हम एक हैं, और देश सर्वोपरि है...

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने एक बार फिर देश को गहरे आघात में डुबो दिया है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान जाना केवल आंकड़ों की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह देश की एकता, सुरक्षा और सहिष्णुता के खिलाफ एक घातक हमला है। ऐसे समय में जब देश को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की आवश्यकता है, राजनीति में पैदा हो रही अनावश्यक खींचतान और संवादहीनता चिंता का विषय बन जाती है।  

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का यह कहना कि उनकी पार्टी केंद्र सरकार को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में पूरा समर्थन दे रही है, स्वागतयोग्य और जिम्मेदार रुख है। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर राजनीति से ऊपर उठकर एकता का प्रदर्शन अनिवार्य है। खरगे ने यह भी सही कहा कि धर्म, भाषा या दलगत पहचानें गौण हैं सबसे पहले देश आता है।  किन्तु इस पूरे घटनाक्रम में सर्वदलीय बैठक जैसे महत्वपूर्ण प्रयास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति खटकती है। जब देश किसी बड़े संकट का सामना कर रहा हो, तब नेतृत्व का निजी तौर पर उपस्थित रहना प्रतीकात्मक से कहीं अधिक, देशवासियों के विश्वास को सुदृढ़ करने का साधन होता है। ऐसे मौके पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति देश को यह संदेश देती कि राष्ट्रीय संकट में सरकार और विपक्ष मिलकर खड़े हैं, मतभेदों को किनारे रखकर राष्ट्रहित में निर्णय ले रहे हैं।  खरगे द्वारा यह इंगित करना भी महत्वपूर्ण है कि सर्वदलीय बैठक में हुई चर्चा को सार्वजनिक न करना देशहित में है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर गोपनीयता और परिपक्वता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या राजनीतिक अंकगणित के लिए संवेदनशील सूचनाओं का दुरुपयोग न केवल अनुचित है, बल्कि राष्ट्रीय हितों के लिए भी घातक हो सकता है।  

देशहित के मुद्दे पर एकता का जो स्वर खरगे ने दिया है, उसे केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कार्यरूप में भी बदलने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार को विपक्ष के सुझावों और चिंताओं को सम्मानपूर्वक सुनना चाहिए, और विपक्ष को भी जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाते हुए रचनात्मक समर्थन देना चाहिए। एक-दूसरे पर अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति केवल देश के दुश्मनों को लाभ पहुँचाती है।  आज आवश्यकता है कि हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहाँ कोई भी आतंकवादी कृत्य हमारे राष्ट्रीय संकल्प को डिगा न सके। जहाँ हर राजनीतिक दल, हर नेता, हर नागरिक, अपने-अपने मतभेद भुलाकर एक आवाज़ में कहे  "हम एक हैं, और देश सर्वोपरि है।"  

राष्ट्रीय संकटों के समय में राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति की आवश्यकता होती है। पहलगाम की दुखद त्रासदी हमें यह याद दिलाती है कि सत्ता और विरोध से ऊपर उठकर देश की रक्षा का दायित्व हम सबका साझा उत्तरदायित्व है। जो नेता इस भावना को अपने आचरण से जीते हैं, वही सच्चे अर्थों में इतिहास में आदर के पात्र बनते हैं।  आज जब देश फिर एक कठिन मोड़ पर खड़ा है, हमें यही संकल्प लेना होगा न कोई दल बड़ा है, न कोई नेता; सबसे बड़ा हमारा भारत है।  

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