क्या है सात लोक का रहस्य?

विनोद कुमार झा

(एक आध्यात्मिक, पौराणिक और भावनात्मक यात्रा)

ब्रह्मांड की संरचना केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सूक्ष्म सत्ता से परिपूर्ण है। हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में "सप्त लोक" अर्थात सात लोकों का उल्लेख आता है ये वे दिव्य क्षेत्र हैं, जिनके माध्यम से आत्मा अपनी यात्रा करती है। प्रत्येक लोक में चेतना का एक अलग स्तर होता है, और हर लोक एक विशिष्ट अनुभव, ऊर्जा और उद्देश्य से युक्त होता है। यह कथा इन्हीं सात लोकों की एक भावनात्मक और आत्मिक यात्रा है एक ऐसी यात्रा, जो केवल ज्ञानी ही नहीं, वरन् हर जिज्ञासु आत्मा को भीतर तक झकझोर देती है।

1. भूर्लोक (पृथ्वी लोक)  प्रारंभ की पीड़ा : "पृथ्वी", जहां आत्मा जन्म लेती है, कर्म करती है, और अपने प्रारब्ध को भोगती है। यहां जन्म होता है मोह का, बंधन का, और साथ ही, यहीं से आत्मा की चेतना यात्रा आरंभ होती है।

कथा: एक युवा ब्राह्मण, नाम था सुदेव, जो हिमालय की तलहटी में जन्मा था। वह बचपन से ही आत्मा के रहस्यों में डूबा रहता था। एक दिन उसके पिता ने उसे बताया, "बेटा, जीवन केवल भूर्लोक का अनुभव नहीं है। यह तो पहला सोपान है, सात लोकों की महान यात्रा का आरंभ।"सुदेव ने पृथ्वी पर दुख, प्रेम, वियोग और मृत्यु के बीच जीवन का मूल्य जाना। यहीं उसने पहली बार प्रश्न किया "मैं कौन हूँ?"

2. भुवर्लोक , विचारों की लहरें : यह लोक पृथ्वी के ऊपर है। यह वह क्षेत्र है जहाँ आत्मा मृत्यु के बाद जाती है, लेकिन पूर्णतः मुक्त नहीं होती। यह विचारों, इच्छाओं और अधूरी कामनाओं का लोक है।

कथा: सुदेव के एक मित्र प्रहलाद का अकाल निधन हो गया। शोक में डूबे सुदेव ने ध्यान में उसकी आत्मा को पुकारा। भुवर्लोक से उत्तर आया, "मैं मुक्त नहीं, सुदेव! मेरी इच्छाएं, मेरा अभिमान मुझे रोक रहा है।"सुदेव ने सीखा विचारों की शुद्धि ही अगला द्वार खोलती है।

3. स्वर्लोक  देवताओं का लोक : यह लोक उन पुण्यात्माओं का है जिन्होंने अच्छे कर्म किए। यहां आत्मा आनंदित होती है, परन्तु यह भी स्थायी नहीं है। यह 'स्वर्ग' कहलाता है।

कथा: सुदेव ने वर्षों की तपस्या से योगबल प्राप्त किया और स्वर्लोक में प्रवेश किया। वहां उसने इन्द्र, वायु, वरुण जैसे देवताओं से भेंट की। उन्होंने कहा, "सुदेव, यह लोक भी मोह का है — यहाँ सम्मान है, सुख है, पर मुक्ति नहीं।"सुदेव ने जाना सुख भी बंधन हो सकता है।

4. महर्लोक  ऋषियों का धाम : यह लोक उन महान ऋषियों का है जिन्होंने मोह और माया को पीछे छोड़ दिया। यहाँ समय रुक जाता है, और आत्मा शांति की ओर बढ़ती है।

कथा: सुदेव ने अपने ध्यान से महर्लोक में प्रवेश किया। वहाँ ब्रह्मर्षि भृगु, अत्रि, वशिष्ठ से उसका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने उसे ब्रह्मज्ञान की शिक्षा दी  आत्मा, परमात्मा से अलग नहीं है। यहीं उसे पहली बार 'अहं ब्रह्मास्मि' का अनुभव हुआ।

5. जनलोक, ब्रह्मर्षियों का घर : जनलोक, वह क्षेत्र है जहाँ ब्रह्मर्षि रहते हैं  वे जो ब्रह्म के साक्षात स्वरूप बन चुके हैं। यहाँ केवल वे ही पहुँचते हैं जो समस्त गुणों से परे हो जाते हैं।कथा: सुदेव अब केवल शरीर नहीं, प्रकाश बन चुका था। उसने जनलोक में ऋषि सनक, सनातन, सनन्दन और सनत्कुमार से भेंट की। उन्होंने कहा, "ज्ञान की पूर्णता तब है जब करुणा उसके साथ जुड़ी हो।" यहीं सुदेव को प्रेम, दया और समर्पण का सही अर्थ समझ में आया।

6. तपोलोक  तप और त्याग का क्षेत्र : यह लोक अत्यंत सूक्ष्म है। यहाँ केवल वे आत्माएँ रहती हैं जो तप के द्वारा ईश्वर के समीप पहुँचती हैं।

सुदेव ने एकाकी होकर वर्षों तक ध्यान किया। न उसने कुछ चाहा, न कुछ त्यागा केवल रहा, मौन रहा, अस्तित्व बनकर। तपोलोक में उसे शिव के स्वरूप में ध्यानस्थ महान आत्माओं की उपस्थिति का अनुभव हुआ। वह जान गया त्याग सबसे बड़ा तप है।

7. सत्यलोक (ब्रह्मलोक)  परम सत्य का धाम : यह ब्रह्मा का लोक है, सत्य का अंतिम चरण। यहाँ आत्मा पूर्णतः मुक्त होती है, जहां से पुनर्जन्म का चक्र टूटता है।

कथा: सुदेव जब सत्यलोक पहुँचा, तो वहाँ कोई रूप, कोई रंग, कोई ध्वनि नहीं थी  केवल "मैं" और "वह" एक हो गए थे। उसने देखा  ब्रह्म एक महासागर है, और वह एक बूंद था जो उसी में विलीन हो गई। अब न कोई प्रश्न था, न उत्तर।

"सप्त लोक" केवल बाह्य यात्रा नहीं, आत्मा की भीतरी चेतना की परतें हैं। भूर्लोक से सत्यलोक तक की यह यात्रा प्रत्येक जीव के भीतर घटती है। सुदेव कोई एक ब्राह्मण नहीं, वह हम सबकी आत्मा है जो खोज में है, सत्य की ओर अग्रसर है।


Post a Comment

Previous Post Next Post