वह वृद्ध सन्यासी भजन कर रहा था। कन्या आई और उसके साथ बैठ गई। भजन समाप्त हुआ, और जैसे ही वृद्ध ने आंखें खोलीं, उसकी आंखें छलक उठीं। वह वही स्वर था, वही आत्मा थी।
वह बोले, "तू… अनन्या?"
लड़की मुस्कुरा दी।"मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था।" आज भी वृंदावन के उस मंदिर में एक पत्थर पर लिखा हुआ है: "जहाँ प्रेम सच्चा हो, वहाँ पुनर्जन्म भी हार जाता है।"
अनन्या और माधव की यह कथा केवल दो आत्माओं की नहीं, बल्कि उस भक्ति की है जो शरीर, काल और मृत्यु से परे है। यह कथा यह सिद्ध करती है कि जब प्रेम भक्ति में बदल जाए, तब वह अमरता को प्राप्त करता है। वह कृष्ण के चरणों में पहुंच जाता है।