विनोद कुमार झा
भारतीय सनातन परंपरा में "चिरंजीवी" वे दिव्य आत्माएं मानी जाती हैं जिन्हें ईश्वर की विशेष कृपा से मृत्यु के बंधन से मुक्त कर अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ है। इनका अस्तित्व काल के परे माना गया है – न वे काल से पराजित होते हैं, न ही मृत्यु से भयभीत। ये न केवल धर्म और सत्य की रक्षा में योगदान करते हैं, बल्कि युगों-युगों तक संसार के लिए मार्गदर्शक भी बने रहते हैं।पुराणों एवं महाकाव्यों में दस ऐसे महापुरुषों का वर्णन मिलता है जिन्हें चिरंजीवी कहा गया है – वे हैं: राजा बलि, परशुराम, विभीषण, हनुमान, वेदव्यास, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, ऋषि मार्कण्डेय, ऋषि लोमश और महर्षि काकभुशुण्डि।
आइए, इन दस चिरंजीवियों के जीवन, उनके योगदान और अमरत्व के रहस्य को क्रमशः विस्तार से जानें।
1. राजा बलि (दानशीलता का अमर प्रतीक) : राजा बलि महादानी असुरों के राजा थे। जब उन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर उनके पास ब्राह्मण रूप में भिक्षा मांगने आए। राजा बलि ने तीन पग भूमि दान में देने का वचन दिया। भगवान वामन ने ब्रह्मांड को मापकर दो पगों में सब कुछ ले लिया, तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।
इस महान दान और आत्म-समर्पण से प्रसन्न होकर विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बनाया और वचन दिया कि वे साक्षात विष्णु रूप में उनके द्वारपाल बनेंगे। आज भी राजा बलि चिरंजीवी माने जाते हैं और 'ओणम' पर्व पर उनकी स्मृति में विशेष पूजन होता है।
2. भगवान परशुराम (क्षत्रियों का संहारक, धर्म का रक्षक) : भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम को क्रोध और करुणा का अद्भुत समन्वय कहा जाता है। उन्होंने अत्याचारी क्षत्रियों को 21 बार पृथ्वी से समाप्त किया था, परंतु वे सन्यास ग्रहण कर युद्ध नहीं त्याग सके।
माना जाता है कि वे अब भी जीवित हैं और आने वाले कल्कि अवतार को युद्धविद्या प्रदान करेंगे। उनका अमरत्व उनके तप, सत्य और आत्मसंयम का प्रतीक है।
3. विभीषण (धर्म के पक्षधर रावणभ्राता) : लंका के रावण के छोटे भाई विभीषण ने धर्म का साथ देने हेतु श्रीराम की शरण ली। वे लंका के राजा बनाए गए और राक्षसों के बीच सत्य और भक्ति का संचार किया।
उनकी अमरता का कारण उनकी श्रीहरि भक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा है। वे आज भी लंका में धर्म की रक्षा हेतु चिरंजीवी माने जाते हैं।
4. श्री हनुमान ( शक्ति, भक्ति और ज्ञान के त्रिदेव) : हनुमानजी को रामभक्ति, अपार शक्ति और ज्ञान का मूर्तरूप कहा गया है। वे वायुपुत्र हैं और रामकथा के अनंत संरक्षक भी। कलियुग में विशेषतः वे हरि नाम के रक्षक हैं और उनके स्मरण मात्र से भय दूर हो जाता है। मान्यता है कि हनुमान आज भी हिमालय के पर्वतों पर, तीर्थों में या अज्ञात रूप में कल्याण हेतु विचरण करते हैं।
5. वेदव्यास ( वेदों का संपादक, महाभारत के रचयिता) : वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। उन्होंने वेदों का विभाजन किया, महाभारत और १८ पुराणों की रचना की, और भागवत जैसे अमूल्य ग्रंथ मानवता को दिए।
उनकी चिरंजीविता ज्ञान और स्मृति की निरंतरता की द्योतक है। वे आज भी ध्यानस्थ हैं और मान्यता है कि जब भी धर्म की आवश्यकता होती है, वे किसी न किसी रूप में प्रकट होते हैं।
6. कृपाचार्य (गुरु परंपरा के अमर दीप) : कृपाचार्य हस्तिनापुर के कुलगुरु थे। वे महाभारत युद्ध के पश्चात शेष बचे कुछ पात्रों में से एक थे। धर्म, शिक्षा और नीति में पारंगत कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान मिला।
वे आज भी गुप्त रूप में ब्रह्मचर्य व तपस्यारत होकर भावी पीढ़ियों को मार्गदर्शन देने में तत्पर माने जाते हैं।
7. अश्वत्थामा ( शापित चिरंजीवी) : द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा महाभारत का सबसे जटिल पात्र है। युद्ध के बाद उसने कौरवों की हार का प्रतिशोध लेने हेतु रात्रि में पांडवों के पुत्रों की हत्या कर दी। भगवान कृष्ण ने उसे शाप दिया कि वह चिरंजीवी होकर युगों तक पृथ्वी पर भटकेगा, बिना मान-सम्मान और स्वास्थ्य के। वह आज भी धरती पर विक्षिप्त रूप में भटकता है यह चिरंजीविता दैवीय नहीं, बल्कि शापात्मक है।
8. ऋषि मार्कण्डेय ( मृत्यु से विजयी ऋषि) : बाल्यकाल से ही मृत्यु का वरण करने वाले मार्कण्डेय ने शिव की घोर तपस्या की। मृत्यु के समय जब यमराज उन्हें ले जाने आए, तब शिवजी प्रकट होकर यम को रोकते हैं और उन्हें अमरता का वरदान देते हैं। वे आज भी समाधिस्थ माने जाते हैं और उन्हें ज्ञान, आयु एवं शिवभक्ति का प्रतीक माना जाता है।
9. ऋषि लोमश (कालगणना के अद्वितीय ज्ञाता) : ऋषि लोमश की विशेषता यह है कि हर कल्प के अंत में उनका एक रोम झड़ता है। इस आधार पर उन्हें "कल्पों के जीवित साक्षी" कहा गया है। वे समय, ब्रह्मांड और तप के अद्वितीय संतुलन के ज्ञाता हैं। उन्होंने अनेक बार देवताओं, ऋषियों और राजाओं को धर्म का उपदेश दिया है और अब भी चिरंजीवी स्वरूप में सृष्टि की लीला देख रहे हैं।
अमरता की यह गाथा केवल देह की नहीं, धर्म, भक्ति, ज्ञान और तप की विजय की है। इन दस चिरंजीवियों की कथा हमें सिखाती है कि मनुष्य अपने कर्म, भक्ति और निष्ठा के बल पर मृत्यु जैसी अटल सच्चाई को भी पार कर सकता है। इनका जीवन मार्गदर्शक है – कि सत्य, धर्म और सेवा के पथ पर चलने वालों को समय भी पराजित नहीं कर सकता।