पंचखण्डों का रहस्य: ब्रह्मांडीय संतुलन की अद्भुत कथा

 विनोद कुमार झा

भारतीय पुराणों, धर्मशास्त्रों और लोकमान्यताओं में "पंचखण्ड" की अवधारणा एक गूढ़ और दिव्य व्यवस्था का संकेत देती है। ये पाँच खण्ड सृष्टि खण्ड , भूमि खण्ड , स्वर्ग खण्ड , पाताल खण्ड और उत्तर खण्ड सिर्फ भौगोलिक या आध्यात्मिक सीमाएं नहीं हैं, बल्कि यह ब्रह्मांडीय संतुलन, जीवों की गति और कर्म के रहस्यों को समेटे हुए हैं। प्रत्येक खण्ड एक विशेष भूमिका निभाता है कहीं जीवन उत्पन्न होता है, कहीं कर्मों का फल भोगा जाता है, तो कहीं मोक्ष की ओर यात्रा होती है। यह लेख इन पाँचों खण्डों की रहस्यमयी और अध्यात्मिक कथाओं को उजागर करता है।

1. सृष्टि खण्ड: (जहाँ सबकी उत्पत्ति हुई)

सृष्टि खण्ड वह दिव्य क्षेत्र है जहाँ से सम्पूर्ण चराचर जगत की उत्पत्ति मानी जाती है। यह खण्ड ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति की सामूहिक क्रिया का परिणाम है। ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना यहीं से प्रारंभ की पहले जल, फिर पृथ्वी, आकाश, अग्नि, वायु, और अंत में जीव।

एक समय जब सर्वत्र शून्यता थी, ब्रह्मा जी ने ध्यानस्थ होकर ‘ॐ’ की ध्वनि में सृष्टि का रहस्य खोजा। उस ‘ॐ’ नाद से प्रकट हुई प्रकृति, और प्रकृति से पांच तत्त्व। यहीं से आदि पुरुष और आदिशक्ति की लीला प्रारंभ हुई। यह खण्ड ब्रह्मा के ध्यान और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। यह खण्ड हमें हमारे आदि स्वरूप और उत्पत्ति की स्मृति दिलाता है।

2. भूमि खण्ड: कर्मभूमि की लीला

यह वही खण्ड है जहाँ जीव जन्म लेकर अपने कर्मों का लेखा-जोखा करता है। मानव योनि सहित अनेक योनियों में जन्म-जाति, धर्म-कर्म, पुण्य-पाप सब भूमि खण्ड में घटित होते हैं।

भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, और अनेकों संत-महापुरुषों ने इस खण्ड में जन्म लेकर धर्म की स्थापना की। रावण का वध, महाभारत का युद्ध, समुद्र मंथन ये सब लीला भूमि इसी खण्ड में स्थित हैं। इसी खण्ड में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम, राम, कृष्ण आदि अवतार लिए। भूमि खण्ड तप, त्याग, परीक्षा और मोक्ष की यात्रा का प्रमुख क्षेत्र है। मनुष्य का जीवन इसी भूमि खण्ड में तपकर स्वर्ग या पाताल की दिशा पाता है।

3. स्वर्ग खण्ड: पुण्यलोक की दिव्यता

स्वर्ग खण्ड उन जीवों का लोक है जिन्होंने अत्यधिक पुण्य, यज्ञ, दान, तप, और धर्म का आचरण किया। इन्द्र, अग्नि, वरुण, यम, कुबेर आदि देवताओं का वास भी इसी खण्ड में है।

एक समय राजा त्रिशंकु ने अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाने की इच्छा जताई। महर्षि विश्वामित्र ने तप से उसे स्वर्ग की ओर भेजा, लेकिन इन्द्र ने उसे रोक दिया। तब विश्वामित्र ने उसके लिए ‘त्रिशंकु स्वर्ग’ की रचना की यह दर्शाता है कि स्वर्ग खण्ड भी केवल पुण्य से नहीं, वरन् आत्मबल से प्राप्त होता है।

यह खण्ड नश्वर नहीं, किन्तु अस्थायी है पुण्य क्षीण होते ही जीव पुनः भूमि खण्ड में जन्म लेता है। यह खण्ड हमें पुण्य की शक्ति और भोग की मर्यादा सिखाता है।

4. पाताल खण्ड: रहस्य और तप का लोक

पाताल खण्ड को अंधकारमय और रहस्यमयी माना जाता है, लेकिन यह केवल दंडस्थल नहीं। यहाँ नागलोक, असुरलोक और तपस्वियों के तपस्थल स्थित हैं। बलि महाराज, शेषनाग, और नागराज वासुकी जैसे पात्रों की तपस्थली यही है।

जब वामन भगवान ने बलि राजा से तीन पग भूमि माँगी, तो उन्होंने तीसरे पग में अपना सिर अर्पण कर दिया। वामन ने उन्हें पाताल का स्वामी बना दिया। यहाँ की संपन्नता और वैभव का वर्णन भागवत तथा विष्णु पुराण में अद्भुत है।

पाताल में दंड भी है, ज्ञान भी है। यह खण्ड गहराई में छिपे रहस्यों और कर्मफल की अनुभूति का स्थल है। यह खण्ड बताता है कि नीचे जाना हमेशा पतन नहीं, आत्मनिरीक्षण और सेवा का मार्ग भी हो सकता है।

5. उत्तर खण्ड: मोक्ष की राह

उत्तर खण्ड वह अंतिम और श्रेष्ठतम खण्ड है जहाँ से जीव मोक्ष की ओर प्रस्थान करता है। यह हिमालय, कैलास, मानसरोवर जैसे दिव्य स्थलों से जुड़ा हुआ खण्ड है।

शिवजी का निवास कैलास पर्वत इसी खण्ड में स्थित है। पांडवों ने भी हिमालय की ओर गमन कर उत्तर खण्ड से मोक्ष की ओर प्रयाण किया। यह खण्ड ध्यान, वैराग्य, आत्मज्ञान और साधना का प्रतीक है।

यह खण्ड केवल ज्ञान और तप से ही प्राप्त होता है। गंगा की उत्पत्ति, पार्वती विवाह, यक्ष-गंधर्वों की तपस्थली—ये सभी इसी खण्ड में स्थित हैं। यह खण्ड हमें बताता है कि जीवन का अंतिम ध्येय आत्मा की मुक्ति और ईश्वर से एकत्व है।

इन पाँच खण्डों की रहस्यमयी कथा हमें जीवन के हर पक्ष उत्पत्ति, कर्म, भोग, तप और मोक्ष की यात्रा को समझने का अवसर देती है। यह पंचखण्ड केवल भौगोलिक सीमाएं नहीं, बल्कि आत्मा की विकास यात्रा के पांच सोपान हैं। सृष्टि से मोक्ष तक का यह सुंदर, गूढ़ और दिव्य क्रम भारतीय अध्यात्म की अद्वितीय देन है।


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