## दशदिग्पाल पूजा का रहस्य क्या है?

 - एक आध्यात्मिक विवेचन, पूजा विधि और रहस्यमयी कथा

विनोद कुमार झा

प्राचीन भारतीय धर्म, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र और तंत्र शास्त्र में "दशदिग्पाल" (दस दिशाओं के पालक) का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। 'दिग' का अर्थ होता है दिशा और 'पाल' का अर्थ होता है रक्षक या संरक्षक। ये दस दिव्य शक्तियाँ संपूर्ण ब्रह्मांड के भौगोलिक, आध्यात्मिक और सूक्ष्म शरीर की दिशा-रक्षा करती हैं।

दिग्पाल केवल दिशाओं के संरक्षक नहीं हैं, बल्कि वे काल, ऊर्जा, तत्व और गति के नियंता भी हैं। इनकी उपासना से ना केवल वातावरण की शुद्धि होती है, बल्कि वास्तु दोष, मानसिक बेचैनी, भय, अनिष्ट शक्तियों आदि का निवारण भी संभव होता है।

##दशदिग्पाल कौन हैं?

भारतीय परंपरा में दस दिशाएं मानी गई हैं:

1. पूर्व

2. पश्चिम

3. उत्तर

4. दक्षिण

5. ईशान (उत्तर-पूर्व)

6. नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम)

7. वायव्य (उत्तर-पश्चिम)

8. आग्नेय (दक्षिण-पूर्व)

9. ऊर्ध्व (ऊपर)

10. अधो (नीचे)

इन दिशाओं की रक्षा करने वाले देवता इस प्रकार हैं:

| दिशा   | दिग्पाल         | विशेषता                                 

| ------ | --------------- | --------------------------------------

| पूर्व|इन्द्र | देवताओं के राजा, तेज और ऐश्वर्य के अधिपति |

| दक्षिण |यम  | मृत्यु के देवता, न्याय के प्रतीक  |

| पश्चिम | वरुण | जल के देवता, शपथ और सत्य के रक्षक |

| उत्तर  | कुबेर| धन के देवता, यक्षों के अधिपति |

| ईशान | शिव| ब्रह्मांडीय ऊर्जा, ज्ञान और तंत्र के अधिपति|

| नैऋत्य |नैऋत | राक्षसों के अधिपति, असुरों के प्रतीक |

| वायव्य | वायु | वायु के देवता, गति और प्राण के स्वरूप  |

| आग्नेय |अग्नि| यज्ञ, ऊर्जा, और पवित्रता के देवता|

| ऊर्ध्व |ब्रह्मा | सृष्टि के रचयिता |

| अधो |अनंत/विष्णु| पालनकर्ता, पाताल के रक्षक|

दशदिग्पाल पूजन का रहस्य और लाभ

1. उद्देश्य: वास्तु दोष निवारण,  मानसिक शांति और भय का नाश,  जीवन की दिशा में संतुलन, आध्यात्मिक जागृति और आत्मबल,  यंत्र/तंत्र/मंत्र की सिद्धि में सहायता।

2. यह कब करें?

- पूर्णिमा, अमावस्या, दशहरा, दीपावली, ग्रहण, होली, श्राद्ध या घर के निर्माण/प्रवेश के समय।

3. कौन -कौन कर सकता है? 

 - कोई भी साधक, वास्तु विद्या में रुचि रखने वाला, गृहस्थ, तांत्रिक या योगी।

पूजन विधि (Step-by-Step)

पूर्व तैयारी:

स्थान चयन: घर या मंदिर का शांत, पवित्र स्थान।

रंगोली/मंडल: एक विशेष दशदिग्मंडल बनाएं  गोल आकार में दस दिशाओं के नाम अंकित करें।

कलश स्थापना: केंद्र में एक ब्रह्म कलश स्थापित करें।

सामग्री: पीला वस्त्र, कुशा आसन,  10 छोटे कलश, पुष्प, चंदन, अक्षत, दीपक, धूप, दस दिशाओं के अनुसार बने यंत्र (यदि संभव हो) प्रत्येक दिग्पाल के लिए विशेष मंत्र

पूजन क्रम इस प्रकार है :

1. संकल्प:  "ॐ तत्सत्, मम समस्त दोष निवारणार्थं दशदिग्पाल पूजनं करिष्ये।"

2. आवाहन:   प्रत्येक दिशा की ओर मुख करके दिग्पाल का आह्वान करें:

- पूर्व (इन्द्र): ॐ इन्द्राय नम:

   - दक्षिण (यम): ॐ यमाय नमः

   - पश्चिम (वरुण): ॐ वरुणाय नमः

   - उत्तर (कुबेर): ॐ कुबेराय नमः

   - ईशान (शिव): ॐ ईशानाय नमः

   - नैऋत्य (नैऋत): ॐ नैऋत्याय नमः

   - वायव्य (वायु): ॐ वायवे नमः

   - आग्नेय (अग्नि): ॐ अग्नये नमः

   - ऊर्ध्व (ब्रह्मा): ॐ ब्रह्मणे नमः

   - अधो (अनंत): ॐ अनन्ताय नमः

3. पुष्प अर्पण: प्रत्येक दिशा में एक पुष्प अर्पित करें

4. धूप-दीप:  10 दीपक जलाएं और हर दिशा में एक दीप अर्पित करें।

5. मंत्र जाप: हर दिशा के दिग्पाल मंत्र का 11 या 108 बार जाप करें।

6. प्रदक्षिणा:   केंद्र के ब्रह्म कलश की 3 या 7 बार परिक्रमा करें।

7. आरती: ॐ जय जगदीश हरे अथवा कोई भी सार्वभौमिक आरती।

8. प्रार्थना:  हे दशदिग्पाल, आप मेरी रक्षा करें, मेरे स्थान को शुभ ऊर्जा से भरें और समस्त अनिष्टों का नाश करें।

प्राचीन कथा: दशदिग्पालों की उत्पत्ति और युद्ध

ब्रह्माण्ड के प्रारंभ में...जब दिशा का कोई स्थायित्व नहीं था, तब सृष्टि में केवल विकृति और अंधकार व्याप्त था। ब्रह्मा ने जब सृष्टि रचना प्रारंभ की, तो सबसे पहले उन्होंने दिशाओं की संरचना की ताकि ब्रह्मांड संतुलित रूप में कार्य कर सके।

परंतु अंधकार और अधर्म के राक्षसों ने दिशाओं पर अधिकार कर लिया। तब ब्रह्मा ने दस शक्तिशाली देवताओं को उत्पन्न किया, जो उन दिशाओं की रक्षा करें  ये थे दशदिग्पाल। इनका कार्य था:-

- दिक्भ्रम (दिशा भ्रम) से रक्षा।

- अनिष्ट शक्तियों को रोकना।

- स्थान और काल को संतुलित करना।

राक्षस नैऋत का युद्ध: नैऋत्य दिशा पर एक घोर राक्षस 'अंधनैऋत' का आधिपत्य था। वह दिशा भय, रोग, मृत्यु और विनाश की प्रतीक बन चुकी थी। दशदिग्पालों ने मिलकर उस पर आक्रमण किया।

 -इन्द्र ने वज्र से आकाश को चीरकर उसकी गुफा को खोजा।

- यम ने उसके अनुयायियों को न्याय दिया।

- वरुण ने उसे जलबद्ध किया।

-शिव ने तांडव से उसकी चेतना को नष्ट किया।  अंततः विष्णु ने उसे अनंतकाल के लिए पाताल में बंद कर दिया। तब से नैऋत्य दिशा का रक्षक भी नैऋत ही बना  परंतु अनुशासित, सीमित और संतुलित रूप में।

तांत्रिक दृष्टिकोण से महत्व : तंत्र शास्त्र में, दशदिग्पालों को "दिग्बंध" के समय आह्वान किया जाता है। यह किसी भी तांत्रिक अनुष्ठान के प्रारंभ में किया जाता है ताकि अनिष्ट शक्तियाँ उस यज्ञ-मंडल में प्रवेश न करें।

वास्तु में दशदिग्पाल इस प्रकार है:-

- ईशान (शिव): जल और पूजा

- अग्नि (अग्नि): रसोई

- नैऋत्य (नैऋत): वज़नदार वस्तु

- वायव्य (वायु): बैठक, अध्ययन

-ब्राह्म स्थान (केंद्र): ब्रह्मा का स्थान  खाली रखें। दिग्पालों की पूजा से वास्तु के दोष शांत होते हैं और जीवन में स्थिरता आती है।

दशदिग्पालों की पूजा केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की दिशाओं, ऊर्जाओं और तत्वों को संतुलित करने की एक सूक्ष्म विज्ञान है। यह साधना साधक को प्रकृति और आत्मा दोनों से जोड़ती है।

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