विनोद कुमार झा
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार "सात पाताल लोक" एक अत्यंत रहस्यमय, गूढ़ और प्रतीकात्मक विषय है, जिसे वेद, पुराण, और अनेक धर्मग्रंथों में विस्तार से वर्णित किया गया है। इन सात पातालों को भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और चेतनात्मक स्तर पर भी समझा जाता है। इनका संबंध न केवल ब्रह्मांडीय संरचना से है, बल्कि मानव के अंतर्मन की गहराइयों और कर्मफल से भी जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं विस्तार से:-
सात पाताल लोक के नाम और विशेषताएं:
1. अतल (Atala): यह पाताल शिव के पुत्र बाणासुर का निवास स्थान है। यहां भोग-विलास और माया की चरम अवस्था होती है। वाममार्ग और तंत्र विद्या का विशेष प्रभाव बताया गया है। मनुष्य को भ्रमित कर देने वाली इच्छाएँ यहीं उत्पन्न होती हैं।
2. वितल (Vitala): यह भी बाणासुर का ही क्षेत्र है, परंतु यह और गहरा है। यहां राक्षस हाटक लिंग की पूजा करते हैं। अग्नि के एक प्रकार 'हाटक अग्नि' से सोने का उत्पादन होता है। यह तामसिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है।
3. सुतल (Sutala): यह दैत्यराज बलि का लोक है, जिसे भगवान विष्णु ने वामन रूप में विजित कर वरदान स्वरूप निवास दिया। यह पाताल स्वर्ग के समान सुखमय है। यह दर्शाता है कि दया, दान और समर्पण से अंधकारमय लोक भी दिव्य बन सकते हैं।
4. तालातल (Talātala): यहाँ दानव मयासुर का निवास है, जो महावास्तुकार और मायाजाल का स्वामी है। यह लोक वास्तु, निर्माण, और भ्रम की चरम स्थिति को दर्शाता है। इसे माया और विज्ञान के संयोग का स्थान माना जाता है।
5. महातल (Mahātala): यह नागों का निवास स्थान है।कुलिक, वासुकी, आदि यहां वास करते हैं। यह लोक शक्ति, क्रोध और बदला लेने की भावनाओं का प्रतीक है। यहां की ऊर्जा गहरी लेकिन खतरनाक होती है।
6. रसातल (Rasātala): यह असुरों और दैत्यों का निवास स्थान है जो देवताओं के शत्रु माने जाते हैं। यह घोर अज्ञान, अहंकार और ईर्ष्या का क्षेत्र है। यहाँ की चेतना पूर्णतः अंधकार में डूबी होती है।
7. पाताल (Pātāla): यह सबसे निचला और गहनतम लोक है। यहाँ शेषनाग अपने हजारों फनों से भगवान विष्णु को शयन प्रदान करते हैं। यह लोक अत्यंत सुंदर, समृद्ध, परंतु चेतना रहित सुख से भरा हुआ है। यह संसारिक भोगों का अंतिम पड़ाव है, जहां आत्मा विलीन होती प्रतीत होती है।
पाताल लोकों की संरचना: ये लोक पृथ्वी के नीचे माने जाते हैं, परंतु भौतिक रूप से नहीं, बल्कि चेतनात्मक स्तरों पर। हर पाताल एक विशेष प्रकार की मनःस्थिति, कर्मफल या चेतना की अवस्था को दर्शाता है। जैसे-जैसे आत्मा अधर्म, तामसिक वृत्तियों और अहंकार में डूबती जाती है, वह इन पातालों में खिंचती जाती है।
शास्त्रों में पाताल की चर्चा:
1. भागवत पुराण: यहां सातों पातालों का स्पष्ट वर्णन मिलता है कि वे धरती से नीचे, तल से भी गहरे हैं, परंतु वहां सूर्य का प्रकाश नहीं होता, फिर भी वे अत्यंत चमकीले और रत्नों से सजे रहते हैं।
2. विष्णु पुराण और गरुड़ पुराण: इन ग्रंथों में इन लोकों के नैतिक और कर्मफल के दृष्टिकोण से वर्णन मिलता है। विशेषकर गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की इन लोकों की यात्रा का वर्णन मिलता है।
पाताल लोक का प्रतीकात्मक अर्थ: अतल से पाताल तक की यात्रा दरअसल आत्मा के गिरते हुए स्तरों का प्रतीक है जहां माया, मोह, क्रोध, अहंकार, वासना, अज्ञान और भोग आत्मा को घेरे रहते हैं। शेषनाग के ऊपर विष्णु का विश्राम यह दर्शाता है कि चाहे गहराई कितनी भी हो, वहां भी ईश्वर की सत्ता है।आधुनिक दृष्टिकोण से व्याख्या: कई विद्वान इन पातालों को मानव मानस की गहराइयों से जोड़ते हैं – जैसे अवचेतन (Subconscious) और अवधारणात्मक तलों (Samskaras) के विभिन्न स्तर। कुछ इसे आकाशगंगा के अन्य आयामों या अन्य ग्रहों/यूनिवर्स से भी जोड़ते हैं।
सात पाताल लोक न केवल ब्रह्मांडीय रहस्य हैं, बल्कि मानव आत्मा के गिरते हुए स्तरों की चेतावनी हैं। यह हमें यह सिखाते हैं कि अज्ञान, भोग, अहंकार, और वासना की गहराइयों में भी ईश्वर का स्पर्श मौजूद है।परंतु अगर चेतना उर्ध्वगामी हो जाए, तो वही आत्मा स्वर्ग और मोक्ष के द्वार तक पहुंच सकती है।
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