प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में रविवार को संपन्न हुई एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों की विशेष बैठक महज एक औपचारिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह लोकतंत्र के उस जीवंत स्वरूप की झलक थी जिसमें राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग की भावना सर्वोपरि होती है। इस मुख्यमंत्री परिषद की बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा, सुशासन, सामाजिक न्याय, विकास और आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयों पर गहन और व्यावहारिक विमर्श हुआ, जो भारत के संघीय ढांचे को मज़बूती प्रदान करता है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर एकमत: बैठक की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक था ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर पारित प्रस्ताव, जिसे राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रस्तुत किया और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने समर्थन दिया। यह प्रस्ताव भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक जैसी निर्णायक कार्रवाई का अभिनंदन था, जो पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने की दिशा में किया गया था। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसे “सेना का शौर्य” कहकर संबोधित करना न केवल सैनिकों के मनोबल को ऊंचा करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि भारत अब हर आतंकी हरकत का उत्तर अपने नियमों और शर्तों पर देगा।
यह प्रस्ताव केवल सैन्य पराक्रम का गौरवगान नहीं था, बल्कि यह भारत की बदलती रणनीतिक और सुरक्षा नीति की झलक भी देता है जहां आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई और आंतरिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। यह भारत की परिपक्वता का प्रतीक है कि अब वह केवल प्रतिक्रियाशील नहीं, बल्कि नीतिगत और योजनाबद्ध प्रतिक्रिया देने वाला राष्ट्र बन चुका है।
जातिगत जनगणना पर संतुलित दृष्टिकोण : हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा प्रस्तुत और आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण द्वारा समर्थित दूसरा प्रस्ताव जातिगत जनगणना को लेकर था, जिसे मुख्यमंत्रियों ने साक्ष्य-आधारित नीतियों की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया। यह प्रस्ताव अपने आप में एक संतुलन का प्रयास है जहां "जाति की राजनीति" से परे हटते हुए समाज के उन वंचित वर्गों को पहचाना जाए जो अब तक विकास की मुख्यधारा से दूर रहे।
इस प्रस्ताव के पीछे स्पष्ट भाव था सामाजिक न्याय की पुनर्परिभाषा। डेटा आधारित नीतियों के माध्यम से ऐसे वर्गों की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन कर नीति निर्माण की दिशा तय करना भारत को न केवल अधिक न्यायपूर्ण समाज की ओर ले जाएगा, बल्कि समावेशी विकास के लक्ष्य को भी साकार करेगा।
नक्सलवाद पर समन्वित प्रयास : नक्सलवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। इस बैठक में इस पर विस्तृत और गहन चर्चा होना केंद्र और राज्य सरकारों की गंभीरता को रेखांकित करता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा द्वारा साझा किए गए अनुभवों से यह स्पष्ट हुआ कि कैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास, संवाद और विकास के माध्यम से शांति स्थापित की जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का यह आह्वान कि सभी एनडीए शासित राज्य एक स्पष्ट रणनीति और एकजुट दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के समाधान की दिशा में एक मजबूत संकेत है।
सुशासन और विकास का रोडमैप : प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक में सुशासन और विकास की साझी पहलों पर बल दिया। विभिन्न राज्यों द्वारा अपने नवाचारों और योजनाओं को साझा करना न केवल आपसी सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है, बल्कि यह भारत के संघीय ढांचे को भी मज़बूत करता है। प्रधानमंत्री का यह सुझाव कि हर राज्य को एक ऐसा रोडमैप बनाना चाहिए जो राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ स्थानीय ज़रूरतों का भी समाधान करे, शासन के विकेन्द्रीकरण की सर्वोत्तम मिसाल है।
वाणी पर संयम: राजनीति की गरिमा का आह्वान : बैठक की एक और महत्वपूर्ण झलक थी प्रधानमंत्री मोदी की नेताओं को ‘वाणी पर संयम’ रखने की सख्त सलाह। यह सलाह हाल ही में हरियाणा और मध्यप्रदेश के कुछ नेताओं द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों के संदर्भ में आई है। यह स्पष्ट करता है कि देश के सर्वोच्च नेतृत्व द्वारा मर्यादा, शालीनता और उत्तरदायित्वपूर्ण वक्तव्यों को राजनीति की गरिमा से जोड़ा जा रहा है। यह वह बिंदु है जहां "राजनीति" केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम न होकर राष्ट्रनिर्माण का औजार बन जाती है।
आगामी कार्यक्रमों की रणनीति और आपातकाल की स्मृति : बैठक में आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा और विशेष रूप से आपातकाल की 50वीं बरसी को लेकर जो विचार सामने आए, वे भारतीय लोकतंत्र को स्मरण और सजगता की दिशा में प्रेरित करते हैं। आपातकाल की त्रासदी को याद करना, केवल अतीत को कोसना नहीं है, बल्कि यह चेतना को बनाए रखना है कि लोकतंत्र कितना मूल्यवान है और उसे संरक्षित करना हर नागरिक का कर्तव्य है।
नीतीश कुमार का असमय प्रस्थान: संकेत या संयोग?
बैठक की समाप्ति से पूर्व ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कार्यक्रम स्थल से अचानक निकल जाना कई राजनीतिक अटकलों को जन्म दे रहा है। यद्यपि अभी तक कोई आधिकारिक कारण सामने नहीं आया है, लेकिन नीतीश जैसे वरिष्ठ नेता का इस तरह से एक महत्त्वपूर्ण बैठक से असमय प्रस्थान, एनडीए में उनके भावी रुख को लेकर चर्चाएं अवश्य तेज कर रहा है।
संपूर्ण राष्ट्र निर्माण की दिशा में एकजुट प्रयास : मुख्यमंत्री परिषद की यह बैठक केवल प्रस्तावों का संग्रह या योजनाओं की समीक्षा नहीं थी, बल्कि यह उस विचार की अभिव्यक्ति थी जो ‘डबल इंजन सरकार’ को केवल राजनीतिक जुमला नहीं, बल्कि समन्वित शासन का वास्तविक आदर्श बनाती है। यह बैठक दर्शाती है कि जब केंद्र और राज्य मिलकर सोचते हैं, मिलकर कार्य करते हैं और मिलकर सपने देखते हैं, तो राष्ट्र का भविष्य अधिक उज्ज्वल और स्थायी होता है।
आज जब भारत विश्व मंच पर अपनी भूमिका को नए रूप में परिभाषित कर रहा है, तब इस प्रकार की बैठकों का महत्व और बढ़ जाता है। यह बैठक उस आत्मनिर्भर भारत की ओर एक और मजबूत कदम है जो सुरक्षित भी है, समावेशी भी, और विकसित भी।
(लेखक: विनोद कुमार झा)